परिवारवादी नीति से भारत विपक्ष विहिन
इंडी गठबंधन में शामिल दल एवं उनके नेताओं की नीति व रीति 2024 के चुनाव में बदली नहीं है। आजादी के बाद से कई दशकों तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी मंे किसी नेता के पुत्र व पुत्री के लिए पार्टी की टिकट पाना आसान रहा है। पीएम मोदी भ्रष्टाचार एवं परिवारवाद के मुद्दे पर आक्रामक है। उनके इस राजनीतिक रणनीति से बेपरवाह इंडी गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं ने अपने बेटे-बेटियों को पार्टी की टिकट से नवाजा है। बिहार में भी यह परम्परा बदस्तुर जारी रही। बार-बार हारने वाले अपने बेटे-बेटियों व परिजनों को पार्टी की टिकट दिलाने में वे नहीं चुके। विपक्षी दल अपने इस नीति में बदलाव नहीं लाते तो भारत का लोकतंत्र सशक्त व रचनात्मक विपक्ष के न होने की पीड़ा क्षेलता रहेगा।
बिहार में इंडी गठबंधन की सबसे मजबूत सहयोगी राजद सुप्रिमो लालू यादव की एक नहीं बल्कि दो बेटियां चुनावी मैदान में उतार दी गयी हैं। लालू यादव के लिए कीडनी दान करने वाली उनकी बेटी रोहिणी को सारण लोकसभा क्षेत्र से राजद ने चुनावी मैदान में उतारा है। वह राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं हैं। वह हाल तक विदेश में रहती थीं। पिता के सहारे वह राजनीति में आ गयीं और लोकसभा चुनाव की उम्मीदवार बन गयीं। उनकी बड़ी बहन मीसा भारती ने चिकित्सा की पढ़ाई की है। वह भी अपने पिता के प्रभाव के कारण पाटलिपुत्र लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी की उम्मीदवार बनी थी। परिवारवाद के शिकार उस समय राजद के समर्पित नेता रामकृपाल यादव ने पार्टी छोड़ दी थी। वर्तमान में वे भाजपा के सांसद है। मीसा यादव को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद पिता लालू यादव ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया। लालू यादव के दोनों बेटे मंत्री और विधायक हैं।
इंडी गठबंधन की मुख्य पार्टी कांग्रेस भी बिहार में बेटे-बेटियों को टिकट देने के मामले में पीछे नहीं है। कांग्रस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह वर्ष 2004 के बाद खुद कोई आमचुनाव नहीं जीत सके हैं। उनके परिजन छह चुनाव हार चुके हैं। राजद में रहते हुए हार के बाद 2005 में पत्नी को अरवल विधानसभा क्षेत्र से राजद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ाया, उनकी हार हो गयी थी। वर्ष 2009 में केंद्रीय राज्यमंत्री रहते पूर्वी चम्पारण लोकसभा सीट से चुाव लड़े और तरह हार गये। फिर 2010 में कांग्रेस में आ गये, अपने गृह विधानसभा क्षेत्र अरवल से अपने भतीजे धनंजय शर्मा को चुनाव लड़ाया। वह भी हार गए। फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में बतौर कांग्रेस प्रत्याशी मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े। पराजय हुई। फिर 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में तरारी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस जदयू आरजेडी महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े। उस चुनाव में डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह तीसरे स्थान पर रहे।
कांग्रेस पार्टी ने उसके बाद दो बार इन्हें राज्यसभा भेजा। वर्तमान में ये कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्वी चम्पारण लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट दिलाने में वे सफल रहे। टिकट तो मिल गया लेकिन उनका बेटे चुनाव हार गए। इस बार यानी 2024 के लोकसभा चुनाव में भी उनके पुत्र आकाष प्रसाद सिंह को महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस का प्रत्याशी बना दिया गया है।