प्रशांत रंजन
21वीं सदी में जब इंटरनेट आधारित माध्यमों की सघनता बढ़ने लगी और मनोरंजन के नए-नए आयाम विकसित होने लगे, तो पिछली सदी के विगत कई दशकों से लोगों के लिए सूचना और मनोरंजन का प्रमुख साधन रहे आकाशवाणी पीछे छूटने लगा था और संभवत: लगने लगा था कि आने वाले कुछ वर्षों में आकाशवाणी की प्रासंगिकता और भी संकीर्ण हो जाएगी। लेकिन, तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम से आकाशवाणी को एक प्रकार से नई संजीवनी प्रदान कर दिया। प्रधानमंत्री की इस पहल से पता चलता है कि संस्थाओं की प्रासंगिकता बनाए रखना और जनकल्याण के लिए उनको सही दिशा की ओर निरंतर प्रगतिशील रखना, एक द्रष्टा ही कर सकता है।
नरेंद्र मोदी से पहले देश के प्रधानमंत्री भारत से बाहर जाते थे तो निजी चैनलों का एक पूरा काफिला सरकारी खर्चे पर प्रधानमंत्री के साथ जाता था। मोदी ने अनावश्यक भीड़ बढ़ाने के स्थान पर दूरदर्शन को अपनी बात प्रसारित करने का माध्यम चुना। अब हम पाते हैं कि प्रधानमंत्री के किसी कार्यक्रम का निजी चैनलों द्वारा ‘दूरदर्शन के सौजन्य से’ प्रसारण किया जाता है। यह आकाशवाणी के बाद दूरदर्शन की प्रासंगिकता बनाए रखने का दूसरा उदाहरण मोदी ने प्रस्तुत किया।
आॅनलाइन डिग्री पाठ्यक्रम और स्वयं पोर्टल से छोटे—छोटे कोर्स घर बैठे पूरा करने की सुविधा भी मोदी सरकार की उपलब्धियों में से है। सरकारी व्यवस्था में बहुत से कार्य अनवरत आगे बढ़ते रहते हैं। लेकिन, उन कार्यों में प्रधानमंत्री मोदी की स्वयं सक्रिय सहभागिता एक उम्मीद व विश्वास उत्पन्न करती है। डेढ़ अरब की आबादी वाले देश में इंटरनेट आधारित शिक्षा व्यवस्था को सुदूर गांवों तक सुलभ बना देना, यह साधारण बात नहीं है। शिक्षा के अतिरिक्त स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी प्रधानमंत्री ने तकनीक के महत्व को न केवल समझा है, बल्कि यह सुनिश्चित किया है कि इसका लाभ आम नागरिक को मिले। भारत के 244 से अधिक कैंसर अस्पतालों को नेशनल कैंसर ग्रिड (NCG) के पोर्टल से जोड़ा गया है। इसकी स्थापना 2012 में हुई थी, तथापि इसके काम में तेजी मोदी कार्यकाल के दौरान ही आई, आंकड़े साक्षी हैं। इसमें कोई भी कैंसर रोगी घर बैठे अपने रिपोर्ट अपलोड कर देश के नामी कैंसर विशेषज्ञ से उपचार संबंधी परामर्श ले सकता है। स्पष्ट है कि नेशनल कैंसर ग्रिड की सुविधा मिलने से कैंसर रोगियों को छोटी—मोटी बात के लिए अस्पतालों के चक्कर काटने से राहत मिली है।
याद होगा देश के पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने इंटरनेट आधारित भुगतान व्यवस्था की जटिलता बताते हुए तंज कसा था कि सब्जी बेचने वाले अथवा रेहड़ी—खोंमचा लगाने वाले ऑनलाइन पेमेंट कैसे लेंगे? क्या सरकार सब्जी मंडी में वाईफाई लगवाएगी? लेकिन, 2016 मोदी जी के संकल्प के साथ शुरू हुआ डिजिटल इंडियाअभियान का परिणाम है कि आज ₹1 की भी खरीदारी अगर कोई फुटपाथ पर खोमचे वाले से करता है, तो उसका भी भुगतान लेने के लिए वह गर्व के साथ अपना क्यूआर कोड ग्राहक के समक्ष रख देता है।
नरेंद्र मोदी एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं और जगजाहिर है कि उनके साथ फोटो खींचने और सेल्फी लेने की होड़ मची रहती है। मोदी जी भी इस बात को समझते हैं। कई बार होता है कि किसी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के साथ किसी का फोटो आ तो गया लेकिन उसे मिल नहीं पाता है। इतनी मामूली सी लगने वाली बात को भी प्रधानमंत्री ने समझा और नमो ऐप में ऐसी व्यवस्था बनवा दी कि अगर भारत के किसी भी व्यक्ति का फोटो मोदी जी के साथ है, तो उस ऐप पर अपना कोई भी फोटो जैसे ही अपलोड करेगा, तो वे सारे फोटो उसे एक साथ उपलब्ध हो जाएंगे जिसमें वह और प्रधानमंत्री किसी एक फ्रेम में हों।
एक ट्वीट कर देने से चलती ट्रेन में आपके बर्थ पर किसी भी समस्या को सुलझाने के लिए टीटीई से लेकर रेलवे के अधिकारी तक आ जाते हैं। यहां तक कि मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में विशेषज्ञ डॉक्टर आपके बर्थ पर पहुंच जाते हैं। एक ट्वीट पर विदेश मंत्रालय सक्रिय होता है और आपका पासपोर्ट से संबंधित समस्या हो अथवा भारत के बाहर आप कहीं फंसे हों, उस पर तुरंत करवाई होती है। जनसमस्याओं को सुलझाने के लिए तकनीक का क्या सदुपयोग हो सकता है, यह मोदी जी के कार्यकाल में हमलोग महसूस कर रहे हैं।
कुछ साल पहले तक भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली एनएफडीसी मृतप्राय हो गई थी। लेकिन, जिस प्रकार से भारत में होने वाली सिनेमा गतिविधियों के लिए एनएफएआई, सीएफएसआई, एफडी आदि अन्य संस्थाओं को मर्ज कर एनएफडीसी को सशक्त किया गया और आज दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी सिनेमाई एजेंसी के रूप में एनएफडीसी कार्य कर रही है, तो इसके पीछे भी प्रधानमंत्री का वह विजन कम कर रहा है। इसी वर्ष 1 में से लेकर 4 में तक मुंबई के जिओ सेंटर में प्रथम वेब सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने किया था। विश्व भर के 90 देशों से एक लाख से अधिक आमंत्रित अतिथि आए थे। प्रसिद्ध अभिनेता शाहरुख खान को मंच से कहना पड़ा इतने सालों के करियर में सरकार द्वारा प्रायोजित सिनेमा और मनोरंजन का इतना व्यापक कोई कार्यक्रम उन्होंने नहीं देखा था।
यह सत्य है कि हर प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान कोई न कोई तकनीकी परिवर्तन हुआ। लेकिन, प्रद्यौगिकी व इंटरनेट को लेकर ऐसा आग्रही प्रधानमंत्री शायद ही भारत के देखा हो। यह कहना कभी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले किसी भी नई तकनीक के आने पर वह देश के मुट्ठीभर कुलीन जनों के लिए आरक्षित रहती थी। याद कीजिए, इसी देश में टेलीफोन रखाना लग्जरी होता था। लेकिन, आज जो 5जी सर्विस किसी अरबपति के पास है, वही 5जी सर्विस एक रेहड़ी वाले के पास है। इसीलिए आलेख के शुरू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को द्रष्टा की संज्ञा दी गई है। यह अकारण नहीं है।