कांग्रेस नेता व सुप्रिम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा था कि अंग्रेजों के दिए न्याय व्यवस्था पर ही हमारे कोर्ट काम कर रहे हैं। इसके लिए हमें उन्हें धन्यवाद देना चाहिए। एक जुलाई 2024 के बाद से आजाद भारत में ऐसे विचार रखने वाले लोग व्यथित है। वर्तमान सरकार ने 164 वर्ष पुराने औपनिवेशिक कानूनों का अंत कर दिया है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने भारत के संसाधनों पर कब्जा करने एवं भारतीयों को गुलाम बनाए रखने के लिए जो कानून बनाए थे, वे आजादी के बाद छोटे-मोटे परिवर्तनों के साथ आज तक चल रहे थे। तंत्र में बैठे काले अंग्रेजों ने इस नए काननू के रास्ते में अडंगा लगाना शुरू कर दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय 150 साल का न्यायशास्त्र
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने नए आपराधिक कानूनों पर तीखी प्रतिक्रिया देते कहा है कि इसके परिणामस्वरूप 150 साल का न्यायशास्त्र खिड़की से बाहर फेंक दिया जाएगा। इसी प्रकार कपिल सिब्बल ने कहा कि यह काननू अंग्रेजों के बनाए कानून से खराब हैं। कैसे और क्यों? ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने के बदले वे इधर-उधर की बातें करने लगते हैं। वही bar council of india ने इस कानून को भारत की न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाने वाला बताया है. यह कानून भारत की प्रकृति और संस्कृति के अनुकूल है.
कोर्ट को कोठा बनाने वाले
ऐसे अधिवक्ताओं की लंबी सूची है जो भारत की न्याय प्रणाली को अपने जेब की सम्पति मान बैठे हैं। ऐसे ही अधिवक्ता आजाद भारत के सिस्टम में औपनिवेशिक मानसिकता को मजबूत देखना चाहते हैं। जैसे भारत के लोगों को अपने संविधान के बारे में नहीं बताया गया ताकि संविधान के नाम पर भारत की आत्मा को लहुलूहान किया जाता रहे। उसी प्रकार औपनिवेशिक हित साधना के लिए बनाए गए इन तीन नए आपराधिक कानूनों को अनुपयोगी और तर्कहीन साबित करने में कोर्ट को कोठा बनाने वाले गिरोह ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है।
बदल गयी पुरानी अवधारण
1 जुलाई 2024 से लागू हुए तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम हैं। इन कानूनों ने 1860 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए भारतीय दंड संहिता आईपीसी , 1868 में बनाए गए आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी और 1898 में बनाए गए भारतीय साक्ष्य अधिनयम को विस्थापित किया है।
इन कानूनों को लेकर एक अवधारणा बनायी गयी थी कि भारत के पास अपना कानून भी नहीं है। भारत अंग्रेजों के बनाए कानून पर ही अपनी न्याय व्यवस्था को चला रहा है।
युगानुकुल कानून
भारत ने जब अपना कानून लागू किया तब कपिल सिब्बल जैसे अधिवक्ताओं के दर्द छलक उठे। जबकि पुराने औपनिवेशिक कानून की कमजोरियां, कमियां और समस्याएं कई बार स्पष्ट हो चुकी हैं।
1 जुलाई से प्रभाव में लाए गए भारतीय न्याय संहिता में कुल 358 धाराएं हैं। इसमें 20 नए अपराधों को परिभाषित किया गया है। 33 अपराधों में सजा बढ़ाई गई है। 83 ऐसे अपराध हैं, जिनमें र्जुमाने की राशि बढ़ायी गयी है। तकनीकी खोज व सामाजिक-प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण मानव जीवन में नयी जटिलताएं व समस्याएं पैदा होती रही हैं। जिनके समाधान के लिए पुराने कानूनों में बदलाव या पुनर्परीक्षण की आवश्यकता कई दशकों से महसूस की जा रही थी।
अतिआवश्यक
सबसे बड़ी बात यह है कि नये कानून में आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। इस बदलाव में आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य संहिता होगा। औपनिवेशिक कानून की कमियों को अपना हथियार बनाकर राजनीतिक लक्ष्य व अकूत पैसा कमाने वालों की बेचैनी को दरकिनार करते हुए इस कानून को लागू किया जाना आवश्यक है।