विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार में दलित वोटों के लिए जंग छिड़ गई है। चिराग पासवा, जीतन मांझी और मायावती की बसपा केे बाद अब नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी ने भी दलित वोटों पर दावा ठोंक दिया है। चंद्रशेखर की पाटी ने इन सभी पार्टियों से आगे निकलते हुए बिहार चुनाव के लिए अपनी पार्टी के 40 उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी कर दी है। नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने इस लिस्ट को बजाप्ता सोशल मीडिया पर साझा किया है। बिहार में सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होना है और अब यह साफ हो गया है कि चंद्रशेखर आजाद की पार्टी भी बिहार चुनाव में उतरने जा रही है।
चंद्रशेखर की पार्टी ने 40 विधानसभा सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है, जिसे आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर देखा जा सकता है। बिहार में दलित वोटों की संख्या 20 फीसदी के आसपास है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा रविदास और पासवान समाज का है। कुल दलित वोट में 31 फीसदी रविदास हैं तो 30 फीसदी पासवान या दुसाध हैं, जबकि मुसहर या मांझी करीब 14 फीसदी हैं। बिहार में अनुसूचित जाति के लिए 38 सीट आरक्षित है, जिसमें एनडीए के पास अभी 21 और महागठबंधन के पास 17 सीटें हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि चंद्रशेखर की एंट्री से दलित वोटों के समीकरण में कैसे बदलाव आते हैं।
एनडीए और महागठबंधन की लड़ाई के बीच अब चंद्रशेखर के कूदने से मुकाबला भी दिलचस्प होता दिख रहा है। हालांकि एनडीए में ‘हम’ वाले जीतन राम मांझी की पार्टी और लोजपा (रामविलास) वाले चिराग पासवान के होने से दलित वोटों को लेकर कुछ निश्चिंतता है। लेकिन मायावती की बसपा जैसी पार्टियां भी मैदान में हैं, जो दलितों के हितैषी होने का दावा करती है। इस सबके बीच बिहार की राजनीति में भीम आर्मी प्रमुख और आजाद समाज पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के बिहार विधानसभा चुनावों में एंट्री से दलित वोटों में सियासी तड़के वाली बात भी कही जाने लगी है। पिछले कुछ वर्षों में चंद्रशेखर एक प्रभावशाली दलित नेता के रूप में उभरे हैं, जिनकी छवि एक आक्रामक, मुखर और संघर्षशील युवा नेता की है। ऐसे में कहा जा रहा है कि उनका ये फैसला बिहार में दलित राजनीति के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।