नवादा : जिले के पकरीबरावां बाजार में संचालित निजी नर्सिंग होम पटना क्लीनिक में 2 अक्टूबर की शाम महादलित समाज से आने वाली प्रसव पीड़िता और उसके नवजात की मौत के बाद पुलिसिया कार्रवाई शक के घेरे में है। पुलिसिंग सिस्टम पर सवाल खड़ा होना शुरू हो गया है…, क्या मामले की लीपापोती का प्रयास तो है? ऐसे में अम्बरीष की तरह धीमान की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाना शुरू हो गया है। घटना के बाद जो दो अलग-अलग प्राथमिकी सामने आया है उससे तो ऐसा ही लग रहा है।
क्या है घटना:-
पीड़ित परिवार के साथ किस प्रकार की नाइंसाफी होती दिख रही है यह जानने से पहले घटना को समझना आवश्यक है…, पकरीबरावां में संचालित निजी नर्सिंग होम “पटना क्लीनिक” में बुधवार को प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत हो गई। मृतका 26 वर्षीया शोभा देवी पकरीबरावां थाना क्षेत्र के एरुरी गांव मनीष कुमार मांझी की पत्नी थी। घटना के बाद भड़के लोगों ने उक्त क्लीनिक में तोड़फोड़ किया था। प्रसव पीड़िता को बुधवार को करीब 11 बजे परिजन लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पकरीबरावां पहुंचे थे। वहां से उसे सदर अस्पताल रेफर कर दिया गया था। बाद में दलालों ने पटना क्लीनिक पहुंचा दिया था जहां कथित झोला छाप चिकित्सक के ऑपरेशन से जच्चा-बच्चा की मौत हो गई थी। जिसके बाद अस्पताल में तोड़फोड़ किया गया था।सदर एसडीओ- पकरीबरांवा डीएसपी सहित स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे थे।
घटना की दो प्राथमिकी हुई है दर्ज:-
घटना की दो प्राथमिकी पकरीबरावां थाना में दर्ज की गई है। एक है कांड सं. 445/24 और दूसरा कांड संख्या 447/24 । दोनों एफआईआर भारतीय न्याय संहिता और इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट की विभिन्न धाराओं में दर्ज हुआ है। दिलचस्प यह कि दोनों एफआईआर में सूचक पीड़ित पक्ष नहीं है। मृतक के परिवार और क्लीनिक संचालक को कांड का सूचक नहीं बनाया गया। वजह…!
पहली प्राथमिकी 445/24 सीएचसी पकरीबरावां के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. राम कुमार के आवेदन पर दर्ज की गई है जिसमें मुख्य आरोपित आशा कार्यकर्ता पुष्पा रानी, जसीम आलम, डॉ. संतोष कुमार और एम्बुलेंस चालक अभय कुमार को नामजद किया गया है। इसके अलावा अभियुक्तों के कॉलम में नर्सिंग होम के संचालक, पटना क्लीनिक में कार्यरत आशा, नर्स, डॉक्टर, कंपाउंडर, पारस अल्ट्रा साउंड के संचालक व डॉक्टर, पटना नर्सिंग होम में संचालित दवा विक्रेता, नर्सिंग होम के सभी कंपाउंडर शामिल हैं। अभियुक्तों के कॉलम में कुल 10 क्रमांक भरे गए हैं। जिसमें एक अज्ञात और नामजद सिर्फ 3 हैं शेष 6…!
दूसरी प्राथमिकी चौकीदार भोली पासवान की बयान पर 447/24 दर्ज हुआ है। यह जच्चा-बच्चा की मौत के बाद क्लीनिक में तोड़फोड़ से जुड़ा है। इसमें 5 नामजद और 20-30 अज्ञात को आरोपित किया गया है।
एफआइआर में कहां है झोल…
1.पहला तो ये कि मृतका के पति या परिवार के किसी सदस्य के फर्द बयान पर एफआइआर दर्ज क्यों नहीं हुआ? जबकि एफआईआर के वक्त पति पुलिस के साथ था। पति का फर्दबायन लेकर एफआईआर क्यों नहीं लिया गया।
2-प्रभारी चिकित्सक डॉ. राम कुमार के लिखित प्रतिवेदन पर एफआइआर हुआ। 9 बजे की घटना का एफआइआर उसी रात 12.15 बजे दर्ज हुआ। क्या 3 घंटे में ही नवादा से टीम पकरीबरावां पहुंच गई और जांच रिपोर्ट भी सौंप दी और फिर सीएचसी प्रभारी ने थाने को शिकायत भी दे दी। यह संभव है क्या?
