बिहार के शिक्षा विभाग में इस समय रोस्टर-रोस्टर का खेल चल रहा है। जहां शिक्षक भर्ती के टीआरई-3 के रिजल्ट में इसी रोस्टर कांड के चलते देरी हो रही है, वहीं असिस्टेंट प्रोफेसर की 2020 की बहाली अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। नियमों का जाल बुनकर किस तरह अधिकारी रोस्टर में हेरफेर और अन्य तरीकों से युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करते हैं, इसकी बानगी बिहार विवि सेवा आयोग द्वारा 2020 में निकाली गई असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली में मिल जाएगी।
2020 में निकली असिस्टेंट प्रो. के 4638 पदों पर बहाली
यह बहाली बिहार के विभिन्न विवि में कुल 4638 पदों के लिए निकाली गई थी। इसमें अलग—अलग कोटिवार और विषयवार रिक्त पदों की संख्या देते हुए आवेदन मांगे गए थे। दिव्यांग कोटा के अस्थि दिव्यांगता श्रेणी में भी 2 पद निर्दिष्ट किये गए थे। अभ्यर्थियों ने इन रिक्तियों के अनुसार अपने—अपने आवेदन भी भरे। असल खेल तब हुआ जब 2023 में विवि सेवा आयोग ने संशोधन और परिमार्जन की बात कहते हुए फिर से विषयवार रिक्तयों की सूची निकाली। यह संशोधन और परिमार्जन स्वतंत्रता श्रेणी तथा दिव्यांग श्रेणी की रिक्ति को जोड़ने के नाम पर की गई। लेकिन इस नई सूची में किसी एक कोटी में रिक्त पदों की संख्या बढ़ा दी गई तो किसी दूसरी श्रेणी में साफ रिक्त पद ही गायब कर दिये गए।
परिमार्जन के नाम पर दिव्यांग कोटे में हेरफेर
दरअसल इस बहाली के लिए बक्सर निवासी एक अभ्यर्थी गजेंद्र ने राजनीति विज्ञान के अस्थि दिव्यांग कोटे में रिक्त 2 पदों के लिए फॉर्म भरा। लेकिन गजेंद्र तब हैरान रह गए जब 2023 में निकाली गई संशोधित सूचि में अस्थि दिव्यांग कोटे के दोनों पद गायब कर इसे शून्य कर दिया गया। यह सरासर सुप्रीम कोर्ट के सरकारी नौकरियों में चयन और नियुक्ति प्रक्रिया में दिये गए फैसले के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में राजस्थान के युवा अभ्यर्थियों के इसी तरह के एक मामले फैसला दिया था कि भर्ती प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद बीच में नियम नहीं बदले जा सकते।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लंघन
अब चूंकि बिहार राज्य विवि सेवा आयोग ने असिस्टेंट प्रोफेसर बहाली की प्रक्रिया 2020 के सितंबर माह में ही शुरू कर दी थी और आवेदकों ने फॉर्म भी भर दिया, ऐसे में 2023 में नियमों में परिमार्जन का हवाला देते हुए बदलाव और रिक्तियों की संख्या कम—ज्यादा करना सरासर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन होगा। विवि सेवा आयोग द्वारा रिक्यिों में यह बदलाव संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत भी अवमानना का है। चौंकाने वाली बात यह है कि जब भर्ती निकाली गई थी, तब जिस श्रेणी में 2 पद रिक्त दिखाए जाते हैं, उसमें परिमार्जन और संशोधन के बाद अचानक ये 2 पद कहां गायब हो गए, इसका जवाब किसी के पास नहीं। ऐसे में गजेंद्र और उन जैसे बिहार के कई युवा प्रतिभागी दर—दर भटकने को मजबूर हैं।
पूरे मामले पर क्या कहना है विवि सेवा आयोग का
इस मामले में विवि सेवा आयोग का कहना है कि 2020 में असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली का विज्ञापन निकाला गया था। इसमें आरक्षण के रोस्टर का पालन ठीक से नहीं होने का मामला सामने आया था। पटना हाईकोर्ट ने रोस्टर फिर से तैयार करने का आदेश फरवरी 2023 में दिया था। इसके आधार पर शिक्षा विभाग ने रोस्टर में संशोधन कर आयोग को उपलब्ध करा दिया जिसके बाद संशोधित और परिमार्जित रिक्तियों की सूची जारी की गई है। अब राज्य के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के संशोधित रोस्टर से बैकलॉग की 755 और वर्तमान की 3353 रिक्तियों यानी कुल 4108 पदों पर बहाली होगी। आयोग ने इसको लेकर पूरी प्रक्रिया को स्पष्ट किया है।