एनडीए के सीट बंटवारे में नवादा जिले में हिसुआ सीट चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (R) को दे दी गई है। लेकिन इस सियासी दोस्ती में यहां से बीजेपी ने अपने ही पूर्व विधायक अनिल सिंह का एक तरह से सियासी कत्ल कर दिया। यह फैसला काफी चौंकाने वाला है क्योंकि हिसुआ सीट पर पूर्व में भाजपा ने अनिल सिंह के चेहरे पर तीन बार जीत दर्ज की थी। यहां से अनिल सिंह लगातार तीन बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक रह चुके हैं। इस बार भी वे टिकट के प्रबल दावेदार बताए जा रहे थे और नामांकन की तैयारी कर रहे थे। अनिल सिंह ने आगामी 17 अक्टूबर को नामांकन की घोषणा भी कर दी थी। लेकिन एनडीए सीट शेयरिंग में यह सीट भाजपा ने चिराग को दे दी। इससे यहां पार्टी कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश है। पार्टी के कार्यकर्ता और नेताओं का कहना है कि इस तरह हम अपने इतने साल की मेहनत को यूं पानी में जाता नहीं देख सकते और इसका खामियाजा पार्टी तथा एनडीए को चुनाव में भुगतना होगा।
हिसुआ के पूर्व विधायक अनिल सिंह अपने क्षेत्र में एक नारे के लिए काफी चर्चित रहे है। उनका—’घर का बेटा, घर का नेता का नारा’ 2009 के लोकसभा चुनाव में लोगों के बीच काफी चर्चित हुआ था। तभी से अनिल सिंह अक्सर लोगों के बीच अपने भाषणों और रैलियों में यह नारा लगाते रहे हैं। इसके चलते ही वे उन माननीयों के निशाने पर रहे जो बाहरी का टैग लेकर भी यहां से सांसदी चुनाव जीते हैं। यह दिलचस्प है कि नवादा संसदीय क्षेत्र से ज्यादातर सांसद बाहरी निर्वाचित होते रहे हैं। 2009 में बेगूसराय के डॉ. भोला सिंह, 2014 में बड़हिया के गिरिराज सिंह, 2019 में मोकामा के चंदन सिंह और 2024 में पटना के विवेक ठाकुर निर्वाचित हुए हैं। अब अनिल सिंह के समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि वह अपने गृह विधानसभा क्षेत्र से बेदखल हो गए लगते हैं। हालांकि अनिल सिंह के समर्थक कह रहे हैं कि वह निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं।
इधर खबर है कि हिसुआ सीट पर लोजपा (R) ने अपने राष्ट्रीय प्रवक्ता धीरेंद्र कुमार सिन्हा मुन्ना को उतारने का फैसला कर लिया है। धीरेंद्र कुमार मुन्ना नवादा के रजौली थाना क्षेत्र के महबतपुर गांव के रहने वाले हैं। मुन्ना इसके पहले दो बार नवादा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में धीरेंद्र मुन्ना ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था और 9 हजार 684 मतों के साथ चौथे स्थान पर रहे। वहीं 2019 के उपचुनाव में उन्होंने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से चुनाव लड़ा और करीब 36 हजार मतों के अंतर से दूसरे स्थान पर रहे थे। उस वक्त जदयू के कौशल यादव ने जीत दर्ज की थी। लेकिन हिसुआ में एनडीए के और खासकर भाजपा के कार्यकर्ताओं का कहना है कि यहां हमारे गठबंधन ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। अनिल सिंह को आउट कर चिराग की पार्टी को टिकट देने से यहां अब कांग्रेस एकबार फिर बाजी मार लेगी तो आश्चर्य नहीं होगा।
दरअसल हिसुआ सीट कांग्रेस का गढ़ रहा है। 1957 से 2020 तक 16 चुनाव हुए। सर्वाधिक नौ बार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा और तीन बार निर्दलीय की जीत हुई। यहां बीजेपी ने भी तीन बार जीत दर्ज की। 2005 से 2015 तक हुए तीन चुनावों में यहां से लगातार बीजेपी से अनिल सिंह निर्वाचित हुए। 2020 के चुनाव में अनिल सिंह दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस की नीतू देवी निर्वाचित हुईं। लेकिन इसबार अनिल सिंह यहां से काफी अच्छी पोजिशन में चल रहे थे। तभी अचानक पार्टी ने इस सीट को ही त्याग दिया। भाजपा कार्यकर्ताओं के अनुसार इससे पार्टी के लोगों में भारी निराशा है और वे इसे अनिल सिंह और बीजेपी के यहां सियासी कत्ल के तौर पर देख रहे हैं। सियासी दोस्ती के लिए जनसंघ और जनता पार्टी के जमाने की इस सीट को यूं कुर्बान कर देना कहीं बीजेपी और एनडीए दोनों के लिए भारी न पड़ जाए।