कम्युनल वायलेंस बिल के लिए कांग्रेस को वोट की अपील!
तुष्टिकरण की राजनीति का एक और जिन्न वायरल
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के पूर्व से ही बिहार के पूर्वी क्षेत्र यानी किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और भागलपुर के क्षेत्र में कम्यूनल वायलेंस बिल यानी साम्प्रदायिक लक्षित हिंसा विधेयक की खूब चर्चा रही। तकरीर, किसी के घर पर सहभोज जैसे प्रायोजित कार्यक्रमों के माध्यम से यह बात फैलायी गयी कि इस बिल के बिना काम चलने वाला नहीं। कांग्रेस को फिर से एकमुश्त वोट देना है ताकि वह इस बिल को कानून बना दे।
कथित अल्पसंख्यकों के बीच अंडरकरेंट के रूप में योजनाबद्ध तरीके से फैलायी गयी यह बात एक सामान्य घटना नहीं। इस मामले में कांग्रेस के प्रवक्ता बात करने को तैयार नहीं हैं।
आइये समझते हैं क्या है कम्युनल वायलेंस बिल?
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद नामक एक संस्था बनी थी। नाम से लगता है कि यह भारत सरकार की कोई वैधानिक संस्था होगी लेकिन बात ऐसी नहीं है। इसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी लोकसभा की सदस्य थीं, लेकिन इस संस्था के सारे सदस्य अगिया-बैताल या कट्टर हिंदू विरोधी छवि वाले एक्टीविस्ट थे। इसमें हर्ष मंदर, अनु आगा, तीस्ता सीतलवाड़, फराह नकवी, सैयद शहाबुद्दीन, जॉन दयाल, शबनम हाशमी और नियाज फारुखी जैसे लोग शामिल थे। वर्ष 2011 में लक्षित हिंसा विधेयक के नाम से तैयार यह मसौदा भारत की आत्मा को कुचलने वाली थी।
उस विधेयक में यह पूर्व से ही मान लिया गया था कि कथित बहुसंख्यक समाज हिंसा करता है और अल्पसंख्यक समाज उसका शिकार होता है। भारत के संदर्भ में यह बात सही नहीं है। भारत का बहुसंख्यक समाज यानी हिन्दुओं की प्रवृति गैर हिन्दुओं के प्रति हिंसक नहीं रही है। यह विधेयक हिन्दू समाज को अपनी रक्षा के अधिकार से भी वंचित कर देने वाला था। इस विधेयक की धाराएं गैर हिन्दू महिला के साथ किए गए दुर्व्यवहार को तो अपराध मानता है। लेकिन, हिन्दू महिला के साथ किए गए बलात्कार जैसे जघन्य कृत्य को अपराध नहीं मानता। इस विधेयक में प्रावधान था कि ‘समूह’ के व्यापार में बाधा डालने पर यह एक आपराधिक कृत्य होगा जिसके कठोर दंड थे। इसी प्रकार अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा का प्रचार भी अपराध माना गया था।
इतना ही नहीं यदि किसी बहुसंख्यक की किसी बात से किसी अल्पसंख्यक को मानसिक कष्ट हुआ है तो वह भी अपराध मान लिया जाता। अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध हो जाता। इस विधेयक में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग के लोगों को भी निशाना बनाया गया है।
भारत का संविधान कहता है कि आरोप मात्र से कोई अपराधी नहीं हो जाता, लेकिन इस विधेयक में आरोपी को तब तक दोषी मान लेने का प्रावधान था जब तक वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। यह विधेयक यदि कानून बन जाए तो किसी तथकथित अल्पसंख्यक के लिए किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जाएगा। इस विधेयक के प्रावधान पुलिस अधिकारी को इतना कस देते हैं कि वह उसे जेल में रखने का पूरा प्रयास करेगा ही क्योंकि उसे अपनी प्रगति रिपोर्ट शिकायतकर्ता को निरंतर भेजनी होगी। यदि किसी संगठन के कार्यकर्ता पर साम्प्रदायिक घृणा का कोई आरोप है तो उस संगठन के मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है। इसी प्रकार यदि कोई प्रशासनिक अधिकारी हिंसा रोकने में असफल है तो राज्य का मुखिया भी जिम्मेदार माना जायेगा।यही नहीं किसी सैन्य बल, अर्ध्दसैनिक बल या पुलिस के कर्मचारी को तथाकथित हिंसा रोकने में असफल पाए जाने पर उसके मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है।
भारत के संविधान में संघीय प्रणाली को अपनाया गया है जिसके अनुसार कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। लेकिन, यह विधायक संविधान के इस व्यवस्था का भी अतिक्रमण करने वाला था। यदि यह विधेयक कानून बन जाएगा तो ‘साम्प्रदायिक हिंसा’ राज्य के भीतर आंतरिक उपद्रव के रूप में देखी जायेगी और केन्द्र सरकार को किसी भी विरोधी दल द्वारा शासित राज्य में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का अधिकार मिल जायेगा। इसलिए यह विधेयक भारत के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त करने वाला था।
यह विधेयक अगर पास हो जाता तो हिन्दुओं का भारत में जीना दूभर हो जाता। देश द्रोही और हिन्दू द्रोही तत्व खुलकर भारत और हिन्दू समाज को समाप्त करने का षडयन्त्र करते रहेंगे। राष्ट्रवादी संगठन इनको रोकना का प्रयास करेगे तो उनके कार्यकर्ता जेलों में बंद होंगे।