पटना: पटना पुस्तक मेले में चल रहे ‘सिनेमा-उनेमा फिल्मोत्सव’ के दूसरे दिन रविवार को 42 वर्षों से फिल्में बना रहे फिल्मकार प्रणव शाही को सम्मानित किया गया एवं उनकी फिल्म ‘वाल्मीकि अभ्यारण्य’ दिखायी गई। जानेमाने फिल्म विश्लेषक प्रो. जय मंगल देव का विशेष व्याख्यान हुआ। विषय था— ‘बिहार में सिनेमा के अनछुए पहलू।’
प्रो. देव कहा कि यद्यपि बिहार में पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म छठ पर 1930 में आ गई थी, तथापि आज भी बिहार के कई सारे विषय हैं, जिन पर फिल्में नहीं बनीं हैं। जैसे छठ को ही लें, तो मुख्यधारा के फिल्मकारों ने इस विषय से परहेज ही किया है। रेणु की कथा पर ‘तीसरी कसम’ बनाने का प्रण जब शैलेंद्र लेते हैं, तो राज कपूर व बासु भट्टाचार्य ही नजर आते हैं। उसी प्रकार दशरथ मांझी पर फिल्म बनाने के लिए केतन मेहता व नवाजुद्दीन को बिहार आना पड़ता है। इसका एक दूसरा पहलू है कि बिहार के जो फिल्मकार मुंबई चले गए, वे बिहार के बाहर के विषयों को ही अधिक प्राथमिकता के साथ काम किए। यहां तक हिंदी की कई फिल्में जो बिहार में शूट होती हैं, उनमें केवल लोकेशन बिहार का होता है, बाकी कहानी से बिहार के किसी प्रतीक का संबंध नहीं होता है। उन्होंने कहा कि बिहार की संस्कृति, जीवनशैली, लोक परंपरा किसी मुख्यधारा की फिल्म में शायद ही दिखायी गई हो। डॉक्यूमेंट्री में जरुर बिहार के विषयों को केंद्रित किया है, लेकिन व्यवसायिक रूप से बनने वाली फीचर फिल्मों में नदारद हैं। यही कारण है कि बिहार के बाहर हमारे बिहार की वही घिसीपिटी छवि है, जो चंद मसाला फिल्मों में दिखाया गया है।
इससे पूर्व सीआरडी के अध्यक्ष रत्नेश्वर ने कार्यक्रम के प्रथम दर्शक सह मुख्य अतिथि मेदांता के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. रविशंकर सिंह, मुख्य वक्ता प्रो. जय मंगल देव एवं फिल्मकार प्रणव शाही को प्रतीक चिह्न, पौधा आदि देकर सम्मानित किया। मंच संचालन रंगकर्मी कुमार रविकांत ने किया, वहीं कार्यक्रम का मॉडरेशन फिल्म समीक्षक प्रशांत रंजन ने किया। इस अवसर पर वरीय रंगकर्मी सुमन कुमार, नीलेश्वर मिश्र, यामिनी शर्मा,रमेश सिंह, फिल्मकार आरबी सिंह, डॉ. कुमार विमलेंदु सिंह, मनोज कुमार पांडेय समेत जनसंचार के विद्यार्थी एवं सिने प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।