पटना: विलियम शेक्सपियर द्वारा 400 साल पहले लिखे गए नाटकों पर अमेरिका यूरोप में लोकप्रिय फिल्में बनीं और आज भी बन रही हैं। यहां तक कि भारतीय सिनेमा में भी विशाल भारद्वाज जैसे फिल्मकार शेक्सपियर के नाटकों पर मकबूल, ओमकारा और हैदर जैसी लोकप्रिय फिल्म बनाते रहे हैं। लेकिन अगर हम हजारों साल पहले लिखे गए कालिदास के नाटकों पर कोई प्रसिद्ध फिल्म ढूंढेंगे, तो हमें नहीं मिलेगी। इसलिए यह आवश्यक है कि भारत में जो एक से बढ़कर एक कालजई नाटक लिखे गए हैं उनका भी सिनेमाई रूपांतरण होना चाहिए। उक्त बातें जानेमाने लेखक, रंगकर्मी और फ़िल्म समीक्षक डॉ. कुमार विमलेंद्र सिंह ने सोमवार को कहीं। वह पटना पुस्तक मेला अंतर्गत चल रहे सिनेमा-उनेमा महोत्सव में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। विषय था— सिनेमा और रंगमंच।
उन्होंने कहा कि कथा सम्राट प्रेमचंद और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सिनेमा के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणी की थी। भारतीय समाज में इन दोनों महापुरुषों की बड़ी अपील है। लंबे समय तक सिनेमा हमारे अध्ययन-अध्यापन का विषय नहीं बन पाया और समाज में आज भी सिनेमा को अन्य कलाओं की भांति सम्मान का दर्जा नहीं प्राप्त है।
रंगमंच और सिनेमा के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों के सौंदर्य शास्त्र में अंतर है तथापि अभिव्यक्ति के स्तर पर दोनों एक तरह से ही बातें कहते हैं। सिनेमा में इतनी शक्ति है वह किसी की वह किसी मामूली साहित्य या नाटक को भी बड़े फलक पर प्रस्तुत कर विश्व भर में अमर बना सकता है। लेकिन इसी को अगर उल्टा कर सोचें, तो किसी मामूली फिल्म को साहित्य या नाटक के माध्यम से विस्तार नहीं दिया जा सकता।
प्रथम दर्शक के रूप में उपस्थित बिहार के ऑक्सीजन मैन गौरव राय ने कहा कि मनुष्य के रूप में हमें अपना धर्म नहीं भूलना चाहिए और अपने पास जो है उसे मनुष्यता की भलाई के लिए प्रदान करने का भाव हमेशा रखना चाहिए। इस महोत्सव में आज रंगमंच और फिल्म अभिनेता प्रवीण कुमार को गौरव राय द्वारा प्रतीक चिन्ह, सम्मान पत्र और स्टॉल देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर प्रवीण कुमार ने कहा कि सम्मान मिलने से कलाकार के अंदर ऊर्जा का संचार होता है और सिनेमा उनेमा महोत्सव में सम्मान पाकर उर्जित महसूस कर रहा हूं। पटना पुस्तक मेले के संयोजक अमित झा द्वारा मुख्य वक्ता डॉ. कुमार विमलेंदु सिंह और प्रथम दर्शक गौरव राय को प्रतीक चिन्ह और स्टॉल देकर सम्मानित किया गया।
सिने सोसाइटी, पटना और बिहार आर्ट थिएटर के अध्यक्ष पूर्व आईएएस अधिकारी आर.एन. दास ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि पटना पुस्तक मेले में चले 10 दिन तक इस अनोखे फिल्म फेस्टिवल में न केवल कलाकारों का सम्मान किया गया, बल्कि बिहार और सिनेमा से जुड़े 10 विषयों पर हर दिन विशेषज्ञ द्वारा व्याख्यान भी कराया गया। बिहार में सिनेमा उद्योग की स्थापना और फिल्म साक्षरता को बढ़ावा देने के अभियान में यह फिल्म महोत्सव बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।
इस अवसर पर महोत्सव के संयोजक कुमार रविकांत ने कहा कि यह लगातार तीसरा साल है जब पटना पुस्तक मेले में 10 दिनों तक लगातार फिल्म उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में इसे और व्यापक बनाया जाएगा और सिनेमा के कई आयाम को जोड़कर इसका विस्तार किया जाएगा। महोत्सव में गायिका जया प्रभा के गायन से इस फिल्म महोत्सव का औपचारिक समापन किया गया।
इस अवसर पर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कला समीक्षक विनोद अनुपम, रंगकर्मी सुमन कुमार,मधुबाला, सनत कुमार, संगीता रमण, फिल्मकार प्रशांत रंजन, रवि मिश्रा, रमेश सिंह, ज़िया हसन, गुलरेज़ शहज़ाद, कुणाल कुमार, डॉ. किशोर सिन्हा, बी.के. जैन, मीना सिंह, विनीत झा, सरविंद कुमार मधुरेश, नीलिमा सिंह अरुण सिंह,रत्नेश, प्रभात रंजन, आर. नरेंद्र,अनूप श्रीवास्तव, विमलेंदु कुमार सिंह आदि उपस्थित थे।