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देश-विदेश

जानें, कैसे बिहार चुनाव ने ‘डीप स्टेट’ की वैश्विक साजिश को धूल चटा दिया?

Amit Dubey
Last updated: December 10, 2025 4:15 pm
By Amit Dubey 60 Views
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28 Min Read
बिहार, चुनाव, डीप स्टेट, वैश्विक साजिश, धूल चटाई
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नवंबर में हुआ लेकिन बहुत पहले से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ताबड़तोड़ बिहार दौरा शुरू हो गया था। सामान्य तौर से प्रधानमंत्री की इस सक्रियता को उनकी आक्रामक राजनीतिक शैली से जोड़कर देखा जा रहा था। लेकिन, इसके पीछे का कारण महज चुनावी राजनीति नहीं थी। पीएम मोदी ने बिहार में कम से कम तीन स्थानों पर अपनी सभाओं में इसके संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था कि बिहार के इस विधानसभा चुनाव पर विदेशी शक्तियों की नजरें हैं। इस चुनाव का परिणाम भारत के भविष्य का निर्धारण करेगा। पीएम मोदी का इशारा उन शक्तियों की ओर था जिन्होंने बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका जैसे देशों में उथल पुथल मचाया था। यानी डीप स्टेट। चुनाव के बाद पीएम मोदी ने कहा कि बिहार चुनाव ने गर्दा उड़ा दिया। मोदी और नीतीश की जोड़ी ने लोकतंत्र की जननी बिहार की भूमि पर वोट की चोट से ‘डीप स्टेट’ को औधे मुंह चित कर दिया।

Contents
कुख्यात और संगठित ग्लोबल मार्केट2 वर्ष पूर्व बिहार में जाल बुनना शुरू कियाPK ने बिहार की तुलना सुडान से कीबिहार में डीप स्टेट का आपरेशनल मॉडलसामाजिक तानाबाना बिगाड़ने की साजिशपीएम मोदी और नीतीश का संवाद कौशलमोदी और नीतीश का एकदूसरे पर भरोसानेपाल-बांग्लादेश में डीप स्टेट का उत्पातबिहार में ये थी दुश्मनों की तैयारी, लेकिन…हिंसा, रिपोल रहित चुनाव का बना रिकार्डकांग्रेस के दौर में धनबल-बाहुबल का जन्म2025 चुनाव : कई मील के पत्थर कायम
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कुख्यात और संगठित ग्लोबल मार्केट

डीप स्टेट के नाम से कुख्यात एक संगठित ग्लोबल मार्केट फोर्स जो पूरे विश्व को अपने खतरनाक चंगुल में लेने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। किसी देश के तंत्र और लोक के मन-मस्तिष्क को भ्रष्ट और दिग्भ्रमित कर कठपुतली सरकार बनवाने वाले इस अदृश्य मायावी राक्षस के बढ़ते कदम को भारत ने रोक दिया है। अब भारत को अपने कब्जे में लेने के लिए इस मायावी राक्षस ने बिहार विधानसभा चुनाव को एक सुअवसर मान कर बड़ी खतरनाक योजना तैयार की थी। इस योजना की जानकारी समय रहते भारत के खुफिया तंत्र व भारत की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले राष्ट्रवादी संगठनों तक पहुंच गयी थी।

करीब एक वर्ष के परिश्रम में बाद लोकतंत्र के इस महापर्व पर भारत की सार्वभौमिकता पर प्रहार का यह दानवी प्रयास न केवल विफल हुआ बल्कि इसके साथ काम करने वाले भारत में बैठे लोग व नेटवर्क का भी पर्दाफाश हुआ है। लोकतंत्र की आड़ में लोकतंत्र व भारत की अस्मिता पर प्रहार करने वाली शक्ति का समय रहते यदि समूल नाष नहीं हुआ तो वे आगे और अधिक खतरनाक साबित होंगे।

2 वर्ष पूर्व बिहार में जाल बुनना शुरू किया

अमेरिका को केंद्र बनाकर इस ताकत ने करीब दो वर्ष पूर्व से ही बिहार में अपना जाल बुनना शुरू कर दिया था। उसके इस नेटवर्क में मिशन के नाम पर चलने वाले कुछ एनजीओ, माओवादी नक्सली नेटवर्क और अतिवादी इस्लामिक संगठन भी शामिल थे। इसके साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं में असंतोष का भाव भरने और उसे भड़काने के सुनियोजित प्रयास शुरू हो गए।

