बिहार की राजनीति में एक नया ट्विस्ट!
ओवैसी ने अपनी रणनीति में मुस्लिम बहुल सीटों का नया निशाना बिहार को बनाया है। इस बार वे सिर्फ मुस्लिम बहुल सीटों पर नहीं, बल्कि राजपूत प्रत्याशियों के खिलाफ भी है. इससे बिहार की राजनीति में नए मुद्दे उठेंगे और राजपूत समुदाय की धारावाहिकता भी परीक्षण में आएगी।
ओवैसी का यह कदम चुनावी रणनीति के एक नए आयाम को प्रकट करता है। वे अब सिर्फ अपने आदमयों के निर्विवाद पर नहीं खेल रहे हैं, बल्कि राजनीतिक चक्रव्यूह में नये करणीयों को खोज रहे हैं। इससे बिहार की सामाजिक समानता और राजनीतिक उत्तेजना में नए सवाल उठेंगे।
ओवैसी का निशाना राजपूतों के खिलाफ प्रत्याशियों पर है। यह एक बड़ा गेम चेंजर हो सकता है क्योंकि बिहार में राजपूतों का बड़ा हिस्सा है। इससे राजनीतिक गणमान्यता को हिला कर रख देने की संभावना है।
दरअसल, जिस शिवहर सीट से राणा रणजीत सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है यहां मुख्य मुकाबला जदयू की लवली आनंद और राजद की रितु जायसवाल के बीच है. लवली आनंद राजपूत जाति से आती हैं. ऐसे में यहां राजपूत जाति से आने वाले राणा रणजीत सिंह को अपना प्रत्याशी बनाकर ओवैसी विरोधियों के निशाने पर आ गये हैं. कहा जा रहा है कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया है ताकि राजपूत वोटों में बंटवारा हो जाए. अगर ऐसा हुआ तो यह लवली आनंद के लिए बड़ा झटका हो सकता है. यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या महज 16 प्रतिशत है.
जाहिर तौर पर मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के आधार पर खड़ी एआईएमआईएम के अचानक से बिहार में कई सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला सबको चौंका रहा है. दरअसल, सीमांचल के जिन इलाकों में चुनाव संपन्न हुआ है उसमें कटिहार, पूर्णिया दो ऐसी सीटें रही जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद 40 फीसदी से ज्यादा मानी जाती है. इसी तरह अररिया में करीब 42 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों के बावजूद एआईएमआईएम ने यहां प्रत्याशी नहीं दिया. कटिहार में तो एआईएमआईएम ने आदिल हसन को प्रत्याशी तक घोषित कर दिया था, लेकिन नामांकन से चंद घंटों पूर्व पार्टी का फैसला आया कि यहां से वह चुनाव नहीं लड़ेगी. इसी तरह अररिया में पूर्व सांसद तसलीमुद्दीन के बड़े पुत्र सरफराज आलम का टिकट काटकर लालू ने उनके छोटे भाई शाहनवाज को उम्मीदवार बना दिया. इससे सरफराज नाराज हुए और उन्हें उम्मीद थी कि शायद एआईएमआईएम से उन्हें अररिया से उम्मीदवार बनाया जाये. लेकिन ओवैसी की पार्टी ने अररिया से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया.