आज 5 सितंबर को पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन इस खास मौके पर बिहार के कटिहार से एक अनोखी कहानी सामने सामने आई है। ये कहानी है शिक्षकों के उस सोच की, जिसने ना सिर्फ बच्चों का ध्यान पढ़ाई की तरफ आकर्षित किया, बल्कि पूरे स्कूल को ही एक ऐसा स्वरूप दे दिया जहां बच्चे अब बोर नहीं होते। यही कारण है कि कटिहार के सुधानी मध्य विद्यालय की चर्चा अब पूरे बिहार में ही नहीं, बल्कि समूचे भारतवर्ष में हो रही है। सोशल मीडिया पर भी इस स्कूल के गेटअप—सेटअप की खासी चर्चा है। इलाके के दूसरे स्कूल भी अब इस तरीके को आजमाने की कोशिशों में जुट गए हैं। इस स्कूल के शिक्षकों की ऐसी अनोखी सोच ने स्कूल के प्रति छात्रों के नजरिए को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है।
इस नई पहल का असर भी बहुत खास हुआ। कुछ समय पहले तक सुधानी मिडिल स्कूल में पढ़ने आने वाले छात्रों की संख्या काफी कम थी। तमाम कोशिशों के बाद भी यहां एडमिशन लेने में छात्र और अभिभावक उपेक्षा दिखाते। तब इस स्कूल के शिक्षकों ने इसकी वजह जानने की कोशिश की। पता चला कि छात्र इस मिडिल स्कूल को एक बोरिंग जगह समझने लगे हैं जहां आकर उनका पढ़ने का मन ही नहीं करता। शिक्षकों को जैसे ही इस बात का पता लगा तो उन्होंने ऐसा कुछ करने की कोशिश की जिससे छात्रों को स्कूल तक लाया जा सके और इसमें काम आई स्कूल को ट्रेन का डिब्बे के रंग में रंगने की तरकीब। इसके बाद ही स्कूल को रेल के डिब्बे का स्वरूप दिया गया। जैसे ही यह किया गया, आसपास के गांवों में इसकी चर्चा होने लगी। अभिभावकों और छात्रों की जिज्ञासा और आकर्षण इस स्कूल की तरफ बढ़ा जिससे यहां एडमिशन लेने वाले छात्रों की संख्या में भारी इजाफा हुआ। शिक्षकों ने स्कूल को यह स्वरूप बस यूं ही एक ट्रायल के तौर पर दिलवाया था। लेकिन छात्रों की संख्या बढ़ी तो, अब इस पहल को एक मॉडल की तरह पहचान मिल गई।
स्कूल के शिक्षकों ने बताया कि कुछ समय पहले तक इस स्कूल में ज्यादातर कक्षाएं खाली ही रहती थी। ऐसे में बच्चों को स्कूल तक लाना एक बड़ी चुनौती की तरह था। फिर स्कूल मैनेजमेंट ने तय किया कि स्कूल में बने क्लास को ट्रेन के डिब्बों की तरह रंग दिया जाए ताकि बच्चों को लगे कि वो स्कूल में नहीं, किसी ट्रेन के डिब्बे में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। शिक्षकों की ये तरकीब काम आई और एकाएक बच्चों में स्कूल आने की रुचि बढ़ने लगी। अब आलम कुछ यूं है कि स्कूल में सभी बच्चे समय पर आते हैं। हर दिन उत्साह में पढ़ाई करते हैं और छुट्टी कोई नहीं करता। शिक्षकों ने बताया कि जब तक स्कूल में बने क्लासरूम को ट्रेन के डिब्बे के रूप में पेंट नहीं किया गया था, उस वक्त यहां पढ़ने वाले बच्चे अपने अभिभावक से साथ या तो खेत में काम करने चले जाते थे या वो घरेलू कामों में लगे रहते थे। कोई भी स्कूल आने को तैयार नहीं होता था। बच्चे खुद कहते हैं कि अब वे किताबों के बीच नहीं, बल्कि ट्रेन की बोगी में बैठकर पढ़ते हैं। यही वजह है कि छुट्टी के दिन भी उन्हें स्कूल की कमी खलती है।