पटना: बिहार में फिल्म नीति आने के बाद से सिनेमा को लेकर उम्मीदें बढ़ गई हैं। हमें यह बात स्पष्ट तौर पर समझ लेना चाहिए कि किसी भी बनी हुई फिल्म की सबसे बड़ी सफलता है उसे अधिक से अधिक लोग देखें। इसलिए फिल्म सिटी और शूटिंग के लिए परमिशन इत्यादि से अधिक आवश्यक है बिहार में बड़ी संख्या में सिनेमाघरों की उपलब्धता और यहां बनने वाली फिल्मों को उसमें दिखाए जाने का सरल रास्ता।
उक्त बातें फिल्मकार प्रशांत रंजन ने मंगलवार को कहीं। पटना पुस्तक मेले के अंतर्गत आयोजित सिनेमा उनेमा में महोत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में वे बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि 40 वर्षों की लंबी प्रतीक्षा के बाद बिहार सरकार फिल्म नीति लाई, यह सुखद है और इसके लिए सरकार की प्रशंसा होनी चाहिए। लेकिन, नीति संचिकाओं से बाहर जमीन पर ठोस और व्यावहारिक रूप में लागू होने से ही बिहार में फिल्म उद्योग आकार लेगा।
उन्होंने कहा कि सब्सिडी देने से नए फिल्मकारों को प्रेरणा और सहयोग मिलेगा। लेकिन, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सरकार कोई फिल्म प्रोडक्शन कंपनी नहीं है। इसलिए सब्सिडी के सम्मोहन से बाहर आकर वह केवल माहौल और व्यवस्था बना दे, बाकी फिल्मकार फिल्में बना लेंगे। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है बिहार में स्थानीय फिल्मकारो द्वारा बनाई जा रही फिल्मों को बड़े पर्दे और ओटीटी तक पहुंचने में सरकार का सहयोग। इतना होने के बाद ही बिहार में फिल्म उद्योग का सर्किट कंप्लीट होगा।
इससे पूर्व कार्यक्रम के आरंभ में जाने-माने फिल्म विश्लेषक प्रो. जय देव को पटना पुस्तक मेले के संयोजक अमित झा द्वारा प्रतीक चिन्ह, प्रमाणपत्र एवं स्टॉल देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संयोजन रविकांत द्वारा किया गया।
इस अवसर पर अखिलेंद्र मिश्र अभिनीत लघु फिल्म बारात और रंग का प्रदर्शन किया गया।
इस अवसर पर फिल्म इतिहासकार प्रो. एनएन पांडेय, डॉ गौतम कुमार, डॉ. रमेश कुमार, डॉ. उत्तम कुमार, रंगकर्मी मिथिलेश सिंह, एन. नरेंद्र आदि उपस्थित थे।