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माओवादी नक्सली नेटवर्क के माध्यम से पूरे बिहार में जातीय विद्वेष का जहर फैलाने के भी सुनियोजित प्रयास शुरू कर दिए गए थे। पिछले एक वर्ष में नक्सल प्रभावित जिलों की कुछ हिंसक घटनाओं के विष्लेशण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसके पीछे का मकसद बिहार में पुरानी जातीय विद्वेष का माहौल फिर से बनाना था। राजद का पुराना ‘भूरा बाल’ का मामला फिर से सामने आ गया। राजद के कुछ बड़े नेताओं ने भी भूरा बाल की बात कहनी शुरू कर दी थी।
यह सभी मानने लगे हैं कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार किसी दबाव में भारत के हितों को दरकिनार करते हुए किसी भी शक्तिशाली देश के साथ कोई समझौता नहीं करेगी। इस सरकार में भारत का मान-सम्मान, स्वाभिमान और हित सुरक्षित है।

PK ने बिहार की तुलना सुडान से की

बिहार विधानसभा चुनाव के पूर्व जन सुराज पार्टी बनाकर राजनीति में सक्रिय हुए प्रशांत किशोर ने समय-समय पर जो वक्तव्य दिए हैं उससे स्थित के आंकलन के सूत्र मिलते हैं। अपनी पार्टी के अमेरिकी चैप्टर के शुभारंभ के अवसर पर उन्होंने कहा था कि बिहार, एक ऐसा राज्य है जो गहरे संकट में है। अगर बिहार एक देश होता, तो जनसंख्या के लिहाज से यह दुनिया का 11वां सबसे बड़ा देश होता। हमने जनसंख्या के मामले में जापान को पीछे छोड़ दिया है। इसके साथ ही उन्होंने यह कहा कि यदि उनकी पार्टी 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव जीतेगी तो वे शराब पर प्रतिबंध हटा देंगे। इस वक्तव्य के माध्यम से वे बिहार को एक बडे बाजार के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे और शराबबंदी को हटाकर वे इस बाजार के दरवाजे सबके लिए खोलने का आश्वासन भी दे रहे थे।

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इससे आगे बढ़ते हुए प्रशांत किशोर ने कहा था कि विफल राज्यों के लक्षण यहां की आबादी में साफ दिखाई देते हैं। बिहार की तुलना उन्होंने सूडान से कर दी जहां पिछले दो वर्ष से लोग गृहयुद्ध की आग में झुलस रहे हैं। प्रशांत किशोर के उस वक्तव्य से स्पष्ट होता है कि वे बिहार को एक असफल राज्य बताते हुए किसी भी प्रकार के अराजक आंदोलन को जायज ठहराने की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हों।

बिहार में डीप स्टेट का आपरेशनल मॉडल

डीप स्टेट के आपरेशनल माडल में इस प्रकार की धारणा एवं नैरेटिव महत्वपूर्ण टूल होते हैं। मतलब बिहार में अराजक माहौल बनाकर उसमें विधानसभा चुनाव कराने की पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी। ऐसे में बिहार में कोई मजबूत सरकार का बनना मुष्किल होता। कमजोर और ढुलमूल सरकार में डीप स्टेट का काम आसान हो जाता है। महात्मागांधी के सत्याग्रह की प्रयोग भूमि बिहार में समाजवादी, वामपंथी आंदोलन भी फले फूले। इसके बाद जातीय हिंसक गिरोहों और माओवादी नक्सलियों के भारी रक्तपात से बिहार की आत्मा कराह उठी थी। कांग्रेस के शासन काल में शुरू हुआ नरसंहार का सिलसिला लालू-राबड़ी की सरकार में चरम पर पहुंच गया था। करीब ढाई दशक के बाद बिहार में अमन चैन लौटा। बिहार के लोग वे पुराने दिन अभी भूले नहीं हैं जब शाम ढलते ही षहर विरान हो जाते थे। सड़कें गढ़े में तब्दील थीं। बिजली कभी-कभी आती थी। उन काले दिनों को याद कर बिहार के मतदाताओं ने मतदान किया तो परिणाम चौंकाने वाले हुए। लेकिन, यह काम इतना आसान नहीं था।

