डॉ. विद्यापति चौधरी
(प्राचार्य, पीएमसीएच)
अध्ययन, अध्यापन, शोध और उपचार के माध्यम से चिकित्सा विज्ञान को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला हमारा पटना मेडिकल कालेज अब सौ वर्ष का हो गया है। मेरा सौभाग्य है कि मैं इस कालेज के विद्यार्थी था और आज प्राचार्य के रूप में इसकी सेवा कर रहा हूं। हमारे इस संस्थान की स्थापना 25 फरवरी 1925 को हुआ था। 25 फरवरी को ही हम शताब्दी समारोह का मुख्य कार्यक्रम करेंगे। इस अवसर पर भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की उपस्थिति से हमारा यह आयोजन ऐतिहासिक होने वाला है।
स्थापना के समय इसका नाम प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज था। स्थापना के छह वर्ष बाद 1931 में इस कालेज में रेडियम संस्थान की स्थापना हुई थी जिसके माध्यम से कैसर रोग का उपचार किया जाता था। कैसर के उपचार में सक्षम होने के कारण इस कालंेज की ख्याति भारत से बाहर विदेशों तक फक्ल गयी थी। वर्मा, भूटान जैसे कई देशों से कैंसर के उपचार के लिए मरीज यहां आते थे। यहां से पटना मेडिकल कालेज का गौरवशाली इतिहास शुरू होता है।
इस संस्थान में महान शिक्षकों की बहुत समृद्ध परम्परा रही है। इन महान शिक्षकों के कारण पीएमसीएच की ख्याति भारत ही नहीं बल्कि यूरोप और अमेरिका के विकसित देशों तक फैली थी। यहां के विद्यार्थियों को वहां विशेष प्रतिष्ठा दी जाती थी। शताब्दी वर्ष के अवसर पर हम अपने इन विभूतियों का स्मरण कर रहे है। पैथोलाजी और मेडिसीन के प्रोफेसर डा. गया प्रसाद आउटडोर पेडियाट्रिक्स की स्थापना की थी। नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. दुखन राम ने भारत के राष्ट्रपति के आंख का आपरेशन किया था। डा.यूएन शाही ने महात्मा गांधी की पोती का आपरेशन कर उसे स्वस्थ किया था। डा. बी. मुखोपाध्याय ने बोन टीबी के इलाज की खोज की थी। डा. सीपी ठाकुर ने कालाजार की दवा की खोज की थी। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी के अपेंडिक्स का आपरेशन यहीं हुआ था। डा. एसएन आर्या, डा. शिवनारायण सिंह जैसे योग्य चिकित्सकों की ज्ञान प्रभा से जगमगाने वाले यह महान चिकित्सा शिक्षा संस्थान अनन्त काल तक मानवता की सेवा करता रहेगा।
इस ऐतिहासिक अवसर पर पीएमसीएच की विकास और विस्तार यात्रा की चर्चा भी आवश्यक है। स्थापना के 12 वर्ष बाद इस कालेज का प्रशासनिक भवन और उसके पास कुछ भवन बनकर तैयार हो गए थे जिसमें विभिन्न विभागों का संचालन शुरू हो गया। बाद में 1956 में राजेन्द्र सर्जिकल ब्लाक का निर्माण हुआ तब सभी प्रकार के आपरेशन के लिए सुविधा हो गयी। यहां एक बात की चर्चा आवश्यक हैं कि इस संस्थान के विकास में समाज के साधन सम्पन्न लोगों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। कालेज की जब स्थापना हुई थी उसी समय दरभंगा महाराज ने 5 लाख रूपए दान दिए थे। हथुआ, डुमरांव, अमावा जैसे स्टेट ने भी इस संस्थान के विकास के लिए बड़ी राशि दान में दी थी। बाद में टाटा ने भी इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया था। टाटा वार्ड इसका उदाहरण है। ब्रिटेन के युवराज ने इसकी आधारशीला भले रखी लेकिन, यह संस्थान बिहार और भारत के साधन सम्पन्न लोगों के सहयोग से खड़ा हुआ है। इतना ही नहीं उस समय इस कालेज में नामांकन कराने वाले साधारण परिवार के छात्र अपना शूल्क देने में असमर्थ होते थे। ऐसे मेधावी छात्रों को अपने बिहार के धनी लोग छात्रवृति देकर उनकी पढ़ाई पूरी कराने में मदद करते थे। सर गणेश दत का नाम उनमें अग्रगण्य है।
