प्रदेश के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर आज गुरुवार से तीन दिन की हड़ताल पर चले गए हैं। इस कारण बिहार के विभिन्न जिलों के सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं ठप हो गई हैं। डॉक्टरों का कहना है कि सरकार उनकी वेतन, सुरक्षा और स्टाफ की कमी जैसी समस्याओं का समाधान नहीं कर रही है। हड़ताल से मरीज और उनके परिजन परेशान होकर प्राइवेट अस्पतालों का रुख करने को मजबूर हैं। गांवों के गरीब लोग जो इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों पर निर्भर होते हैं, वे इधर—उधर मारे—मारे फिर रहे हैं। बिहार स्वास्थ्य सेवा संघ ने बायोमेट्रिक हाजिरी, प्रशासनिक दबाव, वेतन रोके जाने और अन्य मुद्दों को लेकर यह हड़ताल बुलाई है।
हड़ताल सिर्फ ओपीडी सेवाओं तक ही सीमित
डॉक्टरों की यह हड़ताल सिर्फ ओपीडी सेवाओं तक ही सीमित है। आपातकालीन सेवाओं को इससे मुक्त रखा गया है। लेकिन पटना समेत विभिन्न जिलों से खबर है कि सरकारी अस्पतालों में सन्नाटा पसरा हुआ है और मरीज निजी क्लीनिक की ओर रुख कर रहे हैं। हड़ताली डॉक्टरों के मुताबिक—सुरक्षा, वेतन, गृह जिलों में पोस्टिंग और जरूरी सुविधाओं की कमी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कई बार की गई अपीलों का कोई जवाब नहीं मिला। इसी कारण हमलोग हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर हुए हैं। सरकार हमारी मांगों पर चुप है, जिससे हमें काम छोड़ने का फैसला करना पड़ा।
हड़ताली डॉक्टरों ने शिवहर की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वहां डीएम के साथ बैठक के दौरान उनके साथ बुरा व्यवहार किया गया। फिलहाल हड़ताल के कारण बिहार के सभी 38 जिलों के मेडिकल कॉलेजों, सदर अस्पतालों, रेफरल अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में ओपीडी सेवाएं बंद कर दी गई हैं। राजधानी पटना में गरीब मरीज, खासकर जो गांवों से आए हैं, वे सबसे ज्यादा प्रभावित देखे गए। उधर हड़ताली डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार 29 मार्च तक कोई ठोस हल नहीं निकलती तो आगे भी वो कार्य बहिष्कार जारी रखेंगे।