राहुल गांधी इस समय अमेरिकी दौरे पर हैं। वहां नेता प्रतिपक्ष भारत की राजनीतिक दशा और दिशा तय करने के नए नैरेटिव गढ़ने की मुहिम में व्यस्त हैं। 140 करोड़ भारतीयों द्वारा बार—बार नकारे जाने के बाद भी उन्हें उम्मीद है कि विदेशी धरती पर वे कुछ ऐसा कर गुजरेंगे जिससे भारत में सत्ता शीर्ष उनके हाथ आ जाए। लेकिन उनसे कुछ ऐसा हो गया कि आरक्षण, सिख, POK, चीन आदि सभी मुद्दों पर उलझ गए। आरक्षण पर राहुल ने कहा कि कांग्रेस इसे खत्म करने के बारे में सोच सकती है। लेकिन यह तब होगा जब देश में आरक्षण के लिहाज से निष्पक्षता होगी। इसी बयान के बाद राहुल चौतरफा घिर गए और सफाई देने लगे। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आजादी के बाद से 60 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस का आरक्षण वाला सच क्या है?
राहुल करना कुछ चाह रहे, लेकिन हो कुछ और जा रहा
दरअसल, हाल के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने 52 सीटों से 99 सीटों की छलांग लगाई तो इसका श्रेय राहुल गांधी के सामाजिक न्याय वाले फलसफे को दिया गया। ये माना गया कि राहुल गांधी के संविधान और आरक्षण बचाओ के नारे ने कांग्रेस को जीवनदान दे दिया। लेकिन अमेरिका में आरक्षण पर राहुल गांधी के ताजा बयान ने एक बार फिर उन्हें उसी—’करना कुछ चाह रहे, हो कुछ और जा रहा’ वाले भंवर में डाल दिया। भाजपा के अलावा बसपा आदि कह रहे हैं कि राहुल आरक्षण विरोधी हैं। यहां तक कि सपा और राजद जैसी सहयोगी पार्टियां भी असहज हो गईं। डैमेज कंट्रोल के लिए अब राहुल सफाई दे रहे हैं कि वो तो पहले जैसे ही स्टैंड पर हैं। उनके बयान को गलत पेश किया गया।
आरक्षण को लेकर कांग्रेस का क्या रहा है रुख?
दरअसल आरक्षण पर रिव्यू के लिए 1953 में कांग्रेस के सर्वेसर्वा और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पिछड़े वर्गों के लिए काका कालेलकर आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। लेकिन तब की नेहरू वाली कांग्रेस सरकार ने काका कालेलकर कमेटी की रिपोर्ट को लागू नहीं किया। आरक्षण का दायरा बढ़ाने वाली इस रिपोर्ट को सरकार दबाए रही।
कालेलकर और मंडल आयोग की रिपोर्ट दबाना
आरक्षण पर कालेलकर आयोग का मामला ठंडे बस्ते में जाने के बाद 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने मंडल आयोग का गठन किया था। मंडल आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। उस समय केंद्र में इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार शासन में थी। लेकिन पहले इंदिरा और फिर उनके बाद सत्ता में आए उनके पुत्र राजीव गांधी ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को दबाए रखा और उसे लागू नहीं किया। करीब 14 सालों तक इस रिपोर्ट की अनदेखी की गई। इन वर्षों के दौरान देश में कांग्रेस की सरकार रही। बावजूद इसके पार्टी ने कोई फैसला नहीं लिया।
ऐसे कांग्रेस से दूर हुआ ओबीसी वोट बैंक
इतना ही नहीं 1990 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू किया, तो राजीव गांधी ने इसका विरोध किया। देशभर में कांग्रेस पार्टी ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किये। लेकिन जब चुनाव हुए तब कांग्रेस को असल हकीकत पता चल गई। उससे अभी तक उसके साथ रहा एक बड़े वोट बैंक को लालू, मुलायम आदि ने आपस में बांट लिया। अब उसी वोट बैंक को वापस पाने के लिए राहुल गांधी सफाई दे रहे हैं कि आरक्षण पर उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया।
मायावती ने खोली राहुल और कांग्रेस की पोल
राहुल की इस सफाई पर बीएसपी सुप्रीमों मायावती ने पलटवार करते हुए कांग्रेस की आरक्षण पर अब तक की नीतियों को लेकर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अब यह सफाई कि वे आरक्षण के विरुद्ध नहीं हैं, स्पष्टतः गुमराह करने वाली गलतबयानी। केन्द्र में बीजेपी से पहले इनकी 10 साल रही सरकार में उनकी सक्रियता में इन्होंने सपा के साथ मिलकर SC/ST का पदोन्नति में आरक्षण बिल पास नहीं होने दिया। यह आरक्षण पर कांग्रेस की मानसिकता का प्रमाण है। इनके द्वारा देश में आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाने की बात भी छलावा। क्योंकि इस मामले में अगर इनकी नीयत साफ होती तो कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों में यह कार्य जरूर कर लिया गया होता। कांग्रेस ने कभी भी न तो ओबीसी आरक्षण लागू किया और न ही SC/ST आरक्षण को सही से लागू किया।