सामाजिक तानाबाना बिगाड़ने की साजिश

बिहार में भारी विदेशी पूंजी से उथल-पुथल कराने वाली ताकतें सामाजिक तानाबाना बिगाड़ने के लिए योजनाबद्ध तरीके से सक्रिय थीं। छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से जातीय विद्वेष फैलाने के अनेक प्रयास हुए। इसमें सोशल मीडिया का घातक उपयोग हुआ। युवाओं को भडका कर उन्हें सड़क पर उतारने और उपद्रव कराने के सतत प्रयास होते रहे। एक ही तरह के कंटेट कई लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट से वायरल हो रहे थे। परीक्षा में धांधली को मुद्दा बनाकर पूरे बिहार को हिंसक आंदोलन की आग में झोंकने के भी प्रयास हुए लेकिन ऐसे सभी प्रयास विफल हुए। इसमें कोचिंग माफियाओं की अहम भूमिका थी।

सोशल मीडिया पर भ्रमक और द्वेष फैलाने वाले कंटेंट और विडियो वायरल किए जा रहे थे। कभी पत्रकारिता से जुड़े रहे कुछ चर्चित लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट से चल रहे कंटेंट के विश्लेषण से बहत कुछ स्पष्ट हो रहा था। बिहार विधानसभा चुनाव एक प्रकार से नैरेटिव वार इवेंट जैसा हो गया था। इसमें लोगों की जातीय भावनाओं और युवाओं के असंतोष को भड़काने का प्रयास स्पष्ट दिखता था। ऐसे कंटेंट के कारण बिहार में हिंसक माहौल बनने की पूरी आशंका व्यक्त की जा रही थी। शिकायत के बावजूद सोशल मीडिया पर ऐसे कंटेंट की बाढ़ नहीं रूक रही थी। इसके भयावह परिणाम का अंदाजा खुफिया तंत्र को था। इस स्थिति को पीएम मोदी ने अपने संवाद कौशल से संभाला। ऐसे नैरेटिव को निष्प्रभावी करने में उनकी भूमिका प्रमुख थी।

पीएम मोदी और नीतीश का संवाद कौशल

इसी बीच पीएम मोदी और नीतीश कुमार के बीच बिगड़ते संबंध की अफवाह बार-बार सोषल मीडिया के माध्यम से उडाये जा रहे थे। इसके कारण नीतीश कुमार के चाहने वाले भ्रम में पड़ रहे थे। ऐसी स्थिति से निबटने के लिए नीतीश कुमार स्वयं सामने आ जाते थे। सार्वजनिक सभाओं में बार-बार उनका यह कहना कि अब हम इनको (प्रधानमंत्री) छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे। उधर सब गड़बड़ है। इनके साथ ही बिहार का विकास हुआ है और आगे भी खूब होगा….। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक प्रामाणिक खुफिया सूचनाएं सतत पहुंच रही थी। उस आधार पर व सार्वजनिक सभाओं में पूरी स्पष्टता से यह बात करते रहे कि एनडीए में कोई टूट-फूट या असंतोष नहीं है। दूसरी ओर नीतीश कुमार की ऐसी बातों को असरहीन बनाने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से संगठित, सघन, व्यापक और सतत प्रयास चल रहे थे। इसमें हजारों पेड प्रोफेशनल लगे हुए थे।

मोदी और नीतीश का एकदूसरे पर भरोसा

बिहार के मधुबनी जिले के झंझारपुर के पास स्थित विदेश्वर स्थान मैदान में पंचायती राज दिवस के मौके पर 24 अप्रैल 2025 को एक विशाल समारोह का आयोजन हुआ। उस समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी शामिल हुए थे। उस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13000 करोड़ से अधिक की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। लेकिन, राजनीतिक दृष्टि से उद्घाटन और शिलान्यास से बहुत अधिक प्रभावशाली पीएम मोदी का संबोधन था।

