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आप्रवासी मंच

राम राज्य का लघु मॉडल है छठ महापर्व

Amit Dubey
Last updated: November 6, 2024 8:34 am
By Amit Dubey 3.9k Views
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8 Min Read
राम राज्य, छठ महापर्व, लघु मॉडल, कार्य व्यवहार, जनमानस, बिहार, लोकआस्था
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बिहार के लोकपर्व छठ के अवसर पर चार दिनों तक सम्पूर्ण समाज के आचार-व्यवहार में जिस प्रकार का परिवर्तन देखा जाता है वह इस कलिकाल में जादू के समान है। यदि सालों भर हमार आचारण ऐसा ही रहा तो उसे हम राम राज्य ही कहेंगे। इस अर्थ में बिहार का चार दिवसीय छठ पर्व राम राज्य का अल्पकालिक लघु माडल ही है। इस मांडल को सामने रखकर कार्य किया जाए तो समाज में सकारात्मक बदलाव देखा जा सकता है। छठी मईया के पूजन के समय गीतों के माध्यम से हमारी माताएं-बहने जिस प्रकार की मनोकामनाएं व्यक्त करती हैं वह सब संभव हो सकेगा।

Contents
धर्म को लोकव्यवहार में प्रतिष्ठित करता है छठगोस्वामी जी का रामराज्य और लोकआस्थाछठ महापर्व और प्रभू श्री राम का जुड़ावसामाजिक मान्यताओं और नियमों का बंधनभरतीय चिंतन परंपरा में धर्म का असल मतलबचतुर्थी तिथि से कार्य व्यवहार में बदलाव का पर्वबिहार वासियों का आचरण विश्व मानक गढ़ने वाला
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धर्म को लोकव्यवहार में प्रतिष्ठित करता है छठ

छठ के अवसर पर आम आदमी का जो व्यवहार दिखता है वही भारत का धर्म है। सड़क पर कोई थूकने से भी परहेज करता है। गलती से यदि कोई सड़क पर गंदा कर देता है तो आसपास के लोग उसे टोकने लगते हैं। मतलब यह कि इस अवसर पर जो सामाजिक वातावरण का निर्माण होता है उसमें कोई गलत कर ही नहीं सकता।
सूर्यवंश के महानायक श्रीराम को वाल्मीकि रामायण में धर्मवान विग्रह कहा गया है। धर्म उनके आचरण के माध्यम से व्यक्त होता था और उनकी प्रजा उनका अनुसरण करते हुए स्वतः धर्म का आचरण करती थी।

गोस्वामी जी का रामराज्य और लोकआस्था

गोस्वामी तुलसी दास ने राम राज्य का जो वर्णन किया है उसकी एक झलक छठ पर्व के अवसर पर सहज मिल जाती हैं। इसके साथ ही तपपूर्ण इस व्रत में उन्हीं परिस्थितियों की आकांक्षा की जाती है जो राम राज में थी। गोस्वामी तुलसी दास जी ने सूर्यवंशी प्रभु रीराम के राज का वर्णण अपने रामचरितमानस के उतर कांड में इन शब्दों में किया है।

अल्पमृत्यु नहीं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरूज सरीरा।।
नहिं दर्रिद कोउ दुखी न दीना। नहि कोउ अबुध न लच्छन हीना।।
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहीं काहुहि व्यापा।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।

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छठ महापर्व और प्रभू श्री राम का जुड़ाव

इस प्रकार बिहार का यह लोकपर्व श्रीराम को भी किसी न किसी रूप में जोड़ता है। सूर्य षष्ठी व्रत का अनुष्ठान करने वाले नर-नारी का आचरण राम राज्य के नागरिक की ही तरह हो जाता है। यही कारण है कि अनुष्ठान करने वाले अपने परिजनों के साथ ही सब के लिए निरोगी काया, दरिद्रता से मुक्ति के लिए धन-सम्पदा, शांति सद्भाव की मांग सूर्य देव और षष्ठी माता यानी सूर्य की शक्तियों का प्रयोग करने वाली प्रकृति के छठे अंश करते हैं।
लोकपर्व छठ में प्रत्यक्ष देव सूर्य और ऋत की देवी षष्ठी की आराधना पूर्ण नियम और निष्ठा से की जाती है। यहां नियम का अर्थ धर्म को धारण करने से है। और निष्ठा का मतलब पूर्ण समर्पण से युक्त भक्ति से है। यह बात बिहार के लोगों के मन-मस्तिष्क में परम्परा के माध्यम से घर कर गयी है। या यूं कहें कि बिहारियों के डीएनए में यह संस्कार व्याप्त है जो बिहार के बाहर भी समाप्त नहीं हुआ।

