इस बार की दीपावली 31 अक्टूबर को मनाई गई। इस कारण इस बार की यह दीपावली राजनीतिक तौर पर भी विशेष थी। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इसी दिन आजाद भारत को एकता के सूत्र में पीरोने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ था, तो दूसरी ओर आइरन लेडी के नाम से विश्व विख्यात भारत की महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपने ही आवास में शहीद शहीद कर दिया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गुजरात के केवडिया में सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के पास आयोजित भव्य समारोह में कहा कि यह राष्ट्रीय एकता दिवस विशेष है क्योंकि आज दिवाली भी है। इस अवसर के बहाने हम भारत के ऐसे दो प्रधानमंत्रियों के व्यक्तित्व और कर्तित्व के बारे में चर्चा करेंगे जो विपरीत परिस्थितियों को अवसर में बदलने में दक्ष माने जाते हैं।
अलग—अलग दौर की दिवाली भी अलग—अलग
पहले बात करते हैं श्रीमती इंदिरा गांधी की। इंदिरा गांधी के बारे में बहुत पुस्तकें लिखी गयी है। उनके बारे में बहुत लोगों ने बहुत कुछ लिखा है। हम बात शुरू करते हैं प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह की टिप्पणी से। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद खुशवंत सिंह ने साप्ताहिक रविवार में उनके बारे में ऐ लंबा लेख लिखा था जिसमें उनके साथ संबंधों का उन्होंने जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा कि ‘‘सत्ता की राजनीति के खेल में श्रीमती (इंदिरा) गांधी कोई मर्यादा का पालन करने में विश्वास नहीं करती थीं’’।
इंदिरा होती तो बंगाल में लग गया होता राष्ट्रपति शासन
खुशवंत सिंह के बाद में भारत के सुप्रसिद्ध पत्रकार पद्मश्री सुरेंद्र किशोर की एक टिप्पणी का जिक्र यहां करना उचित होगा। इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि के अवसर पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर जिज्ञासा के रूप में उन्होंने लिखा कि यदि आज इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री होतीं तो पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगता या ममता बनर्जी का ही शासन बना रहता?
क्या है शासन के तुलनात्मक विश्लेषण का आधार
प्रश्नवाचक चिह्न के साथ उनकी यह टिप्पणी इंदिरा गांधी के साथ नरेंद्र मोदी की तुलना का एक जायज आधार देता है। पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार की जांच ऐजेंसियों के साथ हिंसा की कई घटनाएं हो चुकी हैं। वहां तुष्टिकरण की राजनीति के तहत गरीब व लाचार लोगों पर अत्याचार की कई कहानियां मीडिया के माध्यम से वायरल हो रही हैं। वहां कानून-व्यवस्था, भारत की एकता-अखंडता और सार्वभौमिकता के समक्ष खतरा स्पष्ट है फिर भी नरेंद्र मोदी की सरकार वहां राष्ट्रपति शासन नहीं लगा पा रही है।
इंदिरा ने 50 बार किया धारा 356 का प्रयोग
दूसरी ओर इंदिरा गांधी के शासनकाल पर यदि ध्यान दें तो वाजिब कारणों के अलावा अपने राजनीतिक विरोधियों को पस्त कर देने के लिए भी उन्होंने संविधान की धारा 356 का प्रयोग कर अपने शासन काल में 50 बार राज्यों की चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त कर में राष्ट्रपति शासन लगाया। 1966 से 1977 तक यानी अपने प्रथम प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने 35 बार राष्ट्रपति शासन लगाया। उनकी यह प्रवृति बढ़ती गयी और एक समय ऐसा आया जब पूरे देश में ही उन्होंने आपातकाल की घोषणा कर दी थी।
नटवर सिंह की किताब ने खोले कई राज
इंदिरा गांधी के साथ बहुत दिनों तक काम करने वाले नटवर सिंह ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जियाउल हक से मिलते समय इंदिरा गांधी ने मजाकिया लहजे में कहा था कि लोग आपको लोकतांत्रिक कहते हैं और मुझे तानाशाह। वर्तमान कांग्रेसी व उनके सहयोगी दलों के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तानाशाह कहते नहीं थकते। कांग्रेस की सर्वोच्च नेता यानी हाई कमान सोनिया गांधी ने तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कह दिया था।
नरेंद्र मोदी और किसान आंदोलन की कसौटी
अब बात करते हैं नरेंद्र मोदी की। नरेंद्र मोदी दृढ संकल्प के धनी है। सोचसमझकर निर्णय करते है, लेकिन निर्णय के बाद पीछे नहीं हटते। इंदिरा गांधी की ही तरह यह भी आलोचना से नहीं घबराते। लेकिन, लोकतांत्रिक मूल्य जब सामने आते हैं तब व अत्यंत धैर्य से काम लेते हैं। इसका उदाहरण किसानों का आंदोलन और पश्चिम बंगाल की स्थिति है।
नरेंद्र मोदी के स्थान पर यदि इंदिरा गांधी होतीं तो किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार का रूख कुछ दूसरा होता। पश्चिम बंगाल से जिस प्रकार की रिपोर्टें आ रही है, उसमें वहां अब तक राष्ट्रपति शासन लग गया होता।
संस्कार गत व्यवहार की दृष्टि से यदि देखें तो नरेंद्र मोदी की कार्यशैली व सोच सरादर पटेल से मिलती है। वहीं इंदिरा गांधी की व्यावहारिक दृष्टि पर बहुत हद तक उनके पिता जवाहरलाल नेहरू का प्रभाव था। इंदिरा गांधी ने अपने पिता की ही तरह अपने पुत्र संजय और राजीव को राजनीति में अपने उतराधिकारी के रूप में स्थापित किया। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की तरह अपने परिवार के किसी व्यक्ति को राजनीति में नहीं लाया और ना ही उसे अपना उतराधिकारी ही बनाया।
जहां तक विदेशों में भारत के स्वाभिमान व गौरव को बढ़ाने की बात है तो शक्तिशाली बहुमत के कारण इन दोनों नेताओं ने सशक्त राष्ट्र के रूप मंे भारत की छवि को स्थापित करने में उल्लेखनीय योगदान ििदया है। इस मामले में इन दोनों नेताओं में समानता दिखती हैं। इन दोनों पर भारत की जनता ने पूरा विश्वास किया।