डॉ. अरविंद कुमार ओझा
मरीजों की भारी भीड़, गैजेट्स और संसाधन की कमी के बीच सबका उपचार करने के लक्ष्य के साथ काम करने का शिक्षण-प्रशिक्षण व प्रबंधन की शिक्षा देने वाला महान संस्थान पटना मेडिकल कालेज अस्पताल है। हमें अपने इस महान संस्थान और इसके श्रेष्ठ शिक्षकों की परंपरा पर गर्व है। मेरे जमाने में छात्र पीएमसीएच में नामाकन पाने के लिए लालायति रहते थे। पहले प्रयास में ही पीएमसीएच में नामांकन पाने में जब मैं सफल हो गया था, तब मेरी खुशी का ओरछोर नहीं था।
स्मरण है, वर्ष 1985 में एक छात्र के रूप मैं इस संस्थान का एक हिस्सा बना था। यह इस महान संस्थान की विशेषता है कि आज भी मैं स्वयं को इससे जुड़ा हुआ महसूस करता हूं। यह विशेषता इसे अन्य संस्थानों से अलग करती है। जब मैं पटना मेडिकल कालेज का छात्र था, तब बिहार का राजनीतिक, सामाजिक व शैक्षिक महौल बहुत तेजी से बदल रहा था। संस्थानों के स्वरूप में बदलाव आने लगे थे जिससे पीएमसीएच जैसा महान संस्थान भी अछूता नहीं रहा। स्मरण है कि उस समय इस अस्पताल में मरीजों का तांता लगा रहता था। बिहार के विभिन्न जिलों से लोग उपचार के लिए यहां आते थे। मरीजों की संख्या अधिक होने के कारण अस्पताल में अक्सर बेड की कमी रहती थी। ऐसे में जमीन पर सुलाकर हम उपचार शुरू कर देते थे।
कम संसाधन में कैसे मरीजों का उपचार किया जाए, इसका प्रशिक्षण मुझे पीएमसीएच ने दियां। आपदा को अवसर में बदलने वाला वह प्रशिक्षण मुझे आज भी काम दे रहा है। इस अर्थ में पटना मेडिकल कालेज अन्य संस्थानों से भिन्न हैं। हमारे कुछ शिक्षक थे जो संसाधनों की कमी के बीच कुछ नवाचार करते थे जिसके चौकाने वाले परिणाम आते थे। एक बीमारी होती है कोनेजेंटल हाइपइरट्रौपिक स्टेनोसिसि बीमारी। इसका इलाज आपरेशन से होता है। हमारे शिक्षक डा.उत्पल कांत सिंह ने इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों को एट्रोपिन ओरल देकर उपचार शुरू किया। इसके आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए थे। मैंने पेडियाट्रिक्स में एमडी किया था। हमारे संस्थान में जो गुरू-शिष्य परंपरा थी वह अद्भुत थी।
चिकित्सा क्षेत्र आधुनिक तकनीक व उपचार पद्धति का महत्व है। लेकिन, जहां संसाधन और आधुनिक चिकित्सा पद्धति के लिए आवश्य नवीन उपकरणों की भरी कमी के बीच उपचार करने की बात हो, तो वहां क्लीनिकल सूझ-बूझ और समर्पण ही एक मात्र रास्ता बचता है। हमारा पीएमसीएच वह संस्थान है जहां क्लीनिकल सूझबूझ वाले समर्पित चिकित्सक तैयार किए जाते हैं। यह चिकित्सा क्षेत्र में सफल होने का नैसर्गिक गुण है। इसे स्वीकार करना होगा कि पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में विश्वविख्यात चिकित्सक देने वाले भारत के प्रमुख चिकित्सा शिक्षा संस्थानों में से एक पीएमसीएच ने संसाधनों की भारी कमी का देश झेला है। वहीं जब हम इसके शिक्षकों और छात्रों की गौरवशाली परम्परा की ओर देखते हैं तो यह कहने में कोई संकोच नहीं होता कि इस संस्थान की शानदार गौरवशाली परम्परा आगे भी जारी रहेगी। इस महान संस्थान के पूर्ववर्ती छात्र आज भी इससे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। इसके पूर्ववर्ती छात्रों के विश्वव्यापी नेटवर्क के रूप में इसकी जड़े पूरे विश्व में फैली हुई हैं।