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बिहारी समाज

2024 का लोकसभा चुनाव बिहार के लिए विशेष बन गया है क्योंकि इस चुनाव में राजनीति के अपराधीकरण से पनपे नेता अपने बजूद की रक्षा के लिए जद्दो जहद कर रहे हैं।

K.K Ojha
Last updated: April 24, 2024 1:44 pm
By K.K Ojha 527 Views
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5 Min Read
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कृतिदेव यहां 2024 में भी जमीन तलाश रहा ‘राजनीति के अपराधीकरण’
2024 का लोकसभा चुनाव बिहार के लिए विशेष बन गया है क्योंकि इस चुनाव में राजनीति के अपराधीकरण से पनपे नेता अपने बजूद की रक्षा के लिए जद्दो जहद कर रहे हैं। मतदान केंद्रों पर जबरन कब्जा कर अपने मनचाहे प्रत्याशी के पक्ष में थोक वोट डालने की परंपरा दूसरे आम चुनाव यानी 1957 के आम चुनाव में ही शुरू हो गयी थी। संयोग से चुनाव में वोट लूटने की यह ज्ञात घटना लोकतंत्र की जननी बिहार की भूमि पर ही घटी। अपराध के राजनीतिकरण से शुरू होकर 1990 की दषक में राजनीति के अपराधीकरण तक पहुंची बिहार की चुनावी राजनीति में आपराधिक पृष्ठीूमि वाले बाहुबलि लगभग हाशिए पर चले गए थे लेकिन, इस चुनाव में बिहार के पांच लोकसभा क्षेत्रों में अपराध के राजनीतिकरण के प्रतिनिधि प्रतीक पूरे दमखम से चुनावी मैदान में हैं। कही किसी दल के प्रत्याशी के रूप में तो कहीं निर्दलीय।
चुनावी राजनीति में अपराधियों के उपयोग का सिलसिला तो कांग्रेस के स्वर्ण युग यानी 1950 के दशक में बिहार से ही शुरू हो गया था। वहीं सिलसिला आगे बढ़कर अपराध का राजनीतिकरण बन गया। यानी अपराधी विधायक, सांसद, मंत्री बनने लगे। वर्ष 2014 के बाद उस परम्परा को गहरी चोट लगी। लेकिन यह परम्परा कालनेमी की तरह रंगरूप बदलकर अपने को पुनर्जीवित करने के लिए निर्णायक लड़ाई शुरू कर दी है।
राजनीति के अपराधीकरण के किरदारों ने मायाजाल का सहारा लेकर स्वयं को किसी दयावान की तरह प्रस्तुत करते हैं। फिलहाल, पूर्णिया से राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, जहानाबाद से सुरेन्द्र यादव, वैशाली से मुन्ना शुक्ला, पूर्णिया से ही अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती, सिवान से शहाबुद्दीन की पत्नी हिना सहाब जैसे कुछ नाम हैं जो चुनावी वैतरणी पार कर भारत की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचना चाहती हैं। कुछ किस पार्टी व गठबंधन के अधिकृत प्रत्याशी हैं तो कुछ निर्दलीय ही मैदान में उतर गए हैं। पप्पू यादव कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरने वाले थे लेकिन लालू परिवार के भारी विरोध के कारण वे बेटिकट हो गए लेकिन चुनाव मैदान में डटे हुए हैं।
लोकतंत्र की जड़ को खा जाने वाले इस रोग की शुरूआत की कहानी बहुत पुरानी है। भारत का संविधान लागू होने के मात्र 7 वर्ष बादी की। उस समय बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के गृह जिला मुंगेर के बेगूसराय के मटिहानी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के सरयुग प्रसाद सिंह विधायक निर्वाचित हुए थे। लेकिन, इसके बाद बेगूसराय में कम्युनिस्टों का प्रभाव तेजी से बढ़ गया था। वर्श 1957 में होने वाले द्वितीय आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सरयुग प्रसाद सिंह के सामने कम्युनिस्ट प्रत्याशी चंद्रषेखर प्रसाद सिंह सीना तानकर खड़े हो गए। इस क्षेत्र में उन्हें प्रबल जनसमर्थन मिल रहा था। भारत गणतंत्र में मटिहानी विधानसभा चुनाव क्षेत्र अंतर्गत रचियाही में बूथ कैप्चर कर बड़े पैमाने पर मत लूट की पहली घटना दर्ज हुई थी। उस चुनाव में कांग्रेस और वामदल के बीच सीधा मुकाबला था। तब राजनीति में जातीय विद्वेष का जहर नहीं फैला था। लेकिन, वाम-कांग्रेस संघर्ष में अपराध के राजनीतिकरण की शुरूआत हो गयी थी। रचियाही में उस इलाके के तीन बड़े गांव के लोग वोट डालने आते थे। उस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थक दबंगों ने तीनों गांवों के लोगों को डरा धमका कर भगा दिया था। इसके बाद कुछ लोगों ने ही पूरे वोअ डाल दिए थे। गांव के लोगों ने शिकायतें की लेकिन उसका कोई ठोस परिणाम नहीं आया। हां, उस समय के समाचार पत्रों में उस जघन्य कृत की खबरें प्रकाशित हो गयी थीं। चुनाव आयोग में दर्ज शिकायतें आज दस्तावेज बनकर जिंदा हैं।

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