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आप्रवासी मंच

अलग-अलग प्रधानमंत्रियों की अपनी-अपनी दिवाली

Amit Dubey
Last updated: November 1, 2024 7:20 pm
By Amit Dubey 450 Views
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7 Min Read
दीपावली, प. नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी बाजपेई, नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
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दीपावली भारत का ऐसा महापर्व है जो संपूर्ण मानव समाज के लिए उत्कर्ष का प्रतिमान गढ़ता है, शायद इसीलिए भारत का यह ज्योति पर्व अमेरिका के राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास स्थान यानी ह्वाइट हाउस में मनाया जाता है। जब विश्व की महाशक्ति इस ज्योतिपर्व को उत्साह से मनाती है, तब हमें यह जानना ही चाहिए कि हमारे देश के अब तक के प्रधानमंत्रियों ने इस ज्योतिपर्व को किस रूप में मनाया है। वैदिक ऋषियों ने श्रीसूक्त के माध्यम से इस ज्योति पर्व के बारे में जो उद्घोष किया है वह भी इस पर्व के अवसर पर स्मरणीय है।

Contents
आजाद भारत की पहली दिवाली और पं. ने​हरूशास्त्री जी की जवानों—किसानों वाली दिवालीइंदिरा की मौन और एकांत दिवाली का राजराजीव गांधी की सीधी-सादी दीपावलीअटल बिहारी की ज्योतिर्मय दीपावलीनरेंद्र मोदी की निराली और अनोखी दिवाली
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उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह।। प्रादुर्भूतोस्मिराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में।

इस ऋचा का संदेश यह है कि हमारे राष्ट्र की समृद्धि व उत्कर्ष में ही हमारा उत्कर्ष और समृद्धि है। इस दृष्टि से हमें आज की सामाजिक-राजनीतिक वातावरण को परखना चाहिए। इसी सोच के तहत हमने भारत के प्रधानमंत्रियों की दिपावली पर शोध कर एक रिसर्च रिपोर्ट तैयार की है जो इस प्रकार है…।

आजाद भारत की पहली दिवाली और पं. ने​हरू

विभाजन की विभीषिका के साथ 1947 में हम आजाद हुए, आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का सम्बंध कुंभ नगरी प्रयागराज से था। उस आध्यात्मिक नगर के प्रभाव के कारण जवाहरलाल नेहरू का सहज व सामान्य लगाव दीपोत्सव से था। लेकिन, चीन ने जब भारत के पीठ में छूरा भोंका तब वे अंदर से टूट गए और अपने बचे जीवन में उन्होंने कभी दिपावली नहीं मनायी। भारत और चीन के बीच 20 अक्टूबर, 1962 को युद्ध शुरू हुआ था और 20 नवंबर, 1962 को खत्म हुआ था। इसी बीच 28 अक्टूबर को दीपावली थी। इस युद्ध के कारण भारत का ज्योतिपर्व 1962 में मना ही नहीं। इस युद्ध में भारत के करीब 1,300 सैनिकों ने शहादत दी थी और दिपावली के दिन उनकी सामूहिक चिताएं जल रही थी।

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शास्त्री जी की जवानों—किसानों वाली दिवाली

पंडित नेहरू के बाद विश्वनाथ और मां अन्नपूर्ण की नगरी काशी के निवासी लालबहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने। उनकी दिपावली पर काशी विश्वनाथ और मां अन्नपूर्ण के सान्निध्य में चली परम्परा व संकल्प का स्पष्ट प्रभाव था। प्रधानमंत्री के रूप में अपने 18 महीने के आल्पकाल में ही उन्होंने दिपावली के शुभ अवसर पर भारत को अन्न और दूध के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लिया था। उनका वह संकल्प श्वेत क्रांति और हरित क्रांति के रूप में जानी जाती है।

