नवादा : अकबरपुर अंचल अधिकारी पदस्थापन के बाद से विवादों में बने रहना पसंद करते हैं। दो वर्ष का अग्रिम हस्ताक्षर से प्राथमिक दर्ज करा हास्यास्पद के शिकार हो गए तो आम लोगों से सप्ताह में एक दिन शुक्रवार को मिलने का फरमान जारी कर अपने आपको डीएम के समकक्ष ला खड़ा किया। आयुक्त की कार्रवाई से बचने के लिए राजस्व कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया तो बगैर कारण बताये दाखिल खारिज व परिमार्जन के सैकड़ों लम्बित आवेदन को अस्विकृत कर दिया।
ताज़ा मामला फतेहपुर गांव का है जिसमें उन्होंने बगैर निषेधाज्ञा काम पर रोक लगाने का आदेश देकर एसडीएम के अधिकार को चुनौती दी है। मामला पूर्व प्रमुख रेणु देवी से जुड़ा है। उन्होंने एक भूमि खरीदी जिसका बजाप्ता दाखिल खारिज के साथ वर्षों से भूलगान की राशि जमा की जा रही है। जब उन्होंने उक्त जमीन में मकान निर्माण के लिए मिट्टी भराई कार्य आरंभ किया सीओ ने दुर्भावना से ग्रस्त होकर थानाध्यक्ष से काम बंद कराने का आदेश नहीं अनुरोध किया मानों वे मुजरिम हों। थानाध्यक्ष ने अनुरोध का सम्मान करते हुए फिलहाल काम बंद करने का निर्देश दिया तथा निर्देश के आलोक में पूर्व प्रमुख ने थानाध्यक्ष का सम्मान करते हुए मिट्टी भराई बंद कर दी।
क्या कहता है नियम
नियमत: किसी कार्य को अंचल अधिकारी को तत्काल बंद कराने का अनुरोध एसडीएम से करना है न कि थानाध्यक्ष से। एसडीएम अंचल अधिकारी या थानाध्यक्ष के प्रतिवेदन के आधार पर निषेधाज्ञा लागू कर सकते हैं बशर्ते कि शांति भंग होने की संभावना हो। लेकिन ऐसा न कर उन्होंने अपने अंधकारों का दुरुपयोग करते हुए थानाध्यक्ष से काम बंद कराने का अनुरोध किया न कि आदेश दिया।
अब सबसे बड़ा सवाल क्या वहां किसी तरह की शांति भंग हुई? उनके पास भूमि का वैध कागजात नहीं था? पूर्व के सीओ ने फर्जी दाखिल खारिज की? क्या डिमांड कायम करने के खुद सीओ को अधिकार डिमांड तोड़ने का है? पूर्व सीओ पर उन्होंने धोखाधड़ी की प्राथमिकी दर्ज कराई? ऐसे में वे खुद अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं कर रहे हैं? उच्चाधिकारियों को मामले पर संज्ञान लेना होगा, अन्यथा भूमि विवाद को खुद सीओ बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार माने जायेंगे।
भईया जी की रिपोर्ट