3.चौकीदार के बयान पर क्लीनिक में तोड़फोड़ की प्राथमिकी रात को 12.50 बजे दर्ज की गई। एफआइआर में इसका जिक्र है कि थाने को सूचना 12.50 बजे मिली। लेकिन, चौकीदार का बयान कहता है कि 9.10 बजे उसने थानाध्यक्ष को सूचना दी और वे घटनास्थल पर पहुंच भी गए। विलंब से सूचना और थानाध्यक्ष का पहले घटनास्थल पर पहुंचना दोनों संभव नहीं हो सकता है।
4-एफआइआर के अनुसार पटना क्लीनिक में हुई घटना की सूचना थाने को सबसे पहले चौकीदार से ही मिली तो एफआइआर का नंबर और थाने में सनहा इंट्री प्रभारी चिकित्सक के एफआइआर के बाद में क्यों दिखाई गई और एफआइआर भी बाद में क्यों दर्ज किया गया।
5- प्रभारी चिकित्सक पकरीबरावां के एफआइआर में कहीं भी डॉ. संतोष कुमार की चर्चा तक नहीं है, फिर अभियुक्तों के कॉलम में उनका नाम 4 थे नंबर पर कैसे अंकित हो गया।
6- एफआइआर में इस बात की चर्चा है कि पीड़ित परिवार के साथ सुरेंद्र कुमार यादव, जसीम आलम और क्लीनिक के अन्य स्टॉफ ने मारपीट किया। एफआइआर में जसीम का नाम अभियुक्तों के कॉलम में 6 वें नंबर पर अंकित है, लेकिन सुरेंद्र यादव का नाम कहीं नहीं है। ऐसा क्यों?
7.- प्रभारी चिकित्सक के प्रतिवेदन में आशा और एम्बुलेंस चालक पर किसी प्रकार का आरोप नहीं है। सिर्फ यही कहा गया है कि आशा की सूचना पर एंबुलेस चालक ने एरुरी गांव से सीएचसी लाया। लेकिन एफआइआर में आशा कार्यकर्ता पुष्पा रानी पहले नंबर और एंबुलेंस चालक अभय कुमार सबसे अंतिम यानि 10वें नंबर पर अभियुक्तों के कॉलम में शामिल किए गए हैं।
8- एफआईआर 3 अक्टूबर की रात 0.15 बजे दर्ज की गई है, लेकिन 4 अक्तूबर की शाम यानी 42 घंटे बाद तक एससीआरबी पर अपलोड क्यों नहीं हुआ?
9.- एफआईआर संख्या 445 और 447 के बीच कांड 446 क्या है। एसपी- डीएसपी 2 एफआईआर की बात ही कह रहे जो नवादा पुलिस के x पोस्ट पर दर्ज है ।
10- मृतक जच्चा- बच्चा अनुसूचित जाति के हैं, एफआईआर में एससी- एसटी एक्ट की धाराओं का उपयोग क्यों नहीं हुआ? 11- प्रभारी चिकित्सक के बयान पर दर्ज प्राथमिकी में डॉ. रामकुमार का वर्तमान और स्थाई एड्रेस एक क्यों है ?
समझिए क्या है खेल
दोनों एफआइआर के अनुसंधानकर्ता खुद थानाध्यक्ष अजय कुमार बने हैं। घटनास्थल पर पहुंचने वाले वे पहले अफसर थे। जाहिए सी बात है कि पूरा घटनाक्रम को उनसे ज्यादा जानने वाला दूसरा कोई पुलिस अफसर नहीं हाेगा। कांड के अनुसंधान का जिम्मा भी उन्हें लेना ही चाहिए था। लेकिन, सवाल उठ रहा है कि एफआइआर में इतना झोल कैसे रहा? मानवीय भूल है, या जानबूझकर किया गया। किसी को बचाने, फंसाने या फिर कुछ और सोच तो नहीं रही? वैसे इनकी फितरत से हर जिलावासी वाकिफ हैं, ज्यादा कहने-लिखने की जरूरत नहीं है।
एसडीपीओ का जवाब गोलमोल, एसपी तक पहुंची बात
एफआइआर में झोल के सवाल पर जब एसडीपीओ पकरीबरावां महेश चौधरी से बात की गई तो उनका जवाब गोलमोल रहा। उनसे संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर बात एसपी अभिनव धीमान तक पहुंचा दी गई है। अब उनके स्तर से इस मामले में क्या कुछ होता है? जिलावासियों को इंतजार है…!
अबतक की कार्रवाई:-
उक्त मामले में पुलिस ने एक डॉक्टर पंकज कुमार सहित दोनों पक्षों के करीब 10-11 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजी है। डॉक्टर पंकज कौआकोल पीएचसी के प्रभारी बताए जाते हैं। सबसे दिलचस्प यह कि महिला की मौत के मामले में गिरफ्तार कोई भी व्यक्ति कांड के नामजद आरोपित नहीं है।
भईया जी की रिपोर्ट