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मनोरंजन

मूल्य आधारित सिनेमा के ‘सूरज’ को सम्मान

सूरज बड़जात्या को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलना भारतीय मूल्यों का सिने जगत में पुनर्स्थापना है, क्योंकि सूरज भारतीयता से सिक्त फिल्म उद्योग के अग्रणी प्रवक्ता हैं। वैल्यू बेस्ड कंटेंट रचने के लिए जाने जाने वाले राजश्री कैनवस के सूरज बड़जात्या 3-G चितेरा हैं...

Prashant Ranjan
Last updated: August 23, 2024 4:21 pm
By Prashant Ranjan 2.5k Views
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5 Min Read
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प्रशांत रंजन

15 अगस्त 1947 को जब भारत एक नया आकार ले रहा था, उसी दिन ताराचंद जी ने राजश्री प्रोडक्शन की नींव रखी थी। उन्होंने एक बाद एक ऐसी फिल्मों का निर्माण किया कि वे सिने जगत में नए अध्याय लिखती गईं।

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आईआईटी में पढ़ना आज भी किसी युवा के लिए सपने से कम नहीं होगा। वहीं, सिने शिल्प के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा देखिए कि आईआईटी खड़गपुर में नामांकन पा चुके अपने पुत्र राजकुमार बड़जात्या को अपनी विरासत संभालने के लिए बुला लिया। इस प्रकार राजश्री का काम अगली पीढ़ी को हस्तांतरित हुआ और फिर सही समय पर ताराचंद जी ने अपने को पोते सूरज को 1989 में राजश्री से जोड़ लिया और इस प्रकार हिंदी सिनेमा में एक नए सूरज का उदय हुआ।

1989 में आई ‘मैंने प्यार किया’ बतौर निर्देशक सूरज की पहली फिल्म थी और उनके दादा ताराचंद जी की बतौर निर्माता अंतिम फिल्म। इस प्रकार तारा बाबू जाते-जाते भी अपने पोते को अपनी छत्रछाया में निर्माण की बारीकियां सिखा गए। अपने पितामह व पिता से मिले मूल्यों का ही परिणाम है कि वैश्वीकरण की आंधी में जब अच्छे-अच्छे फिल्मकारों ने रीढ़ झुका ली, वहीं सूरज ने अडिग रहकर राजश्री के मूल्यों को न केवल जीवित रखा है, बल्कि उसे विस्तार भी दिया है। बाजार में आज भी मजबूती से बने हुए हैं।

यह कहना बहुत जरूरी है, क्योंकि जिस जमाने में निर्लज्जता से ‘पब्लिक डिमांड’ पर या ‘कहानी की मांग’ के नाम पर चरस बोया जाता है, वहां सूरज ने सलीके ने आइना दिखाया है। उन्होंने दिखाया है कि शिल्प पर पकड़ और अपने कौशल पर विश्वास हो, तो द्विअर्थी संवादों के बिना, हिंसात्मक दृश्यों के बिना, फूहड़ दूश्यों के बिना भी, एंटी-फैमिली छौंक के बिना भी ब्लॉकबस्टर फिल्में बनायी जा सकती हैं। उनकी अधिकतर फिल्मों के किरदार ‘प्रेम’ ने कई पीढ़ियों का स्वस्थ मनोरंजन किया है। 90 के दशक का हर युवा संस्कारी प्रेम बनना चाहता है। यही सूरज बाबू की उपलब्धि है।

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सूरज बड़जात्या ने अपने 35 साल के लंबे करियर में केवल सात फिल्में निर्देशित की हैं। औसतन पांच साल में एक फिल्म। विगत 17 वर्षों में केवल दो फिल्में। सब की सब सुपरहिट, अधिकतर ब्लॉकबस्टर। ट्रेड पंडित कहते हैं कि 1975 में शोले के बाद ​हिंदी फिल्मों की कमाई को प्री-शोले और पोस्ट-शोले में बांटकर देखते थे। जब सूरज की मात्र 200 प्रिंटों में रिलीज हुई ‘हम आपके हैं कौन’ (HAHK) ने सारे रेकॉर्ड ध्वस्त कर डाले थे, तो ट्रेड पंडितों को नया मानक गढ़ना पड़ा: प्री—HAHK और पोस्ट—HAHK, कमाई के तुलनात्मक अध्ययन के लिए। बहुत बाद में बहुबली ने इस मानक को बदला।

वर्ष 2022 के सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सूरज बड़जात्या को मिला है। यह हर साल मिलने वाला पुरस्कार है, जो किसी न किसी निर्देशक को मिलता है।… तो इसमें नया क्या है? नया यह है कि सूरज ने कभी इसकी परवाह नहीं की। न ही किसी मंच पर अपने सिने कौशल का दावा किया, न ही सिने शिल्प के श्रेष्ठता के बोध से ग्रस्त रहे, न ही किसी पॉलिटिकल लाइन के दबाव में रहे और न किसी सिस्ट’म ने इन्हें बौद्धिक फिल्मकार मानने की जहमत उठाई। स्वाभाविक है कि घर को पिंजरा कहने वालों को सूरज नहीं सुहाएंगे। सूरज ने सदैव विवाह संस्था को सशक्त करने व कुटुंब संस्था की वकालत करने वाली फिल्में निर्देशित कीं।

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चूंकि उनकी नीयत स्वच्छ है, तो भारत के सिने प्रेमियों ने झोली भरकर उन्हें रिर्टन गिफ्ट सौंपा है। ‘ऊंचाई’ से उन्होंने अपना मिजाज बदला और अपनी फिल्म के कथानक के लिए भिन्न राह चुनीं। हालांकि, उसमें मित्रता के संबंध प्रमुख थे, फिर भी परिवार का तत्व सतह के नीचे तैर रहा था। यही सूरज की यूएसपी है, वे मूल्यों से पृथक नहीं करते स्वयं को।

हां…तो सूरज बड़जात्या को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलना भारतीय मूल्यों का सिने जगत में पुनर्स्थापना है, क्योंकि सूरज भारतीयता से सिक्त फिल्म उद्योग के अग्रणी प्रवक्ता हैं। वैल्यू बेस्ड कंटेंट रचने के लिए जाने जाने वाले राजश्री कैनवस के सूरज बड़जात्या 3-G चितेरा हैं। बाजार ग्राफ व दर्शकों के दिलों में पहले से वे विराजमान हैं, अब देश ने उन्हें पुरस्कृत कर औपचारिक कमी भी पूरी कर दी है। सूरज बड़जात्या को बधाई।

TAGGED: cinema, national film awards, Sooraj Barjatya, Uunchai
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