अपना संबोधन शुरु करने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो मिनट का मौन रखकर पहलगाम में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी। पीएम मोदी ने कहा कि जिनको हमने खोया, उनको श्रद्धांजलि। पहलगाम हमले पर पीएम मोदी ने दुख जताया। पीएम मोदी ने अपनी इस शैली से डीप स्टेट के टट्टुओं के सारे प्रयासों पर पानी फेर दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहलगाम हमले पर टिप्पणी करते हुए कहा था-’22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों ने मासूम देशवासियों को जिस बेरहमी से मारा है, पूरा देश व्यथित है, कोटि-कोटि देशवासी दुखी हैं। सभी पीड़ित परिवारों के इस दुख में पूरा देश उनके साथ खड़ा है। जिन परिवारजनों का इलाज चल रहा है, वे जल्द स्वस्थ हों, इसके लिए भी सरकार हर प्रयास कर रही है। साथियों इन आतंकी हमलों में किसी ने अपना बेटा खोया, किसी ने अपना भाई खोया, किसी ने अपना जीवन साथी खोया। उनमें से कोई बांग्ला बोलता था, कोई कन्नड़ बोलता था, कोई मराठी था तो कोई गुजराती था। आज उन सभी की मृत्यु पर कारगिल से कन्याकुमारी तक दुख एक जैसा है। आक्रोश एक जैसा है। देश के दुश्मनों ने भारत की आस्था पर दुस्साहस किया है। मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूं, जिन्होंने हमला किया है उन आतंकियों को और साजिश रचने वालों को उनकी कल्पना से बड़ी सजा मिलेगी, सजा मिलकर रहेगी मिट्टी में मिलाकर रख देंगे।’ इसके बाद पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई हुई जिसमें बड़े आतंकी और आतंकियों के निकट संबंधी भी मारे गए थे। इसके साथ बिहार के मतदाताओं को भरोसा हो गया कि मोदी है तो मुमकिन है।

नेपाल-बांग्लादेश में डीप स्टेट का उत्पात

बिहार चुनाव से ठीक पहले 9 सितंबर 2025 को पड़ोसी देश नेपाल अचानक जल उठा था। हजारों युवा संगठित रूप से सड़कों पर उतर गए और हिंसक उपद्रव करने लगे। सुदन गुरुंग के नेतृत्व में नेपाल की राजधानी काठमांडू में संघीय संसद भवन पर हमला हुआ। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें होने लगीं। दर्जनों लोग मारे गए थे। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में आग लगा दी। बांग्लादेश की ही तरह नेपाल भी अराजक भीड़ के हवाले हो गया। पागल भीड़ ने पुराने कलात्मक सरकारी भवनों और सरकार में शामिल नेताओं के आवासों पर भी हमले किए। यहां तक कि कई पूर्व प्रधानमंत्रियों के घरों को भी जला दिया गया। चीन समर्थक नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। मंत्रियों और सांसदों को न केवल पद छोड़ना पड़ा बल्कि अपनी जान बचाने के लिए भागना भी पड़ा। कहने को तो यह हिंसक उपद्रव नेपाल में सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ था लेकिन ये सारे कारण तात्कालिक ही थे। इसके पीछे एक सुनियोजित नेटवर्क था जो युवाओं के मन में असंतोष और आक्रोश को भड़काने का लगातार प्रयास कर रहा था। सोशल मीडिया पर बैन ने पूर्व से जमा बारूद में एक चिंगारी का काम किया। आग ऐसी भड़की कि चीन के वफादार केपी शर्मा ओली को सेना के हेलीकॉप्टर में बैठकर अज्ञात जगह में जाकर अपनी जान बचानी पड़ी।

नेपाल के पूर्व 5 अगस्त 2024 को ऐसे ही कथित युवा और छात्रों के आंदोलन के कारण पूरा बांग्लादेश इस्लामिक कट्टर पंथी हिंसक भीड़ के हवाले हो गया था। हिंसक उपद्रवियों ने वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं पर भीषण अत्याचार शुरू कर दिये थे। ढाका स्थित सरकारी आवास और कार्यालयों पर धावा बोल दिया था। प्रधानमंत्री शेख हसीना सेना के विमान में सवार होकर भारत के हिंडन एयरपोर्ट पहुंची थीं और भारत में शरण ली। इससे एक स्वतंत्र देश का स्वाभिमान और उसकी सार्वभौमिकता मिट्टी में मिल गई।

