नवादा : आज जब हम श्रद्धा के साथ जिले के वारिसलीगंज प्रखंड मकनपुर गांव के साहित्यकार, पत्रकार और संवेदनशील मन के धनी रामरतन प्रसाद सिंह ‘रत्नाकर ’ जी को उनके श्राद्ध कर्म में शामिल हो रहे हैं, तब उनके शब्दों की गूंज मन के कोने-कोने में सुनाई देती है। ‘रत्नाकर ’ जी केवल निर्भिक पत्रकार व लेखक नहीं थे — वे शब्दों के साधक थे। उन्होंने अपनी कलम को समाज का दर्पण बनाया और मगही तथा हिंदी साहित्य को नई ऊर्जा, नई दृष्टि दी।
उनके लेखों और कविताओं में मिट्टी की खुशबू थी, गाँव की सादगी थी और इंसानियत की गहराई थी। दो दर्जन से अधिक पुस्तकों के रचयिता ‘रत्नाकर जी ने साहित्य को लोक से जोड़ा। उनके शब्दों में न कोई बनावट थी, न कोई आडंबर — बस जीवन की सच्चाई, संघर्ष और प्रेम की उजास थी।
पत्रकारिता में भी उन्होंने सच की मशाल को थामे रखा। अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना, जनसरोकारों पर कलम चलाना और समाज के वंचित वर्गों की पीड़ा को शब्द देना — यही उनका धर्म था, यही उनकी तपस्या। आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तब भी उनकी रचनाएँ जीवित हैं उनकी पंक्तियों में उनकी मुस्कान है, उनके शब्दों में उनकी आत्मा।
साहित्य का यह दीपक कभी नहीं बुझेगा,
क्योंकि सच्चे रचनाकार कभी मरते नहीं
वे अपनी लेखनी में अमर रहते हैं।
नमन है उस कलम को,
जो समाज के हर अंधेरे को उजाला बना गई।
कवि ओंकार शर्मा कश्यप की लेखनी में “रत्नाकर”
गहराया है सुनो मगध पर , दारुण विपदा भारी
जैसे सहसा उजड़ गई हो , मगही की फुलवारी
कौन रोकता मृत्यु का रथ, अग्नि- जल- बेग पवन को
जग भूषित कर राम रतन , निकले परलोक गमन को
सकरी के दोआब किनारे, कहते हैं ना सोएंगे
रत्नाकर तुम जल्दी आना, देर हुई तो रोएंगे
पार्वती अपसढ़ या तमसा, ककोलत शेष रहेगा
तबतक नाम अमर होगा, जब तक देश रहेगा