इंदिरा की मौन और एकांत दिवाली का राज

शास्त्रीजी के बाद इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनीं। अपने पिता के समान वह भी लम्बे समय तक भारत की प्रधानमंत्री रही। चर्चित लेखिका सागरिका घोष ने इंदिरा गांधी के जीवन पर एक पुस्तक लिखी हैं। इंदिरा-भारत की सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री नामक पुस्तक में वह लिखती हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के दिनों मे जब इंदिरा गांधी अबोध बच्ची थीं तब कुछ लोगों ने उनकी प्रिय गुडिया को विदेशी सामान बताते हुए उनपर व्यंग्य किया था। फ्रांस में निर्मित उस गुडिया को बाल इंदिरा के समक्ष ही जला दिया गया। इंदिरा के लिए वह गुडिया उनकी दोस्त और बच्ची जैसी थी। इंदिरा गांधी के बाल मन पर ऐसा असर हुआ कि वह ज्योति या अग्नि से दूर हो गयी। यही कारण था कि दीपावली उनके लिए एकांत का पर्व था।

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राजीव गांधी की सीधी-सादी दीपावली

इंदिरा गांधी की दुखद हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बने। उनकी स्मृति में अपने पिता के साथ मनायी गयी खुशनुमा दिपावली की यादें थी। दिपाली के करीब दो सप्ताह पूर्व उनके पिता का निधन हो गया था। इसका गहरा असर तरूण राजीव पर पड़ा। इसके बाद जीवन भर उनकी दिपावली फिकी ही रही।
इन प्रधानमंत्रियों के बाद हम कवि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दिपावली और ज्योति पर्व को लेकर उनकी संकल्पना की चर्चा करेंगे। दिपावली को लेकर कविता के रूप में अटलजी की जो भाव धारा प्रस्फुटित हुई है वह इस प्रकार है।

अटल बिहारी की ज्योतिर्मय दीपावली

जब मन में हो मौज बहारों की
चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई में भी मेले हों,
आनंद की आभा होती है
’उस रोज श्दिवालीश् होती है ।’

जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों,
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहके फसलें चावों की,
उत्साह की आभा होती है
’उस रोज दिवाली होती है ।’

जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहीं किसी से बैर न हो
सब अपने हों, कोई गैर न हो,
अपनत्व की आभा होती है
’उस रोज दिवाली होती है ।’

जब तन-मन-जीवन सज जाएं
सद्भाव के बाजे बज जाएं,
महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
तृप्ति की आभा होती है
’उस रोज दिवाली होती है।’

नरेंद्र मोदी की निराली और अनोखी दिवाली

अब हम बात करते हैं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनोखी दिवाली की। इनकी दिवाली श्रीसूक्त की दिवाली है जिसमें ऋषि ने प्रादुर्भूतोस्मिराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में ज्योतिपर्व की घोषणा की है। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से उन्होंने अपनी प्रत्येक दिवाली किसी अत्यंत दुर्गम स्थान पर सैनिकों के साथ मनायी है। 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में उनकी पहली दिवाली सियाचीन ग्लेशियर की चोटी पर सैनिकों के साथ मनी थी। यहां से सैनिकों के साथ दिवाली मनाने का उनका जो सिलसिला शुरू हुआ वह निर्बाध जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में हिमाचल प्रदेश 2017 में कश्मीर के गुरेज सेक्टर में 2018 में उतराखंड के हर्षिल में, 2019 में कश्मीर के रजौर में उन्होंने अपनी दिपावली मनायी। भारतीय सैनिकों के संघर्ष गाथा के प्रतीक करगिल, नौशेरा, लेप्चा जैसे स्थानों पर वे सैनिकों के साथ दिवाली मना चुके हैं।

TAGGED: अटल बिहारी बाजपेई, इंदिरा गांधी, दीपावली, नरेंद्र मोदी, प. नेहरू, प्रधानमंत्री, राजीव गांधी, लाल बहादुर शास्त्री
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