बिहार में ये थी दुश्मनों की तैयारी, लेकिन…

बिहार चुनाव 2025 के अवसर पर बिहार की सीमा से लगे नेपाल और बांग्लादेश तथा बिहार के नक्सली नेटवर्क वाले जिलों में बड़े स्तर पर आंदोलन और उपद्रव की तैयारी थी। भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां अभिव्यक्ति की आजादी और आंदोलन के नाम पर लोकतंत्र और देश विरोधी गतिविधियां आसानी से चलायी जाती रही हैं। ऐसे आंदोलनों के पीछ बहुत बड़ा पूंजी निवेश होता है। डीप स्टेट से जुड़ी कम्पनियां इस काम को अंजाम दे रही थीं। लेकिन, उन्हें इसका अंदाजा नहीं था कि देश की सुरक्षा व स्वाभिमान के लिए कुछ भी कर डालने वाले मोदी के जमाने में यह सब संभव नहीं था। ईडी, आईबी और रॉ जैसी एजेंसियों की संयुक्त कार्रवाई के कारण ऐसी कम्पनियों व संस्थाओं की नसें फूलने लगीं। मधुबनी में प्रधानमंत्री के समारोह के समय नशेड़ियों, नक्सलियों और इस्लामिक कट्टर पंथियों के गठजोड़ से बड़ा धमाका करने की योजना थी। लेकिन, केंद्र और राज्य सरकारों की सक्रियता के कारण उनकी योजना धरी की धरी रह गयी। नेपाल सीमा से लगे प्रखंड़ों व थाना क्षेत्रों में स्थानीय लोगों के सहयोग से ऐसी चौकसी बढ़ा दी गयी थी कि उपद्रवी भाग खड़े हुए। नेपाल से अवैध शराब और मादक पदार्थों के साथ ही नशीले कफ सिरप तक की तस्करी पर सख्ती बरती गयी।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान भारत के गृहमंत्री अमित शाह का यहां लगातार कैम्प करना और बिहार के सीमावर्ती जिलों पर सूक्ष्म नजरें रखना केवल चुनावी राजनीति ही नहीं, बल्कि खुफिया इनपुट को लेकर उनकी बेचैनी को भी दर्शाता है। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान उपद्रव व तबाही मचाने के डीप स्टेट के षडयंत्र को यदि विफल नहीं किया जाता तो केंद्र सरकार को अस्थिर करने वाली उनकी आगे की कोशिशों को रोकना असंभव हो जाता। अमित शाह ने खुद आगे बढ़कर ऐसा सूक्ष्म प्रबंधन किया कि वैश्विक बाजारवादी शक्तियों की रीढ़ ही टूट गयी।

चुनाव प्रचार के दौरान मोकामा में जनसुराज के प्रचार काफिले में शामिल दुलारचंद यादव की हत्या के बाद पूरे बिहार में यादव बनाम भूमिहार की लड़ाई का माहौल बनाने का प्रयास हुआ, लेकिन अनंत सिंह की गिरफ्तारी और उपद्रव का मन बनाने वालों पर कठोर कार्रवाई से ऐसे प्रयास ठिठक गए। दुलारचंद यादव की शवयात्रा में शामिल लोगों द्वारा जाति विशेष को लक्ष्य कर लगाये गए आपतिजनक नारों व गाली-गलौज को सोशल मीडिया पर वायरल करने वालों पर जब कठोर कार्रवाई होने लगी तब मामला शांत हो सका था। खुफिया इनपुट के आधार पर चुनाव को लेकर बिहार के सभी क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती और लगातार गश्ती ने उपद्रवी तत्वों के कस—बल को तोड़ दिया। इसके परिणाम स्वरूप बिहार विधानसभा चुनाव में कहीं से हिंसा, मतदान केंद्रों पर उत्पात या गड़बड़ी की शिकायत तक नहीं आयी। पहली बार किसी एक भी मतदान केंद्र पर पुनर्मतदान की नौबत नहीं आयी।

हिंसा, रिपोल रहित चुनाव का बना रिकार्ड

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बाद चर्चा का विषय यह है कि क्या सचमुच बिहार बदला है? यदि बदला है तो क्या बदला, कैसे बदला? ऐसे प्रश्नों का प्रामाणिक उत्तर किसी राजनीतिक बयान में सम्भव नहीं, बल्कि उन आंकड़ों में मिलता है जो पिछले चार दशकों की चुनावी हिंसा, पुनर्मतदान और कदाचार को सामने रखते हैं। जब कांग्रेस का एकछत्र राज था तब 1985 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान 63 लोगों की जानें गयी थीं। इसमें मसौढ़ी के प्रत्याषी भी शामिल थे। जनता पार्टी के बिखरने के बाद 1980 में कांग्रेस की पुनर्वापसी के साथ राजनीति के अपराधीकरण का दौर परवान चढ़ने लगा था। इसके साथ ही गांधी-जयप्रकाश की प्रयोग भूमि चुनावी हिंसा को लेकर कुख्यात होने लगी थी। उस समय वोटों की चोरी नहीं बल्कि डकैती होती थी। बिहार की चुनावी हिंसा की कहानी 2025 में आकर शून्य हिंसा और जीरो रिपोल यानी शून्य पुनर्मतदान पर समाप्त होती दिख रही है। यह बदलाव सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक परिवर्तन का भी आईना है।

