-मामला पीडीएस में भ्रष्टाचार का
नवादा : हर डाल पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा? बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही! कुछ इसी प्रकार की स्थिति रजौली अनुमंडल मुख्यालय में पीडीएस में फैले भ्रष्टाचार का है। पहले बगैर जांच पड़ताल के ही पीडीएस की अनुज्ञप्ति दे दी। जब जांच में समिति का फर्जीवाड़ा सामने आया तब अनुज्ञप्ति रद्द के बजाय स्पष्टीकरण पर स्पष्टीकरण मांगी जा रही है। ऐसा लाभ- शुभ के लिए किया जा रहा है। फिर भ्रष्टाचार का सुरसा की भांति बढ़ना तय माना जा रहा है। यही कारण बाकी कि अब आम अवाम पीडीएस के विरुद्ध शिकायत करने से तौबा करने लगे हैं। मामला मेसकौर प्रखंड से जुड़ा है।
जिले के बहुचर्चित आरटीआई कार्यकर्ता प्रणव कुमार चर्चील ने मेसकौर प्रखंड श्रमिक सहयोग समिति के नाम निर्गत पीडीएस अनुज्ञप्ति से संबंधित दस्तावेज की मांग सूचना के अधिकार के तहत की थी। पहले गलत सूचना उपलब्ध कराकर रजौली एसडीओ ने दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया। जब मामला आयुक्त के पास पहुंचा और उन्होंने मामले को गंभीरता से लेकर एसडीओ को सशरीर उपस्थित होकर जबाब की मांग की तो स्पष्टीकरण पर स्पष्टीकरण की मांग की जा रही है।
पहला स्पष्टीकरण 28 अगस्त तो पुनः 31 अगस्त को भेजे गए स्पष्टीकरण में 48 घंटे के अंदर स्पष्टीकरण का जबाब देने का आदेश निर्गत किया गया है। समय सीमा समाप्त हुये चार दिन व्यतीत होने के बावजूद कार्रवाई शून्य है। जी हां! ये हम नहीं खुद एसडीओ द्वारा जारी स्पष्टीकरण आदेश कह रहा है जिससे भ्रष्टाचार की बू आ रही है।
आश्चर्य यह कि उक्त मामले में समाहर्ता कहते हैं रजौली एसडीओ की करतूत हमसे न पूछा जाय। क्योंकि वे नियम कानून से उपर हैं। इसका आडियो मेरे पास सुरक्षित है लेकिन जनहित में इसे सार्वजनिक करना न्याय संगत नहीं है। बहरहाल आगे आगे देखिये होता है क्या? ने दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया। जब मामला आयुक्त के पास पहुंचा और उन्होंने मामले को गंभीरता से लेकर एसडीओ को सशरीर उपस्थित होकर जबाब की मांग की तो स्पष्टीकरण पर स्पष्टीकरण की मांग की जा रही है।
पहला स्पष्टीकरण 28 अगस्त तो पुनः 31 अगस्त को भेजे गए स्पष्टीकरण में 48 घंटे के अंदर स्पष्टीकरण का जबाब देने का आदेश निर्गत किया गया है। समय सीमा समाप्त हुये चार दिन व्यतीत होने के बावजूद कार्रवाई शून्य है। जी हां! ये हम नहीं खुद एसडीओ द्वारा जारी स्पष्टीकरण आदेश कह रहा है जिससे भ्रष्टाचार की बू आ रही है। आश्चर्य यह कि उक्त मामले में समाहर्ता कहते हैं रजौली एसडीओ की करतूत हमसे न पूछा जाय। क्योंकि वे नियम कानून से उपर हैं। इसका आडियो मेरे पास सुरक्षित है लेकिन जनहित में इसे सार्वजनिक करना न्याय संगत नहीं है। बहरहाल आगे आगे देखिये होता है क्या?
भईया जी की रिपोर्ट