धनतेरस का त्योहार आज मंगलवार 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा। धनतेरस 29 अक्टूबर को त्रयोदशी तिथि का आरंभ सुबह 10 बजकर 32 मिनट पर हो रहा है और त्रयोदशी तिथि 30 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। दो दिन त्रयोदशी तिथि रहने और प्रदोषकाल में भी त्रयोदशी तिथि होने से इसी दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा। 29 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 25 मिनट से 7 बजकर 23 मिनट भगवान धनवंतरि की पूजा करना श्रेष्ठ होगा। इस साल धनतेरस पर सबसे विशेष बात यह है कि धनतेरस मंगलवार को है इसलिए धनवंतरि पूजा के साथ इस दिन बजरंगबली की पूजा भी लाभकारी रहेगा।
धनतेरस पर खरीदारी का शुभ मुहूर्त
दिन का चौघड़िया मुहूर्त
चर-सामान्य मुहूर्त: सुबह 09:18 से 10:41 सुबह।
लाभ-उन्नति मुहूर्त: सुबह 10:41 से 12:05 दोपहर।
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: दोपहर 12:05 से 01:28 दोपहर तक
शुभ-उत्तम मुहूर्त: दोपहर 02:51 से 04:15 दोपहर तक।
रात का चौघड़िया मुहूर्त
लाभ-उन्नति मुहूर्त: शाम 07:15 से 08:51 रात।
शुभ-उत्तम मुहूर्त: रात 10:28 से मध्यरात्रि 12:05 , अक्टूबर 30।
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: मध्यरात्रि 12:05 से 01:42 देर रात, अक्टूबर 30।
चर-सामान्य मुहूर्त: देर रात 01:42 से सुबह 03:18 , अक्टूबर 30।
ये तो हो गई धनतेरस के दिन खरीदारी के शुभ मुहूर्त की बात। लेकिन क्या आपको पता है कि धनतेरस क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे क्या पौराणिक कथा है?
जब गरीब किसान के घर रहने लगी थीं मां लक्ष्मी
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे, तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि मैं तभी तुम्हें साथ ले चलूंगा जब मैं जो भी बात कहूं और तुम अगर वैसा ही मानो। तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि ‘जब तक मैं न आऊं? तुम यहीं ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत आना’।
विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतूहल जागा। ‘आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए’। लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े, लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना शृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं।
आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने को तोड़कर रस चूसने लगीं। उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप देते हुए बोले— ‘मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान के खेत में चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो’। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।
एक दिन लक्ष्मी जी ने उस किसान की पत्नी से कहा, ‘तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा’। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।
विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इनकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा, ‘इन्हें कौन जाने देता है, यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला, ‘नहीं! अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा’।
तब लक्ष्मीजी ने कहा, ‘हे किसान! तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस तिथि है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपये भरकर मेरे लिए रखना। मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी’। लक्ष्मी जी ने आगे कहा, ‘इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी’। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। तभी से हर साल तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।