बेशर्म जिद्द: जेल से सरकार चलायेंगे केजरीवाल लेकिन मतदान नहीं:
जेल में बंद कोई नेता आराम से सरकार चला सकता है लेकिन किसी आरोप में जेल में रह रहा भारत का नागरिक अपने मतदान के पुनित अधिकार एवं कर्तव्य से वंचित रह सकता है। भारत में लोकसभा का चुनाव हो रहा है। इस अवसर पर लाखों लोगों के मतदान से वंचित रह जाने की असाधरण घटना पर कहीं से भी कोई आवाज नहीं उठ रही है।
भ्रष्टाचार के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री आराम से अपनी सरकार को निर्दश जारी कर रहे हैं। लेकिन जेल की परंपरागत व्यवस्था जारी रही तो वे मतदान से वंचित रह जाएंगे। संविधान की दुहाई देने वाले बहुत से ऐसे लोग है जो सीएम अरविंद केजरीवाल के इस कृत्य पर या तो मौन हैं या उनका समर्थन कर रहे हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने लोकतांत्रिक परम्परा का सम्मान करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और अपने स्ािान पर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया था। लेकिन लालू यादव ने जेल से रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाने की एक नई परंपरा शुरू की थी। वह परंपरा आज आगे बढ़ते हुए जेल से ही शासन करने तक पहुंच गयी है।
लोकतंत्र के इस महापर्व के अवसर पर हम बात करते हैं बिहार की। ताजा आंकड़ों के अनुसार बिहार की जेलों में क्षमता से छह गुणा अधिक कैदी बंद हैं। फिलहाल बिहार के जेलों में बंद कैदियों की संख्या करीब एक लाख है।
एक अनुमान के अनुसार 30 हजार से अधिक लोग छोटे-छोटे आरोपों में जेल में बंद है। ऐसे लोगों को मतदान से वंचित कर देना स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा की दृष्टि से उचित नहीं हैं। वहीं जेल में बंद दबंग लोग चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करते रहे हैं। आज भी ऐसे लोग चुनाव लड़ने के लिए अपना नामांकन कर सकते हैं।
भारत के लोकतंत्र में एक और परंपरा बन रही है वह यह कि जेल जाने के बाद भी कोई व्यक्ति मंत्री पद पर बना रह सकता है। ताजा उदाहरण दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल का है। संविधान व लोकतंत्र पर खतरा का बयान जारी करने वाले लोग शायद यह बताना चाहते हैं कि संविधान व भारत के कानून में इस बारे में कोई स्पष्ट निर्देष नहीं दिया गया है। अतः न्यायालय भी उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने का आदेश नहीं देकता। हमारे भारत के संविधान निर्माता यह नहीं सोच सके होंगे कि हमारी आने वाली पीढ़ी का नैतिक पतन इस स्तर तक पहुंच जाएगा।
भारत में लोकतंत्र की विडंबना यह है कि भ्रष्टाचार जैसे आरोप में जेल जाने के बाद भी कोई मंत्री या मुख्यमंत्री अपने पद पर बना रह सकता है।
वहीं यदि कोई सरकारी सेवक 48 घंटे से अधिक जेल में रह जाए तो उसे निलंबित होना पड़ेगा।
संविधान निर्माताओं ने इस बात की कल्पना ही नहीं की थी कि एक दिन हमारे देश में जन प्रतिनिधि या मंत्री या मुख्य मंत्री इतने बेशर्म हो जाएंगे। इसीलिए इस संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया।
यह भारत के लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि यहां आदतन अपराधी की श्रेणी में आने वाला व्यक्ति भी संसद या विधायिका बन सकता है। इस लोकसभा चुनाव में भी ऐसे लोगों की भूमिका दिख रही है। कम से कम सात लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में इस श्रेणी के लोग चुनावी मैदान में हैं। यहां मनमोहन सरकार द्वारा वर्ष 2013 में लाए गए एक अध्यादेश की चर्चा भी जरूरी है। उस अध्यादेश के लागू हो जाने के बाद वैसे जन प्रतिनिधियों की सदस्यता भी नहीं जाती जिन्हें दो साल या उससे अधिक की सजा हुई हो। तैयार अध्यादेश राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास भेज दिया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उस अध्यादेश की प्रति को सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया था। लेकिन, इस चुनाव में राहुल गांधी के स्वर भी बदले हुए हैं।