पटना/लखनऊ : “गीता सिर्फ पढ़ने का ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन में उतारकर जीने की प्रेरणा है। विश्व शांति और राष्ट्र सेवा का मार्ग ‘गीता’ के आचरण से ही प्रशस्त हो सकता है।” यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने लखनऊ में आयोजित दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव के मुख्य अतिथि के रूप में कही।
उन्होंने कहा कि कार्यक्रम संपन्न जरूर हुआ है, लेकिन हमारा कर्तव्य केवल यहीं तक सीमित नहीं है। गीता के 700 श्लोकों में जीवन का गूढ़ ज्ञान निहित है। यदि प्रतिदिन दो श्लोक पढ़कर उस पर मनन किया जाए और उसके सार को आचरण में लाया जाए, तो एक वर्ष में व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ‘गीतामय’ होने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
डॉ. भागवत ने कहा कि जिस प्रकार महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन मोह से ग्रस्त हो गए थे, आज पूरा विश्व भी भय, मोह और दुविधाओं से जूझ रहा है। तकनीकी और भौतिक उन्नति के बावजूद भीतरी शांति और संतुलन का अभाव बढ़ता जा रहा है। हजारों वर्षों पहले वर्णित संघर्ष, क्रोध और विकृतियां आज भी मौजूद हैं। ऐसे समय में सही मार्गदर्शन केवल श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान में ही निहित है।
सरसंघचालक ने कहा कि गीता अनेक उपनिषदों और दर्शनों का सार है। भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम उपदेश ही यह है कि समस्याओं से भागो मत, उनका सामना करो। यह अहंकार मत पालो कि “मैं करता हूँ”, क्योंकि वास्तविक कर्ता परमात्मा हैं। मृत्यु निश्चित है, शरीर परिवर्तनशील है—इन सत्यों की समझ ही जीवन को संतुलित बनाती है। गीता का संदेश जीवन को सार्थक, समर्पित और सफल दिशा देता है। परोपकार-भाव से किया गया छोटा से छोटा कार्य भी श्रेष्ठ माना गया है। उन्होंने कहा कि दुविधाओं से मुक्त होकर राष्ट्र सेवा में आगे बढ़ना ही हमारा परम कर्तव्य है और यही मार्ग भारत को पुनः विश्वगुरु बना सकता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्यक्रम में कहा कि भारत का प्रत्येक सनातन धर्मावलंबी गीता के 18 अध्यायों और 700 श्लोकों को श्रद्धा भाव से आत्मसात करता है। उन्होंने कहा कि धर्म केवल उपासना पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। हमारे यहां हर कार्य धर्म के भाव से होता है—जहां धर्म होगा, वहीं विजय होगी। श्रीकृष्ण का ‘निष्काम कर्म’ का उपदेश आज भी प्रासंगिक है।
मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यपद्धति का उल्लेख करते हुए कहा कि संघ का आधार समाज की शक्ति और सहयोग है, न कि किसी बाहरी फंडिंग का सहारा। “संघ का स्वयंसेवक बिना किसी भेदभाव—जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र—के पीड़ित की सेवा करता है। यही संघ की वास्तविक प्रेरणा है, और पिछले सौ वर्षों में सेवा कार्य में कभी भी कोई सौदेबाजी नहीं हुई,” उन्होंने कहा।
गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंदजी महाराज, रामानंद आचार्य श्रीधर महाराज, और स्वामी परमात्मानंदजी महाराज ने भी गीता के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, धर्म और जीवन मूल्य जैसे विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यह आयोजन प्रदर्शन नहीं, बल्कि प्रेरणा का संदेश है। कार्यक्रम का सफल संयोजन मणि प्रसाद मिश्र ने किया। इस अवसर पर अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्तरंजनजी, वरिष्ठ प्रचारक प्रेमकुमारजी, शिवनारायणजी, अनिलजी, कौशलजी, कृपाशंकरजी, यशोदानंदनजी, डॉ. अशोकजी, डॉ. लोकनाथजी सहित अन्य अनेक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
सत्यनारायण चतुर्वेदी की रिपोर्ट