लालू यादव और नरेंद्र मोदी में क्या है समानता? आइए जानते हैं
लालू प्रसाद यादव और नरेंद्र मोदी दोनों विपरीत ध्रुव पर दिखते हैं। इन दोनों के बीच कोई तुलना नही हैै लेकिन, इन दोनों के शक्तिशाली नेता बनने की कहनी में कुछ समानता जैसी बात भी है।
1990 की दशक में लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उस समय बिहार के पिछड़ों को लगता था कि उनके हित की रक्षा के बारे में उस समय की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस विचार ही नहीं करती। इस स्थिति में जब लालू यादव ने दृढता से पिछड़ों के हक की बात करनी शुरू कर दी तब पिछड़े एकजुट होकर उनके साथ खड़े हो गए। इसके बाद लालू यादव की गिनती भारत के शक्तिशाली नेताओं में की जाने लगी।
ठीक उसी प्रकार से गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के समक्ष गोधरा जैसी घटना आ गयी। तुष्टिकरण की राजनीति के कारण हिंदुओं को ऐसा लगता था कि उनके साथ होने वाले अत्याचार को लेकर राजनीतिक बिरादरी भेदभाव करती है। ऐसे में मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी हिंदुओं के वाजिब हक के लिए जब दृढ़ता से जब खड़े हो गए तब पूरे भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं का जबरदस्त समर्थन उन्हें मिल गया। आज भी भारत के बहुसंख्यक मतदाताओं का मानना है कि भाजपा को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दल हिंदुओं पर अत्याचार की अनदेखी करते हैं। ऐसे में भाजपा ही भारत के बहुसंख्यक मतदाताओं की पहली पसंद है।
अब लालू प्रसाद यादव और नरेंद्र मोदी में असमानता की बातें करते हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद यादव ने ने पैसा-परिवार को लेकर संयम नहीं बरता। इस मामले में वे अपनी समाजवादी संस्कार से अलग और कांग्रेस के करीब होते चले गए। वहीं मुख्यमंत्री के रूप में अपनी यात्रा शुरू करने वाले नरेंद्र मोदी की छवि एक तपस्वी की बन गयी। भ्रष्टाचार और परिवारवाद का समूल नाश करने वाले और भारत के हितों की रक्षा के लिए कोई भी बलिदान देने को तैयार रहने वाले नरेंद्र मोदी लोकप्रियता की पराकाष्ठा पर हैं। भारत ही नहीं बल्कि भारत के बाहर भी विकसित देशों में ये लोकप्रिय हैं।
भारत में उनकी छवि एक ऐसे राजनेता की है जिसके रहते देश की सीमाओं की ओर कोई गलत नजरों से देखने की हिम्मत नहीं कर सकता है। घुसपैठियों को बाहर ढकेलना, जेहादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा को लेकर भारत के लोग नरेंद्र मोदी पर आंख बंदकर विश्वास करते हैं।
भारत और विदेश की मीडिया या रिसर्च कंपनियां एकमत हैं कि भारत के लोकसभा चुनाव 2024 में राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व फिर से केंद्रीय मुद्दा बन गए हैं। लगभग सभी सर्वे रिपोर्ट में महंगाई और बेरोजगारी को अहम मुद्दा माना गया है लेकिन केंद्रीय मुद्दा ये नहीं हैं।
वहीं ‘‘सी.एस.डी.एस.-लोकनीति के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण से निष्कर्ष निकलता है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़े पैमाने पर वोट खींचने वाला मुद्दा पार्टी की छवि की जगह उसका शीर्ष नेतृत्व यानी नरेंद्र मोदी फैक्टर बन चुका है।’’