पार्टनर की पालिटिक्स- पार्ट- 2
जब लालू यादव ने कहा था यादवों का नेता बनने का सपना देखना छोड़ दो वरना…..
पप्पू यादव पाताल में भेज देंगे
पप्पू यादव पाताल में भेज देंगे
1990 का दशक बिहार के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक इतिहास में काला युग माना जाता है। दुर्दशा के कारण बिहार के लोगों के चेहरे मुर्झाये हुए थे, वही जातीयता एवं जातीय कटुता के खाद पानी से वोट की राजनीति लहलहा रही थी। सामाजिक न्याय का नारा बुलंद था, समाज में हाषिए पर खड़े दलित व पिछड़ों के अंदर आत्मविश्वास का उभार हुआ था।
लेकिन, इसी काल खंड में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत सृजित मुख्यमंत्री का पद व्यवहार में महाराजा जैसा हो गया था। पिछड़ों एवं दलितों के एकमुस्त वोट के सहारे तंत्र को मनमाने तरीके से हांकने में लालू प्रसाद यादव कामयाब हो गए थे। रामलखन सिंह यादव को छोड़कर बिहार की शक्तिशाली यादव जाति एकमत से लालू यादव के पीछे खड़ी थी। वोट की राजनीति के चतुर खिलाड़ी लालू यादव समझ रहे थे कि वे अब यादवों के सर्वमान्य नेता हैं और यही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है। इसके बाद उन्होंने किसी भी यादव नेता को अपने समकक्ष खड़ा नहीं होने दिया।
जब लालू यादव एक सामान्य विधायक थे, तब से पप्पू यादव उनके सम्पर्क में थे। वर्ष 1989 में कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद विरोधी दल यानी लोकदल में नेता प्रतिपक्ष का चुनाव होना था। अनूप लाल यादव विरोधी दल के नेता पद के प्रबल दावेदार थे। लेकिन, लालू यादव ने अनूप लाल यादव के साले के बेटे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के सहयोग से नेता विरोधी दल का पद प्राप्त कर लिया। इसके बाद वे जनता दल की टिकट पर छपरा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और सांसद बन गए। कुछ ही दिनों बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस परास्त हो गयी और कई पार्टियों के सहयोग लालू यादव मुख्यमंत्री बन गए।
नौगछिया में नरसंहार
उनके मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही माह बाद नौगछिया में एक नरसंहार की घटना हो गयी। नरसंहार की सूचना मिलते ही सिघेश्वर से विधायक पप्पू यादव वहां पहुंच गए और राहत सहयोग में लग गए। उनके बाद मुख्यमंत्री लालू यादव वहां पहुंचे। घटना स्थल पर पप्पू यादव को सक्रिय देख लालू यादव का तेवर गरम हो गया। घटना स्थल पर ही उन्होंने पप्पू यादव को हड़काते हुए कहा कि यादव नेता बनने का सपना देखना छोड़ दो नहीं तो सीधे पाताल लोक भेज देंगे।
इसके बाद पप्पू यादव और लालू यादव में छतीस के आंकड़े हो गए। लालू के वरोध के बावजूद पप्पू 1991 में पूर्णिया से निर्दलीय सांसद बने।
इसके बाद वे मुलायम सिंह यादव के करीबी बन गए और 1996 व 1999 में सपा की टिकट से पूर्णिया के सांसद बने। इसके बाद पटना उच्च न्यायालय से हत्या मामले में सजायाफ्ता होने के बाद पप्पू यादव बहुत दिनों मक नेपथ्य में रहे। जब सर्वोच्च न्यायालय से बरी हुए तब लालू यादव ने उनपर डोरे डालने शुरू दिए. उस समय लालू यादव के बुरे दिन चल रहे थे. वे अपने राजनीतिक गाडफादर शरद यादव से मधेपुरा से चुनाव हार गए थे. अपने हार का बदला लेने के लिए लालू ने पपू के पीठ पैर हाथ जख दिया. राजद की टिकेट पर पापू को शरद यादव के विरोध में चुनावी मैदान में उतार दिया। पप्पू यादव से शरद यादव चुनाव हार गए।
अब 2024 में आते है. पप्पू यादव ने जब कांग्रेस के टिकट से पूर्णिया से चुनाव लड़ने की तैयारी की तो फिर लालू यादव उनके सामने आ गए। अपने पुत्र तेजस्वी यादव को यादवो के एकछत्र नेता बनाये रखने के लिए उन्होंने पप्पू यादव का टिकट कटवा दिया।
अब पप्पू यादव पुराने दिनों की बाते याद करते हुए कहते फिर रहे हैं कि लालू यादव यादवांे के नेता नहीं बल्कि अपने परिवार के लिए यादवों की बलि चढ़ाने वाले नेता है।