लोकपर्व छठ का एकदम खांटी और स्वदेशी अर्थशास्त्र है। छठ पर्व को लेकर यदि बाजार की बात करें तो यह यूरोप के किसी भी देश की आबादी से भी बड़ी आबादी से जुड़ा हुआ है। करीब 10 करोड़ लोग उपभोक्त या उत्पादक के रूप में इस पर्व के बाजार से जुड़े हुए हैं। अन्य भारतीय त्योहारों की तरह इसमें चीन या किसी दूसरे देश की कम्पनियां अपनी पैठ नहीं बना सकी हैं। यानी यह केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार की मेक इन इंडिया पॉलिसी का भी मूल आधार है। प्लास्टिक का उपयोग इस पर्व में सर्वथा वर्जित है। अतः प्लास्टिक प्रोडक्ट का बाजार इस पर्व में बिल्कुल ही नहीं है। इस पर्व में भगवान सूर्य की मूर्ति की पूजा नहीं होती, बल्कि मिट्टी का पींड बनाकर लोग छठी देवी का पूजन करते हैं।
स्वदेशी का भाव भरने वाला लोकपर्व
इस अवसर पर एक चीज की मांग इतनी अधिक होती है कि उसकी पूर्ति नहीं हो पाती। वह है अकवन यानी मदार के फल से निकलने वाली रूई से तैयार रक्त या पीत रंग वाला अर्क पत्ता। गोलाकार सूर्य की प्रतिकृति माने जाने वाले इस अर्क पत्ते का निर्माण बिहार और झारखंड में कुछ निश्चित स्थानों पर ही होता है। जंगल या नदी किनारे थोड़ा शुष्क स्थान पर मिलने वाले अकवन के पौधे से सावधानी पूर्वक उसके पके फल को तोड़ा जाता है। इसके बाद कुछ दिनों तक धूप में रखने के बाद उससे कपास यानी रूई निकाली जाती है। उसी रूई से बहुत पतले अर्क पत्ते का निर्माण किया जाता है। छठ या सूर्य से सम्बंधित अन्य पूजा के अवसर पर इसकी मांग होती है। मान्यता है कि अकवन जिसका नाम अर्क भी है, वह सूर्य देव का प्रिय पौधा है। सूर्य षष्ठी में अकवन या अर्क के पुष्प् का भी पूजन में उपयोग होता है। छपरा शहर से 30 किलोमीटर पूरब स्थित मझौआं गांव में अर्क पात निर्माण से लगभग 25 परिवार जुड़े हुए हैं। इसी प्रकार बिहार के औरंगाबाद, पलामू के गढ़वा जैसे स्थानों पर इसका निर्माण घरेलु उद्योग के रूप में होता है।
देसी अर्क पत्ते की आमेजन से मार्केटिंग
छठ के अवसर पर भारत के महानगरों के साथ ही विदेशों से भी इस अर्क पत्ते की मांग होती है। इसीलिए आमेजन ने इसकी मार्केटिंग की योजना बनाई है। अर्घ्य के समय इस अर्क पत्ते को अन्य प्रसाद के साथ सूप में रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस अर्क पत्ते पर सूर्य की शक्तियां आकर संघनित हो जाती हैं। इसीलिए लोग इसे अपने पूजा घरों में रखते हैं या घर के दरवाजे पर चिपका देते हैं। पीड़ा या कष्ट के समय इस अर्क पात को प्रभावित अंग से सटाया जाता है ताकि पीड़ा से छुटकारा मिल सके।
लघु व कुटीर उद्योग की वस्तुओं का प्रचलन
छठ के अवसर पर बांस से निर्मित सूप, दउरा, चंगेली यानी छोटी टोकरी का अर्ध्य के लिए इस्तेमाल होता है। वहीं मिट्टी के वर्तन का उपयोग प्रसाद बनाने में किया जाता है। इस अवसर पर बांस से बने सामानों एवं मिट्टी के बने वर्तन की मांग खूब होती है। वहीं पीतल और कांसे के वर्तन का भी उपयोग इस अवसर पर खूब होता है। छठ एक ऐसा अवसर है जिसके बल पर पूरे वर्ष बांस उद्योग और परम्परागत ठठेरा यानी घातु के परम्परागत वर्तन बनाने वालों की रौनक बनी रहती है।
स्थानीय फलों और सब्जियों का स्वदेशी बाजार
छठ में स्थानीय स्तर पर उत्पादित फलों का उपयोग होता है जिसमें केला, अमरूद, अनारस, घाघर यानी बड़ी नींबू, जल फल सिंघाडा, सूथनी, सकरकंद, मूली, गन्ना, अनानास, सेव, नारंगी, कोहड़ा जैसे फलों एवं सब्जियों का उपयोग प्रसाद के रूप में किया जाता है। इसके साथ ही धी से बना ठेकुआ और नया चावल से बना कचवनियां भी छठ का प्रधान प्रसाद होता है। इस प्रसाद बनाने में गुड़ का उपयोग किया जाता है। इसका मतलब यह हुआ की छठ के अवार पर जो बाजार सजता है वह पूर्णतः स्वदेशी होता है।
दिवाली, दशहरा और होली से छठ का मार्केट अलग
जबकि दीपावली, दशहरा और होली जैसे पर्व के अवसर पर वैश्विक बाजार की शक्तियां अपने-अपने प्रोडक्ट की ऐग्रेसिव मार्केटिंग करती हैं। दिपावली के अवसर पर स्थानीय मिठाई बनाने वालों का बाजार समाप्त करने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा तरह-तरह के षड्यंत्र किए जाने की बातें सामने आयी हैं। मिठाई की जगह चौकलेट जैसे प्रोडक्ट को लाने के प्रयास होते रहे हैं और उसमें ये सफल भी रहे हैं। लेकिन, जब छठ की बात होती है तब ग्लोबल मार्केट फोर्स का कोई भी षड्यंत्र काम नहीं करता। छठ ऐ ऐसा पर्व है जो लोक के मन मिजाज में ऐसा व्याप्त है जिसे कोई डिगा नहीं सकता। इसीलिए यह भारत की सौम्य सम्पदा की पूरे विश्व में ब्रांडिंग करने के समर्थ है।
आधुनिकता की चकाचौंध पर भारी प्रकृति का सान्निध्य
महान छठ पर्व प्रकृति के सान्निध्य में जीवन जीने का एक प्रशिक्षण देता है। आधुनिकता के चकाचौंध से थोड़ी देर के लिए बाहर लिकाल कर लोगों को उनकी वास्तविकता से परिचित कराता है। लोगों को उनकी मिट्टी, संस्कृति और परम्परा से प्राप्त लोक विज्ञान और लोक बुद्धि से जोड़कर उनमें नयी चेतना का संचार करता है। सामूहिकता की उपयोगिता व उसके महत्व का अहसास कराता है और जीवन के कठोर डगर पर चलने को तैयार कर देता है।
छठ पर्व का सम्पूर्ण अर्थशास्त्र ग्रामीण उद्यम व पेशा पर आधारित है जिसमें श्रम को महत्व दिया जाता है। खेतों में काम करने वाले किसानों को उनके परिश्रम का अच्छा लाथ मिलता है। वहीं इस पर्व के कारण बांस उद्योग, मिट्टी से वर्तन गढ़ने वाले परम्परागत कलाकार व श्रमिकों के चेहरे पर भी खुशी दिखती है।