सामाजिक मान्यताओं और नियमों का बंधन

इस लोकपर्व के सम्बंध में मान्यता है कि अनुष्ठान में निर्धारित नियमों का पालन नहीं होने पर प्रत्यक्ष देव सूर्य और ऋत की देवी षष्ठी तत्काल दंडित करती है। इस अनुष्ठान में व्यवधान डालने वालों को भी ये देव और देवी शारीरिक कष्ट यानी रोगी बनाकर दंडित करते हैं। इस मान्यता का प्रभाव इतना होता है कि छठ के अवसर पर लोगों के व्यवहार स्वतः धर्मानुकूल हो जाते हैं। छठ शुरू होने से लेकर पारन यानी समापन तक बिहार के शहरों में मांस-मछली की दुकाने बंद हो जाती हैं। यहां तक कि बिना कानून के ही लोग शराब की बोतल को हाथ नहीं लगाते थे। जबकि शराबबंदी कानून के बाद भी शराब की उपलब्धता की बात सार्वजनिक है।

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भरतीय चिंतन परंपरा में धर्म का असल मतलब

भारतीय चिंतन परम्परा के अनुसार धर्म का अर्थ मजहब, रीलिजन या सम्प्रदाय नहीं होता बल्कि दस लक्षणों से युक्त ऐसा मानव व्यवहार है जिससे सम्पूर्ण अभ्युदय की प्राप्ति होती है। धृति, क्षमा, दम, अस्तेयम्, शौचम्, इंद्रीय निग्रह, धी, विद्या, सत्यम, अक्रोधो दसकम् धर्म लक्षणम्। उपनिषद से लेकर मनुस्मृति तक ने धर्म के इन दस लक्ष्णों को माना है। चार दिवसीय छठ व्रत के अनुष्ठान में धर्म के सभी दस लक्षण बिहार के सम्पूर्ण लोक के व्यवहार में दिखता है। अन्य पूजा अनुष्ठान में धर्म के दस लक्षण सम्पूर्ण लोक के व्यवहार में नहीं दिखते। यही एक विशेषता लोकपर्व छठ को अन्य पर्वों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण बना देता है।

चतुर्थी तिथि से कार्य व्यवहार में बदलाव का पर्व

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को धर्म के प्रथम लक्षण धृति यानी धैर्य के साथ सूर्योपासना का यह अनुष्ठान शुरू होता है। प्रथम दिन के अनुष्ठान को लोकभाषा में नहाय-खाय कहते हैं। इसी दिन से अनुष्ठानी क्षमा मतलब अपकार करने वालों के प्रति उपकार, दम मतलब संयम, अस्तेय मतलब चोरी न करना, शौच यानी बाहरी और आंतरिक पवित्रता, इंद्रीय निग्रह यानी इंद्रीयों को वश में रखना, धी मतलब शुद्ध बुद्धि, विद्या यानी ज्ञान, सत्यम यानी सत्य और अक्रोध के संकल्प के साथ अपना जीवन शुरू कर देता है। अनुष्ठानियों के साथ उसके परिवार के लोग भी प्रयास करते हैं कि उनका जीवन पर्वेतीन यानी अनुष्ठानियों के अनुकूल ही है। इसका परिणाम यह होता है कि छठ व्रत के अवसर पर गंदगी के लिए बदनम गली-मुहल्ले भी चमक उठते हैं। भीड़-भाड़ के बावजूद कहीं से चोरी-छिनैती की घटना की सूचनाएं नहीं मिलती हैं। सभी एक दूसरे का सहयोग करते हुए भारी भीड़ में भी आगे बढ़ते जाते हैं।

बिहार वासियों का आचरण विश्व मानक गढ़ने वाला

छठ के अवसर पर एकबार बिहार आने वाले बीबीसी के रिपोर्ट मार्कटली ने कहा था कि छठ के अवसर पर बिहारियों का जो व्यवहार दिखता है वह विश्व मानक गढ़ने लायक हैं। वास्तव मंे यह अवसर राम राज्य जैसा लगता है। एक विदेशी पत्रकार ने इस पर्व को इतनी सूक्ष्मता से समझा। इसके महत्व को स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं किया। इस पर्व से सभी बिहारियों की भावना जुड़ी हुई है। इस पर्व की व्यवस्था में समाज आगे-आगे चलता है। पीछे-पीछे सरकार व उसकी संस्थाएं चलती हैं। ऐसा उदाहरण किसी दूसरे अवसर पर नहीं दिखता। बिहार में रहने वाले अन्य पंथ व मजहब के लोग भी इस पर्व में अपने-अपने तरीके से शामिल होते हैं। मुसलिम व इसाई मतवालंबी बिहारियों की भी इसमें सक्रिय सहभागिता होती है। मतपंथ की सीमाएं टूट जाती हैं और मानव को मानव बनाने वाला धर्म सनातन व्यवहार में उतरने लगता है।

(इस लेख में बस इतना ही। ओ सूर्याय नमः। छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। नमस्कार!)

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