स्थापना के समय इस कालेज में 35 छात्रों का ही नामांकन होता था। वर्तमान समय में यहां 200 छात्रो का नामांकन होता है। वर्तमान समय में यहां 36 विभाग हैं जिनमें 26 विभागों में पीजी तक की पढ़ाई की व्यवस्था है। प्रिस आफ वेल्स कालेज की स्थापना के बाद बहुत दिनों तक मात्र चार विभागों में ही पीजी की पढ़ाई होती थी। भारत के पांच सबसे प्राचीन मेडिकल कालेजों में से एक प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज का विकास जनसहयोग से हुआ है। अतः शुरू से इसके संस्कार में गरीबों की सेवा का भाव बैठा हुआ है। पटना मेडिकल कालेज अस्पताल ऐसा संस्थान है जहां आने वाले गरीब मरीजों की देखभाल बिना किसी पैरवी के अवश्य की जाती है। इस अर्थ में पीएमसीएच अन्य अस्पतालों से भिन्न है। बिहार के गांव में रहने वालों के जेहन में आज भी पीएमसीएच की दूसरी छवि है। क्षमता से कई गुणा अधिक मरीज यहां आते हैं, इसके बावजूद हमारे डाक्टर व जूनीयर डाक्टर उनकी देखभाल करते हैं।
संसाधन की कमी के कारण रोगियों के उपचार में परेशानी की बात हम स्वीकार करते है। संसाधन के बिना अपेक्षित सुविधा देना संभव नहीं होता। लेकिन, सरकार के विशेष प्रयास से शताब्दी वर्ष के अवसर पर इस महान संस्थान को हरेक प्रकार से संसाधन सम्पन्न करने का कार्य द्रूतगति स ेचल रहा है। पीएमसीएच अब 5400 बेड वाला अस्पताल बनने जा रहा है। इस प्रकार यह मेडिकल कालेज अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा ओर विश्व का दूसरा बड़ा अस्पताल होने का कीर्तिमान स्थापित करेगा। हमारे पास वे सारी सुविधाएं होंगी जिसके आधार पर मरीजों की देखभाल के साथ ही शोध के क्षेत्र में भी हम विश्वस्तरीय कार्य करने में सक्षम होंगे।
पटना मेडिकल कालेज के गौरव को पुनर्स्थापित करने में इसके पूर्ववर्ती छात्रों की भी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। शताब्दी वर्ष के अवसर पर होने वाले उत्सव को हम ज्ञान उत्सव बनाने जा रहे हैं। हमारे पूर्ववर्ती छात्र अमेरिका जैसे विकसित देशों में चिकित्सा शिक्षा व शोध के रीढ़ बने हुए हैं। ऐसे महान चिकित्सा वैज्ञानिक अपने मातृ संस्थान के प्रति चिंतित रहते हैं। विदेश में जाकर बड़ा काम करने वाले पूर्ववर्ती छात्रों का फोन हमारे पास आ रहा है। दो सौ से अधिक ऐसे क्षमतावान डाक्टरों ने पंजीयन कराकर इस समारोह में आने की सूचना दी है। ऐसे विशेषज्ञों का व्याख्यान कराने की योजना बनी है। उनका मार्गदर्शन पीएमसीएच को विश्व मानक पर खड़ा करने में सहयोगी होगा। इस भव्य समारोह में 4500 से अधिक डिलिगेट के शामिल होने की संभावना है।
हमने पीएमसीएच के पुस्तकालय को विश्व मानक के अनुसार विकसित करने का प्रयास शुरू कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय जर्नल, विकसित देशों के प्रमुख मेडिकल कालेजों व संस्थानों के पुस्तकालय को ई-लाइब्रेरी के माध्यम से जोड़ा गया है। हमारा पुस्तकालय छात्रों के लिए 24 घंटे खुला रहेगा। इस समारोह को लेकर छात्रों में अद्भुत उत्साह है। ऐथलेटिक प्रतियोगिता, प्रदर्शनी, ललित कला प्रतियोगिता जैसे आयोजनों के माध्यम से विद्यार्थी इस ऐतिहासिक समारोह के हिस्सा बन रहे हैं। इसके उपलक्ष्य में 23 फरवरी को शताब्दी दौड़ का आयोजन किया गया है जिसे रन फार हेल्थ नाम दिया गया है।