वाल्मीकि नहीं बन पाया यह रत्नाकर
लोकसभा चुनाव के इस माहौल में पूर्णियां में रत्नाकर से वाल्मीकि बनने की कथा का प्रायोजित प्रचार-प्रसार चरम पर है। बिहार और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित इस संसदीय निर्वाचन क्षेत्र को लेकर विचित्र प्रकार के नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं। आवारा पूंजी के बल पर अभाषी माध्यम से मायाजाल बुनने का जो कसरत यहां हो रहा है वह लोकतंत्र को लहुलूहान करने वाला है। पूर्णियां का दर्द बहुत गहरा और पुराना है। चुनाव जैसे अवसरों पर वह दर्द हरा हो जाता है।
पूर्णियां में चुनावी चौसर पर बिछे मुहरों में कुछ तो पीटने के लिए ही हैं। वहीं कुछ को पर्दे के पीछे स उनके आका नचा रहे हैं। फिलहाल तीन उम्मीदवार चर्चा में हैं क्योंकि जीत हार इन्हीं के बीच होनी है। इंडी गठबंधन में शामिल राजद ने जदयू से आयातीत बीमा भारती को अपनी पार्टी के टिकट से नवाजा है। बीमा भारती एक गृहणी है, वहीं उनके पति अवधेश मंडल अपने आपराधिक कारनामों के कारण इस क्षेत्र में जाने जाते हैं। दूसरे चर्चित प्रत्याशी राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले थे लेकिन लालू परिवार के प्रचंड विरोध के कारण ऐन मौके पर पप्पू बेटिकट हो गए। अब वे निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं। लालू राज में पप्पू की चलती थी। उनके शासन काल में ही उनका बाहुबल बढ़ता गया और इतना बढ़ा कि उनके इशारे के बिना कोई हिल नहीं सकता था। यह अपराध के राजनीतिकरण से आगे राजनीति के अपराधीकरण का दौर था। अजीत सरकार को गोलियों से भून डालने की आतंक कथा की चर्चा आज भी होती है। पटना से लेकर दिल्ली तक संगठित गिरोह के माध्यम ेस महंगी जमीन व मकानों पर कब्जे की अनंत कहानियां यहां की फिजां में ताजी होकर तैर रही हैं।
इसी बीच राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से फिर से मैदान में जदयू उम्मीदवार के रूप् में उतरे उमेश कुषवाहा की भी चर्चा होती है। इनसे मतदाताओं को बहुत शिकायत है लेकिन विकल्प पर विचार होते ही लोग मौन हो जा रहे हैं।
पूर्णिया में मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से एक मायावी लोक के अवतारी पुरूष की रचना का भी प्रयास चल रहा है। दानवीर, शोषितों पीड़ितों के मसीहा, दिल्ली में पूरे बिहार से इलाज कराने पहुंचने वालों का एक मात्र सेवाक व सहायक…ऐसे अनेक रूपों को प्रस्तुत करते हुए वोट बटोर लेने का यह कवायद विचित्र है। ऐसे दावों की जब परीक्षा होती है तब बात कुछ और ही सामने आती है। कुछ रूपयों से सेवाकार्य करो और सैकड़ों कैमरे, सैकड़ों साइटों के माध्यम से अपनी छवि निखारो।
दिल्ली में बिहार के पत्रकार शम्भू कुमार कहते हैं कि बिहार के कम से कम सात सांसद ऐसे हैं जिन्होंने अपने आवास पर रोगियों के ठहरने व सहायता की व्यवस्था कर रखी है। लेकिन पप्पू यादव उनसे थोड़ा अलग हैं। वे जिनकी सहायता करते हैं उनसे संपर्क रखते हैं और उन्हें अपनी पालिटिकल मिशन में शामिल कर लेते हैं।
क्या पप्पू यादव अब बिल्कुल बदल गए हैं? ऐसे प्रश्नों के उत्तर ढ़ूंढने पर पूर्णिया में ही मिल जाते हैं। पप्पू यादव कल भी बाहुबलि थे और आज भी हैं लेकिन अब माया का प्रयोग करने में वे दक्ष हो गए हैं। कब रोना है और कब आंखें तरेरना है, वे जानते हैं। मीडिया के बल पर इमेज बनाना और लोगों की आंखों में धूल झोंकना अपराध के राजनीतिकरण के लिए आवष्यक है। लेकिन, यह लोकतंत्र के शुभ नहीं है। इसका समूल नाश आवष्यक है।