नवादा : प्रसिद्ध दिगंम्बर जैन संत 108 श्री विशल्य सागर जी महाराज ने कहा है कि वर माला जहां जीवन में फेरा डालने का काम करता है, वहीं सिद्ध प्रभु की माला जीवन का उद्धार करने में महती भूमिका अदा करती है। मुनिश्री आज नगर स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में आयोजित श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के अवसर पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए ये बात कही।
मुनिश्री ने कहा कि भक्ति सिद्धम् रूपम् यानि सुंदर बनने के लिए सौंदर्य प्रसाधन की नहीं, बल्कि अनंत सिद्ध प्रभु के भक्ति रस में डूबने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कोयला कभी उजला नहीं होता। उसे उजला बनने के लिए तपना पड़ता है। उसी प्रकार स्वयं को भक्ति की तपिश में तपाने के पश्चात ही मानव अनंत सौंदर्य को प्राप्त करता है। उन्होंने स्वयं को रूप से नहीं, अपितू भक्ति भाव के स्वरूप से सुंदर बनाने की बात कही।
मुनिश्री ने कहा कि भूमि में रोपित एक बीज फल बनता है, तो मुंह में रोपित बीज मल बनता है। यह मानव के चरित्र पर निर्भर करता है कि उस बीज को फल का स्वरूप देना है अथवा मल का। उन्होंने कहा कि सिद्धचक्र विधान अनंत सिद्धों की आराधना का नाम है। उन्होंने अनंत सिद्धों की भक्ति गंगा में डुबकी लगा स्वयं की जीवन को कृतार्थ करने का आह्वान किया।
सामाजिक एकता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि माला की एक भी मोती बिखर जाए, तो वह खंडित हो जाती है। ऐसी व्यवस्था हो कि सामाजिक माला की एक भी मोती बिखरने न पाए। उन्होंने उत्थान के लिए भेदभाव रहित सामाजिक समरसता की भावना को अपने व्यवहारिक जीवन में आत्मसात कर स्थानीय जैन समाज से जुड़े लोगों का आह्वान किया।
भईया जी की रिपोर्ट