राजनीतिक आजादी के 77 वर्ष बाद भी भारत आज भी औपनिवेशिक मानसिकता का गुलाम क्यों है? भारत का स्व और स्वत्व आजादी के सात दशक बाद भी क्यों नहीं जाग सका है? ऐसे कई प्रश्न भारत राष्ट्र की मौलिकता को समझने वालों को बेचैन करते रहे हैं। इन्हीं प्रश्नों के उत्तर के रूप में लोकमंथन का प्रयोग सामने आया है। भारत का हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में देश, काल और स्थिति के व्यावहारिक धरातल पर प्रथम लोकमंथन का आयोजन हुआ था। गुलाबी ठंड के सुहाने मौसम में 12 से 14 नवम्बर 2016 तक पहली बार हुए इस अर्थपूर्ण आयोजन में भारत राष्ट्र की लोक अभिव्यक्ति आत्मविश्वास के साथ प्रकट दिखी थी। विदेशों से आयातित सिद्धांत, नीति-रीति, ज्ञान, शोध और आविष्कार को यहां आजादी के बाद पहली बार भारत का लोक अपनी कसौटी पर तौलता दिखा।
भोपाल से शुरू हुई इस पहल का हैदराबाद में उत्कर्ष
भोपाल से शुरू हुई यह यात्रा प्रकृति की गोद में बसे झारखंड की राजधानी से होते हुए पूर्वोत्तर भारत में गुवाहाटी तक पहुंच गयी। कोरोना काल में अल्प विराम के बाद यह यात्रा अब दक्षिण की ओर भाग्य नगर यानी हैदराबाद पहुंच चुकी है। 20 नवम्बर से लेकर 24 नवम्बर 2024 तक यहां जो लोककुंभ की मनोरम छटा उभरेगी, उसमें सम्पूर्ण भारत और उसकी क्षमता दृश्यमान होगी। लोकमंथन की यह यात्रा धीरे-धीरे व्यापक होते हुए एक बड़े अभियान का रूप धारण करने लगी है। परिणामस्वरूप आज एक विशाल वटवृक्ष की तरह इसकी कई शाखाएं धरती से जुड़कर उसके प्रभाव क्षेत्र का विस्तार कर रही हैं।
सरकार्यवाह होसबाले की ‘क्राति’ को धार देंगी राष्ट्रपति
लोकमंथन के रूप में भारत के इस विराट लोकसमागम का उद्घाटन भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू करेंगी। वहीं चार दिवसीय मंथन का समापन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक डॉ. मोहन भागवत करेंगे। भारत को औपनिवेशिक मानसिकता की गुलामी से मुक्ति दलाने के इस प्रयोग के शिल्पकार आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले हैं। प्रथम लोकमंथन के समापन के समय उन्होंने इसके पीछे के विचारमंथन के कुछ बिंदुओं पर सूत्र रूप में प्रकाश डाला था। उन्होंने कहा था कि अपनी गलतियों के कारण हम शताब्दियों तक गुलाम बने रहे। ज्ञान की भूमि के वासियों पर भी गुलामी का धीेरे-धीेर असर हुआ। हम अंग्रेजी शासन से मुक्त हो गए हैं। गुलामी से राजनीतिक स्वतंत्रता एक मूर्त प्रक्रिया है जबकि उसी गुलामी से मानसिक मुक्ति एक अमूर्त तत्व है। लोकमंथन इस अमूर्त गुलामी से मुक्ति दिलाने का एक अभियान है।
यहां समझें क्या है ‘लोकमंथन’ का असल मकसद?
अंग्रेजों ने हमारी सांस्कृतिक एकात्मता की चेतना को नष्ट करने का जो कुचक्र रचा वह दुर्भाग्य से आजादी के बाद भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में जारी रहा। इसके कारण स्वतंत्र भारत का लोक आत्महीनता, तंत्र से भय जैसे भयंकर रूप से ग्रसित रहा। इस समस्या के समाधान के लिए एक प्रयोग के रूप में लोकमंथन को देखा जा सकता है, जिसमें लोक संस्कृति, लोक संस्कार और लोक बुद्धि के साथ लोक विज्ञान भी अत्यंत प्रभावशाली रूप में जीवंत दिखता है।