सुमन कुमार झा
निजी सहायक, स्वास्थ्य मंत्री, बिहार
पटना मेडिकल कालेज का पूर्व नाम प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज था। आम लोगों के बीच यह अवधारणा आज भी बनी हुई है कि इस मेडिकल कालेज का निर्माण अंग्रेजों ने किया था। यह अवधारण सत्य नहीं है। इस मेडिकल कालेज का निर्माण बिहार के साधन सम्पन्न लोगों के प्रयास से हुआ था। चुकि भारत में अंग्रेजों का शासन था और किसी भी संस्थान को वैधानिक मान्यता उस समय की सरकार या शासन व्यवस्था के बिना संभव नहीं था। ऐसे में इस कालेज का नाम उस समय के ब्रिटेन के प्रिंस के नाम पर रखा गया ताकि स्थापना के समक्ष आने वाली परेशानियां कम हो सके।
इस कालेज की स्थापना के पीछे की कहानी जनसामान्य के बीच चर्चा में नहीं है। इस कहानी के केंद्र में दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत का शासन ब्रिटिश सरकार ने सीधे अपने हाथ में ले लिया था। ब्रिटिश क्राउन के प्रतिनिधि के रूप में भारत के गवर्नर जेनरल दिल्ली से पूरे देश पर शासन करते थे। महाराजा रामेश्वर सिंह भारत के गवर्नर जेनरल की भारत परिषद के सदस्य थे। प्रिंस आफ वेल्स के भारत आगमन के समय उन्होंने व्यक्तिगत मुलाकात में उस समय के गवर्नर जेनरल चेम्सफोर्ड से आग्रह किया कि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बिहार के पटना में एक मेडिकल कालेज की आवश्यकता है। प्रिंस की भारत यात्रा के दौरान इसका शिलान्यास उनके हाथों से ही करा दिया जाए।
इसके बाद वर्ष 1920 ई. में जब प्रिंस आफ वेल्स की भारत यात्रा का कार्यक्रम तय हुआ तब बिहार में एक मेडिकल कालेज की स्थापना की बात जोरशोर से उठी। बिहार के ले. गवर्नर मि. एडवर्ड गेट का ने स्वयं प्रस्ताव रखा कि मेडिकल कालेज का शिलान्यास प्रिंस आफ वेल्स के हाथों कराया जाए। उनकी यात्रा की स्मृति में इस कालेज का नाम उनके नाम पर ही होगा। प्रस्ताव के अनुरूप प्रिंस आफ वेल्स ने कालेज का शिलान्यास उन्होंने अपने हाथों से किया। इस कालेज के लिए कोष की व्यवस्था की अपील की गयी। उसमें दरभंगा महाराज ने सबसे अधिक पांच लाख रूपए और अपना 65 एकड़ का बगीचा मेडिकल कालेज के लिए दान कर दिया। महाराजा रामेश्वर सिंह के प्रयास से पटना का टेम्पल मेडिकल स्कूल दरभंगा स्थानांतरित हो गया थौ
प्रिस आफ वेल्स मेडिकल कालेज की स्थापना के आदेश संबंधित पत्र जब प्रथम प्राचार्य ले.कर्नल डटन को प्राप्त हुआ था तो वे चौंक पड़े थे क्योंकि उस समय की अंग्रेजी सरकार से इस प्रकार के कार्य की उम्मीद उसके अधिनस्थ अधिकारियों व कर्मचारियों को भी नहीं होती थी।
पटना मेडिकल कालेज अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। इस संस्थान को आगे की यात्रा भी करनी है। आगे की यात्रा को सार्थक बनाने के लिए पीछे मुंड कर देखना भी जरूरी है। इस दृष्टि से शताब्दी वर्ष जैसा अवसर अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस अवसर पर होने वाले भव्य उत्सव को सार्थक ज्ञान संगम बनाने के प्रयास हो रहे हैं। लेकिन, इस कालेज का गौरव पुनः वापस करने के लिए समाज के सक्षम लोगांे को इससे जोड़ने की योजना की भी आवश्यकता है। वर्तमान युग पब्लिक पार्टनर का है। शताब्दी वर्ष में इस महान चिकित्सा शिक्षा संस्थान को इसके मौलिक स्वरूप में लाने का संकल्प आवष्यक है। यह अपने मौलिक स्वरूप में तभी लौटेगा जब इस संस्थान के विश्व प्रसिद्ध शिक्षकों द्वारा शोध के क्षेत्र में स्थापित प्रतिमान को पुनर्जीवित किया जाएगा। यह कार्य कोई विदेशी नहीं बल्कि बिहार की मिट्टी से जन्में प्रतिभावान युवा चिकित्सक ही कर सकेंगे।
