चिरांद : कार्तिक कल्पवास और पांच दिवसीसय श्रीविष्णु महायज्ञ की पूर्णाहुति के बाद परम तपस्वी मौनी बाबा और आयोध्या श्री लक्ष्मणकिला के महंत श्री मैथिली रमण शरण जी महाराज ने गंगा, सरयू और सोन के संगम पर स्नान किया। इस अवसर पर एकत्रित भक्तों व श्रद्धालुओं के बीच मौनी बाबा ने कहा कि इस प्रत्यक्ष त्रिवेणी के तट पर कार्तिक मास कल्पवास की प्राचीन परम्परा रही है। इस परमतीर्थ का महत्व गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्थित तीर्थराज प्रयाग की ही तरह है। इस परम तीर्थ की ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के इस तपपूर्ण प्राचीन परंपरा को फिर से जागरित किया जाएगा। इस स्थान पर देष-विदेष के श्रद्धालु, संत, महंत, विद्वानों को फिर से एकत्रित करने का हमारा प्रयास तेज हो गया है।
लक्ष्मणकिलाधीश महंत श्री मैथिली रमणषरण जी महाराज ने कहाकि यह पावन त्रिवेणी भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को समर का प्रताप देने वाला है। रामायण में महर्षि विष्वामित्र ने सिद्धाश्रम बक्सर ले जाने के क्रम में इस त्रिवेणी पर श्रीराम और लक्ष्मण को लाया था। इस परमतीर्थ की परम्परा का वर्णन करते हुए उन्होंने श्रीराम और लक्ष्मण को इस पवित्र संगम क ेजल से आचमन करने का आदेष दिया था तथा इस पावन तीर्थ पर रात्रिकाल में भूमि शैया करने का आदेष दिया था। सिद्धाश्रम बक्सर में ताड़का एवं अन्य राक्षसों का वध करने के बाद इसी त्रिवेणी से होते हुए वे विदेष राजा जनक के धनुष यज्ञ में षामिल होने गए थे। यह प्रभुश्रीराम की अभ्युदय यात्रा थी। कार्तिक मास में भगवान श्रीराम एवं लक्ष्मण इस पावन तीर्थ और त्रिवेणी पर स्नान और विश्राम किया था। इस तरह से यह त्रिवेणी कार्तिक कल्पवास एवं अनुष्ठान के लिए भारत मंे सबसे उपयुक्त तीर्थ है।
यह तीर्थ जागृत होकर विश्व में धर्म प्रचार का फिर से प्रमुख केंद्र बने। इस संकल्प के साथ चिरांद स्थित अयोध्या मंदिर कृत संकल्पित है। चिरोद के गौरवशाली अतित को पुनर्स्थापित करने के लिए आज से 20 वर्ष पूर्व चिरांद विकास परिषद की स्थापना की गयी थी। हमारे इस प्रयास को भारत के महान संत श्रीमौनी बाबा महाराज का आषीर्वाद मिल गया है।
इस अनुष्ठान को पूर्ण करने में चिरांद विकास परिषद के सचिव व पत्रकार श्रीराम तिवारी जी की भूमिका प्रमुख है।