सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को बिहार में लालू राज के दौरान 1998 में हुई उनके चहेते मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या वाले कांड में बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस हत्याकांड के लिए बाहुबली मुन्ना शुक्ला और एक अन्य को दोषी ठहराते हुए निचली अदालत द्वारा सुनाई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। हालांकि, शीर्ष अदालत ने इस मामले में आरोपी रहे पूर्व सांसद सूरजभान सिंह और पांच अन्य को बरी कर दिया। आइए जानते हैं बृजबिहारी प्रसाद मर्डर की पूरी कहानी और क्या है इस हत्याकांड का पूर्व विधायक और बाहुबली नेता देवेंद्र दुबे के मर्डर से कनेक्शन।
लालू का राज और बिहार में बाहुबलियों का आतंक
दरअसल यह पूरा मामला 1990 के दशक में बिहार में फैले अंडरवर्ल्ड और बाहुबलियों के आतंक के दौर की याद दिलाता है। उस समय गोविंदगंज के विधायक रहे देवेंद्र दुबे, मुन्ना शुक्ला, बृजबिहारी प्रसाद, राजन तिवारी और सूरजभान सिंह जैसे कई बाहुबली और नेता बिहार में सक्रिय थे। इनके बीच वर्चस्व की लड़ाई में कई खूनी संघर्ष हुए। लॉ एंड आर्डर की तो बात ही छोड़ दीजिए। हाईकोर्ट भी लालू यादव के शासन को ‘जंगल राज’ बता चुका था।
बिहार में ऐसे हुई देवेंद्र दुबे और श्रीप्रकाश की इंट्री
गुंडई इस कदर बढ़ गई थी कि राह चलते अपहरण, बलात्कार, लड़कियों की बेइज्जती के डर से लोग घरों से दिन में भी बाहर निकलने से डरते थे। उसी दौर में चंपारण में तरुणाई से लबरेज एक युवक देवेंद्र दुबे की इंट्री होती है। देवेंद्र दुबे असम से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर अपने घर चंपारण के गोविंदगंज लौटे थे। लेकिन यहां बिहार में उनकी बहन से हुई छेड़छाड़ की एक घटना और इस मामले में प्रशासन से मिली बेरुखी ने उन्हें ऐसा झकझोरा कि उन्होंने हथियार उठा लिया। चंपारण में बहुत जल्द देवेंद्र दुबे का दबदबा कायम हो गया। शीघ्र ही देवेंद्र दुबे पर करीब 35 हत्याओं के केस जड़ दिये गए। लेकिन आम जनता में देवेंद्र की छवि रॉबिनहुड वाली थी। इसी का लाभ उन्होंने चुनावों में उठाया और 1995 के विधानसभा चुनाव में वे जेल में रहते हुए ही गोविंदगंज से विधायक बन गए।
विधायक देवेंद्र दुबे और बृजबिहारी की अदावत
देवेंद्र दुबे को विधायकी का पॉलिटिकल कवर मिलने के मुन्ना शुक्ला, सूरजभान सिंह, राजन तिवारी आदि सरीखे उभरते बाहुबली उनकी छत्रछाया में पलने बढ़ने लगे। देवेंद्र दुबे की दोस्ती यूपी के कुख्यात गैंगस्टर श्री प्रकाश शुक्ला से थी। रेलवे के ठेकों में हिस्सेदारी और इलाके में वर्चस्व के चलते दोनों करीब आये थे। 1995 के विधानसभा चुनाव में देवेंद्र दुबे ने जेल में रहते हुए जीत हासिल की थी। कहा जाता है कि देवेंद्र दुबे के चुनाव जीतने में श्रीप्रकाश शुक्ला और राजन तिवारी की अहम भूमिका थी।
राजद समर्थक और विरोधी बाहुबलियों के दो गुट
सबकुछ इसी तरह चलता रहा। इधर लालू यादव के शासन में राजद समर्थक बाहुबलियों का एक दूसरा गुट भी खड़ा हो गया था। इसकी नींव तो पूर्णिया के मौजूद निर्दलीय सांसद और तब राजद में रहे पप्पू यादव ने डाली थी, लेकिन शीघ्र ही इस गुट की कमान बृजबिहारी प्रसाद ने अपने हाथ में ले ली। बृजबिहारी प्रसाद राजद सरकार के मुखिया लालू यादव के काफी चहेते थे। लालू ने उन्हें चंपारण के ही एक अन्य सीट से विधायक बनवाया और अपनी सरकार में मंत्री पद भी दिया। इस बीच, देवेंद्र दुबे ने संसदीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया। बृज बिहारी प्रसाद भी यह चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन वे अपनी जीत में देवेंद्र दुबे को बड़ा कांटा मानने लगे। यहीं से देवेंद्र दुबे और बृजबिहारी के रिश्ते बिगड़ गए। 25 फरवरी 1998 को देवेंद्र दुबे की बृजबिहारी प्रसाद के इलाके में हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड का आरोप बृजबिहारी प्रसाद पर लगा। तब देवेंद्र दुबे के भतीजे मंटू तिवारी ने बदला लेने की कसम खाई।
पटना IGIMS में ऐसे हुई बृजबिहारी की हत्या
देवेंद्र दुबे के मर्डर के तीन महीने बाद ही 13 जून 1998 को पटना के IGIMS अस्पताल में बृजबिहारी प्रसाद की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या के समय बृजबिहारी प्रसाद बिहार सरकार में ऊर्जा मंत्री थे। चश्मदीदों के अनुसार, मंटू तिवारी, भूपेंद्र दुबे और श्रीप्रकाश शुक्ला समेत कई लोगों ने बृजबिहारी प्रसाद पर तब गोलियों की बौछार कर दी, जब वे अस्पताल परिसर में बॉडीगार्ड के साथ टहल रहे थे। हत्या के बाद सभी हमलावर मौके से एक सुमो गाड़ी से फरार हो गए।
पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज कर जांच शुरू की तो उसने मुन्ना शुक्ला, सूरजभान सिंह समेत कई लोगों को आरोपी बनाया। निचली अदालत ने मुन्ना शुक्ला और एक अन्य आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी जबकि बाकी सभी को संदेह का लाभ दिया। पटना हाईकोर्ट ने मामले में निचली कोर्ट का फैसला पलटते हुए सभी को बरी कर दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए मुन्ना शुक्ला और एक अन्य आरोपी को सजा सुनाई है।