नवादा : जिले के सिरदला प्रखंड के दो महत्वपूर्ण मार्ग—गया–रजौली रोड एसएच-70 और सिरदला–हिसुआ रोड—इन दिनों ऐसी मुसीबत झेल रहा है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं करता। कागज़ पर सड़क 7 मीटर चौड़ी है, लेकिन हक़ीक़त में कई जगह 3–4 मीटर में सिकुड़ गई है। सड़क के किनारे दुकानें, दुकानों के आगे करकट, करकट के आगे फिर दुकान, और फिर बीच सड़क पर खड़े टेम्पो–टोटो—मतलब सड़क का हर टुकड़ा किसी न किसी ‘महान काम’ के लिए व्यस्त।
आप सिरदला बाजार में चार-पहिया वाहन से घुस रहे हैं, तो समझिए कि आपका दिन अब जाम में कटने वाला है। सड़कें ऐसी मानो किसी ने किसी को जगह देने का वादा ही नहीं किया हो। एसएच-70 पर रोज़ाना सैकड़ों बड़े–छोटे वाहन गुजरते हैं, लेकिन रास्ता वैसा ही जैसे किसी पुराने मोहल्ले की तंग गलियां। भारी वाहन घुस गया, तो बस… पूरा बाज़ार थम जाता है। सबसे दर्दनाक स्थिति तब होती है जब एंबुलेंस आती है। सड़कें ऐसी कि एंबुलेंस भी सोचती होगी—“क्या वाकई मुझे यहीं से निकलना है?” मरीज की सांसें अटक जाती हैं और बाजार की सड़कें जाम के आगे झुक जाती हैं।
अब कहानी यहीं खत्म नहीं होती। सिरदला बाजार के कई नालों पर भी अवैध निर्माण कर दिए गए हैं। बरसात में पानी कहां जाएगा? नाले में नहीं जाएगा, क्योंकि नाले अब घर और दुकान बन चुके हैं। बारिश का पानी जब रास्ता ढूंढता है, तो पूरा बाजार तालाब बन जाता है और लोग आश्चर्य करते हैं—“ये जलजमाव कैसे हो गया?” दुकानदारों ने सड़क के किनारे कचरा फेंक-फेंककर पक्की सड़क को कच्चा बना दिया है। उस कच्चे हिस्से पर भी दुकानें सज जाती हैं। लगता है मानो सड़क का हर इंच किसी ‘निजी संपत्ति’ की तरह इस्तेमाल हो रहा हो।
कई बार बैठकें हुईं—व्यापारियों के साथ, समाजसेवियों के साथ, प्रशासन के साथ। हर बार वही बातें, वही वादे, वही कागज़ी समाधान। सिरदला बाजार का हाल हर साल वही—ना बाजार लगाने का तय स्थल, ना बस स्टैंड की जमीन, पर डाक? वह तो हर साल भारी-भरकम राशि में होती है। अब अंचल अधिकारी श्री भोला का बयान आया है। उन्होंने कहा है—“जांच की जा रही है और सभी दुकानदारों को अगले दो दिनों में नोटिस भेजी जाएगी।” यह बात उम्मीद जगाती है, लेकिन सिरदला के लोग जानते हैं कि नोटिस भेजना आसान है, नोटिस का असर कराना असली चुनौती है।
सिरदला की सड़कें सिर्फ जाम से परेशान नहीं हैं। वे यह भी बताती हैं कि व्यवस्था जब सो जाए, तो सड़कें बाजार में बदल जाती हैं, नाले मकान में, और जनता की परेशानी सिर्फ सवाल में। यह सिर्फ ट्रैफिक की कहानी नहीं है—यह एक पूरे बाजार की कहानी है, जो अपने ही बोझ से दब रहा है। यहाँ सड़कें चलने के लिए नहीं, धैर्य की परीक्षा लेने के लिए बनी हैं। सिरदला पूछ रहा है—“हमारी सड़कें हमारे लिए कब खाली होंगी?”
भईया जी की रिपोर्ट