नवादा : मग़ध प्रमंडल में नवादा एक ऐसा शहर है, जहाँ उर्दू के मशहूर शायर और आलोचक गुजरे हैं। यहाँ की एक बड़ी आबादी उर्दू साहित्य प्रेमी है। हाल ही में शहर नवादा में एक उभरते हुए युवा शायर अज़ीज़म रज़ा तस्लीम की उर्दू से मोहब्बत की अनोखी मिसाल सामने आई। उन्होंने अपनी मेहनत और कोशिश से न्यूपल बड़ी दरगाह नवादा अल्टीमेटम लाइब्रेरी में एक शानदार साहित्यिक और काव्यात्मक बैठक का आयोजन किया। बैठक में नवादा और आसपास के मशहूर और नामचीन शायरों की शिरकत हुई। इस अदबी और काव्यात्मक बैठक का आगाज शमा जलाकर किया गया। बैठक की अध्यक्षता नवादा के मशहूर शायर और लेखक प्रोफेसर डॉक्टर हाज़िक फरीद ने की, जबकि संचालन के फ़राइज़ नई पीढ़ी के युवा शायर जनाब रज़ा तस्लीम ने बखूबी निभाया।
बैठक में जिन शायरों ने विशेष अतिथि के रूप में भाग लिया, उनमें कई किताबों के लेखक जनाब डॉक्टर हाज़िक फरीद, “मौज में साहिल” के लेखक जनाब डॉक्टर एजाज़ रसूल, मंजे हुए और उस्ताद शायर जनाब इस्लाम-उल-हक शहबाज़, प्रसिद्ध लेखक महजूर अल-कादरी, पत्रकार जनाब मुहम्मद शहाब आलम, युवा शायर जनाब अशफाक रसूल (नवादवी), हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार ओंकार कश्यप, मुख्तार वारसी अकबरपुरी, महबूब आलम कमालपुरी, शाहूद हलीमी, और रिजवान अशरफ के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
इन शायरों ने अपना-अपना कलाम पेश किया, जिसे सुनकर श्रोता बेहद प्रभावित हुए। खासकर इस्लाम-उल-हक शहबाज़, डॉक्टर हाज़िक फरीद, डॉक्टर एजाज़ रसूल, ओंकार कश्यप, महजूर अल-कादरी, और अशफाक रसूल ने अपनी ग़ज़लों से शमां बांध दिया और खूब सराहना प्राप्त की।
इसी काव्यात्मक बैठक में प्रोफेसर डॉक्टर हाज़िक फरीद की मशहूर किताब “नक्श-ए-कुहन” का विमोचन भी किया गया। इससे पहले भी उनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जो आम और खास में बहुत लोकप्रिय हैं। इनमें “पहचान”, “नक्श-ए-कुहन”, “तकरीज़-ओ-तंकीद” और “प्रेमचंद के फसानवी अदब के पहले का मंजरनामा” विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
बैठक में उर्दू भाषा और साहित्य के महत्व पर चर्चा की गई। इसमें अल्लामा इक़बाल एकेडमी के डायरेक्टर इर्शाद बल्खी, कांग्रेस नेता अब्दुल्लाह आजम (अलीग), मास्टर ज़हीर अनवर, अल्टीमेट लाइब्रेरी के संस्थापक और डायरेक्टर मुहम्मद शीम, पत्रकार दिलशाद ग़ज़ाली, वार्ड कमिश्नर मुहम्मद चांद, मुहम्मद हमीद, पवन कुमार, मास्टर सज्जाद, और वसीम अकरम ने अपने विचार व्यक्त किए।
शायरों के कुछ चुनिंदा शेर पाठकों की नज़र:
डॉक्टर हाज़िक फरीद: “चले चलो कि इस धूप से निकल जाएं
यह कर्बला है यहां साया कौन देगा”
इस्लाम-उल-हक शहबाज़:- “जब अंधेरा छाया वतन की ज़मीं पर
हमने चिराग अपने लहू से जला दिया”
डॉक्टर एजाज़ रसूल: “सदाक़त के ताल्लुक से क़लमकारी नहीं करते
हमेशा आईना भी आईनादारी नहीं करते”
मुहम्मद जहांगीर आलम महजूरुल क़ादरी: -“मैं सह रहा हूँ तेरा हर सितम ज़माने से
न मिट सकूँगा कभी बिजलियां गिराने से”
शहाब आलम:- “तुम ही बताओ शहाब, आज़री क्या है
ज़बां पे नामे खुदा, बुतों से प्यार चल”
ओंकार कश्यप:- “लहजा तुम्हारा सर्द था अहले अज़ाब का
सोया नहीं है रात भर कांटा गुलाब का”
मुख्तार वारसी हमसर:- “शेर-ओ-सुखन में आला, उर्दू ज़ुबां है प्यारी
है शीरीं शीरनं लहजा, उर्दू ज़ुबां है प्यारी”
अशफाक रसूल:- “अब दर्द से बचना अशफाक कहां मुमकिन
फूलों का मौसम भी जख्मों का क़िबा देगा”
रेज़ा तस्लीम:- “बिन मौसम आँखों से बरसात यह होती है
मैं जागते रहता हूँ बेफिक्र तू सोती है”
दिलशाद ग़ज़ाली: -“हमने आबादियों को सिखाया है बर्बाद होनाआप आसान समझते हैं दिलशाद होना”अंत में दिन के एक बजे जनाब रेज़ा तस्लीम और अल्टीमेट लाइब्रेरी के डायरेक्टर मुहम्मद शीम के आभार प्रकट करने के साथ यह साहित्यिक और काव्यात्मक बैठक सफलतापूर्वक समाप्त हुई।