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि अपनी स्थापना से लेकर अब तक पटना मेडिकल कालेज अस्पताल ने अच्छे और बुरे दिन देखे हैं। आजादी के बाद 20 वीं शताब्दी के अंतिम दशक में पटना मेडिकल कालेज के बुरे दिन शुरू हो गए थे, इस महान चिकित्सा शिक्षा संस्थान की जो छवि बनने लगी थी वह निश्चित रूप से दुखद था। लेकिन, इस अस्पातल ने अपने चिकित्सकों, शिक्षकों और छात्रों के माध्यम से चिकित्सा जगत में विश्व स्तरीय प्रतिमान भी स्थापित किया है। अपने शताब्दी वर्ष में यह संस्थान अपने पुराने गौरव की ओर तेजी से लौटता दिख रहा है। बिहार के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के हृदय में बसने वाला यह संस्थान भारत ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे बड़ा मेडिकल कालेज अस्पताल बनने जा रहा है। पांच हजार से भी अधिक बेड की क्षमता वाला यह अस्पताल विभिन्न रोगांे के निदान में विशेषज्ञता वाला संस्थान बने। इसमें इस संस्थान के सामर्थ्यवान पूर्ववर्ती छात्रों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। यह एक ऐसा संस्थान है जिसके पूर्ववर्ती छात्र विश्व के बड़े-बड़े अस्पताल व शोध संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं। इनका अपने मातृ संस्थान से आज भी जीवंत संबंध है। अपने इस पूंजी के बल पर पीएमसीएच पुनः उठ कर खड़ा हो सकता है।
सृजनात्मक सोच, स्वतंत्र राय-विचार करने की क्षमता एवं पूरे मनोयोग से काम करने की आदत बचपन में ही पड़ती है। किसी संस्थान में प्रवेश पाने वाले फ्रेशर बच्चा के समान ही होते हैं। उनके व्यक्त्वि के निर्माण में उनके शिक्षक, सीनियर सहपाठी और संस्थान के वातावरण की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इस मानक पर यदि हम पटना मेडिकल कालेज का आंकलन करें तो निश्चित रूप से यह संस्थान भारत के अन्य मेडिकल कालेजों से भिन्न है। पीएमसीएच में मरीजों की भारी भीड़ के बीच उपचार कर रहे जूनीयर डाक्टरों को देखकर मेरे मन-मस्तिष्क में विचारों के बादल उमड़ने-घुमड़ने लगते हैं। मेरा अंतरमन कहता है कि ऐसी स्थिति में मरीजों का उपचार में जूझने वालों में असाधारण नैदानिक परीक्षण क्षमता और प्रबंधन कौशल सहज ही विकसित हो जाएगा। यह क्षमता इस मेडिकल कालेज के छात्रों को अन्य से अलग करती है।
आज के परिवेश में लगता है कि मेडिकल प्रोफेशन समाज से कटा हुआ है। अपने गांव, समाज और राष्ट्र से अलग-थलग, व्यक्तिवादी, बाजारवादी, भोगवादी संस्कृति के चंगुल में बुरी तरह से जा फंसा है। लेकिन, पटना मेडिकल कालेज में मैं जब भी गया तब एक अलग अनुभव हुआ। बेसहरा को सहरा देने वाला अस्पताल। हम सब की अपनी-अपनी अपेक्षाएं होती हैं। उसकी पूर्ति मंे बाधा देख हम बौखला उठते हैं लेकिन संसाधन और परिस्थितिजन्य दबाव की चर्चा तक नहीं करना चाहते हैं। यहां टेम्पल मेडिकल स्कूल और प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज के प्रारंभिक दिनों की चर्चा आवष्यक है। उस समय अंग्रेजी पद्धति के साथ ही वहां भारतीय पद्धति का उपयोग कर भी मरीजों का उपचार किया जाता था। पटना मेडिकल कालेज अस्पताल अपने नए अवतार में सामने आ रहा है, उसमें भारतीय स्वास्थ्य रक्षण पद्धति को भी शामिल किया जाना चाहिए।