दरअसल, बिहार का चुनावी इतिहास जितना राजनीतिक उतार-चढ़ाव और अनिश्चितता से भरा रहा है, उतना ही हिंसा और संस्थागत भ्रष्टाचार और राजनीतिक अनैतिकता के लिए भी चर्चित रहा है। कांग्रेस के प्रभाव वाले 1980 से लेकर 1990 के दशक में बिहार चुनाव का मतलब अक्सर गोलीबारी, बूथ लूट, फर्जी मतदान, पुलिस पर हमला और बड़ी संख्या में पुनर्मतदान से जुड़ा माना जाता था। लेकिन, 2025 का चुनाव ने इस लंबे काले इतिहास को बदल दिया। प्रायोजित और बाहुबलियों की आपसी रंजिश को छोड़कर न हिंसा की बड़ी घटना हुई और न एक भी मतदान केंद्र पर पुनर्मतदान कराना पड़ा।

कांग्रेस के दौर में धनबल-बाहुबल का जन्म

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने थे। पूरे देश से विपक्ष का सफाया हो गया था। कांग्रेस धनबल और बाहुबल के सहारे किसी भी तरह से सत्ता को अपने कब्जे में रखने की नीति पर चल पड़ी थी। इसके परिणाम स्वरूप 1985 का विधानसभा चुनाव बिहार में अत्यधिक हिंसक हुआ था। चुनाव प्रक्रिया के दौरान 63 लोगों की मौत हुई और 156 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान कराना पड़ा था। सात सौ से अधिक मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान की अपील की गयी थी लेकिन कांग्रेस के दबाव में अधिकारियों ने ऐसे आवेदनों को रद्दी की टोकरी में डाल दिए थे। सचमुच चुनाव आयोग कांग्रेस की रखैल बनकर रह गया था। यह वह दौर था जब चुनावी हिंसा को सिस्टम का हिस्सा मान लिया गया था और प्रशासनिक नियंत्रण कई जगहों पर धराशायी दिखता था। इसी तरह 1990 का चुनाव भी बिहार के लिए बेहद खूनी साबित हुआ था। सियासी उथल-पुथल और जातीय तनाव के बीच 87 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद बिहार को देश के सबसे संवेदनशील चुनावी राज्य मान लिया गया था

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच मोकामा से आई गोलीबारी और जन सुराज समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या ने पूरे राज्य को झकझोर दिया था। जिस राज्य ने पिछले दो दशकों में शांतिपूर्ण चुनाव की पहचान बनाई थी, वहां अब फिर से पुरानी यादें ताजी होने लगी थीं। इस घटना ने न सिर्फ कानून-व्यवस्था बल्कि चुनाव आयोग की तैयारी पर भी सवाल खड़े कर दिए थे। लेकिन, ईमानदार और निष्पक्ष प्रयास से सारी आषंकाएं निर्मूल साबित हुई। मोकामा उत्साह व शांति-सद्भाव के साथ लोकतंत्र के महापर्व में शामिल हुआ।

2025 चुनाव : कई मील के पत्थर कायम

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के मतदान में खासा उत्साह दिखा। मुंगेर के नक्सल प्रभावित भीमबांध क्षेत्र में 20 साल बाद मतदान हुए, वहां लोगों ने उत्साह के साथ लोकतंत्र का पर्व मनाया। यह क्षेत्र डीप स्टेट के निषाने पर था। मुंगेर, भागलपुर और जमुई के बड़े होटलों में पिछले एक साल से डेरा जमाये सैकड़ों लोग जब खुफिया तंत्र के राडार पर आने लगे तब स्लीपर सेल के रूप मंे काम कर रहे ये लोग भाग खड़े हुए। इसके परिणाम स्वरूप नक्सलियों के गढ़ में भी शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव संभव हो सका। डीप स्टेट से बिहार का आम आदमी परिचित नहीं है क्योंकि इसका कार्यकलाप अत्यंत गुप्त होता है। यहां तक कि इसके नेटवर्क में शामिल लोगों को भी यह नहीं मालूम होता कि वे किसके लिए, किसके इषारे पर और किस उद्येष्य स काम कर रहे हैं। डीप स्टेट किसी देष के लक्षित नागरिक समूह के मन-मस्तिष्क में भ्रम, आत्महीनता, असंतोष का भाव भरकर उसे उपद्रव की मनःस्थिति में लाता है तब उसे संसासधन और नेटवर्क मुहैया कराकर अचानक भारी उथलपुथल कराने में सफल होता है। अपनी कठपुतली सरकार बनाकर ग्लोबल मार्केट फोर्स को अनैतिक व अघोषित सत्ताधीष बना देता है। डीप स्टेट एक ऐसा नया शब्द है जिसका उपयोग सरकार के भीतर मौजूद एक संभावित, अनौपचारिक और अक्सर गुप्त शक्ति नेटवर्क को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जो अपने स्वयं के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए काम करता है, भले ही निर्वाचित राजनीतिक नेतृत्व कुछ भी हो।

बिहार की राजनीति या प्रशासन में डीप स्टेट जैसी किसी विशिष्ट, औपचारिक या व्यापक रूप से स्थापित नेटवर्क का कोई प्रमाण या आधिकारिक पुष्टि अब तक नहीं हुआ है। लेकिन, जो तथ्य और प्रमाण सामने आए हैं उससे भारत में डीप स्टेट की उपस्थित के संकेत तो मिल ही रहे हैं। बिहार चुनाव के दौरान जो बौद्धिक उग्रता, संवैधानिक संस्थानों पर प्रमाण के बिना हमले, फर्जी डाटा के आधार पर भारत व भारत की संस्कृति विरोधी नैरेटिव गढ़ना और सोषल मीडिया के सहारे उनका फैलाव जैसे कुछ तथ्य हैं जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि मानवता को संकट में डालने वाला यह दानव रक्त बीज भारत की दहलीज पर आ खड़ा हुआ है। चुनाव के अवसर पर सत्ता लोभी नेताओं व उनके प्रभाव का इस्तेमाल कर बिहार मंे वे अपने गुप्त एजेंडों को जमीन पर उतारने की तैयारी में थे। लेकिन, बिहार के मतदाताओं ने इसे गंभीर चोट देकर जख्मी कर दिया है। अभी ये थोड़ा जख्मी ही हुए हैं इनका समूल नाष करने के लिए विषेष प्रयास व कार्ययोजना की आवष्यकता है। यह कानून-व्यवस्था का मामला नहीं बल्कि उससे बहुत बड़ा है।

बिहार विधानसभा चुनाव पर दुनिया की नजर थी क्योंकि विदेषों में बिहार की छवि एक अषांत, अलोकतांत्रिक एवं सामंती अत्याचार वाले राज्य की गढ़ दी गयी है। बिहार के इस गढ़े गए नकली छवि का उपयोग अस्त्र के रूप में करने की तैयारी थी। भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) ने ‘अंतर्राष्ट्रीय चुनाव पर्यवेक्षक कार्यक्रम (आईईवीपी)- 2025’ चलाकर विदेषी ताकतों द्वारा उपयोग किए जाने वाले इस अस्त्र को ही भोथरा कर दिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य दुनिया के अलग-अलग देशों को भारत की चुनाव प्रक्रिया और उसकी पारदर्शिता से परिचित कराना रखा गया। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयुक्त डा. विवेक जोशी ने इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया और प्रतिभागियों से बातचीत की। इस कार्यक्रम में फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम, इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड और कोलंबिया इन 7 देशों से 14 प्रतिनिधि शामिल हुए।कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों के समक्ष इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की कार्यप्रणाली का प्रदर्शन दिखाया गया। इसके बाद चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें बताया कि भारत में चुनाव कैसे कराए जाते हैं, मतदाता सूची कैसे बनती है, मतदान केंद्रों की व्यवस्था कैसे होती है और निष्पक्ष चुनाव के लिए क्या-क्या कदम उठाए जाते हैं।

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गर्व का क्षण : यूनेस्को ने दीपावली को अमूर्त धरोहर घोषित किया
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