नवादा : सूरज की तपीश के साथ ही जिले में जल संकट गहराने लगा है। कहते हैं जल ही जीवन है। इंसान कुछ दिन खाना के बिना रह सकता है, लेकिन पानी के बिना उसका जीवन संभव नहीं है। पानी की कमी अगर रेगिस्तानी क्षेत्र में हो तो यह और भी गंभीर प्रश्न बन जाता है।
जिले के पकरीबरावां प्रखंड के असमा गांव के लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गर्मी के दिनों में लू के गर्म थपेड़ों के साथ-साथ पानी की कमी की दोहरी मार से लोगों को जूझना पड़ रहा है। जिले के पकरीबरवा प्रखंड के असमा गांव वार्ड 1 के यादव टोला में पानी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। यह समस्या केवल इंसानों तक ही सीमित नहीं है बल्कि जानवरों विशेषकर पालतू मवेशियों को भी इस प्रकार की समस्या से गुज़रना पड़ रहा है, जिसकी कमी की वजह से कई बार जानवरों की मौत तक हो जाती है।
स्थानीय लोगों को आज भी इस समस्या के स्थायी समाधान की तलाश है। बताया जाता है कि 500 से अधिक आबादी वाले इस गांव में हर घर नल का जल की सुविधा तो है लेकिन हर घर में लगे नल से जल शोभा की वस्तु बनी हुई है। ग्रामीण गांव से एक किलोमीटर की दूरी पर लगे 2 चापाकल से पानी लाकर अपना और जानवरों का प्यास को बुझा रहे हैं।ग्रामीण विकास कुमार ने बताया कि नल-जल में लगे समरसेवल स्टार्टर स्टेबलाइजर में तकनीकी प्रॉब्लम के वजह से गांव के लोग पिछले 6 माह से पानी के लिए तरस रहे हैं। गांव में लगे दो चापाकाल से गांव के 500 लोग और 200 जानवर अपनी अपनी प्यास को बुझा रहे हैं।
बता दें कि गांव में यह समस्या आज की नहीं है बल्कि पिछले 6 माह से गांव वाले पानी की इस समस्या से जूझ रहे हैं। विकास कहते हैं कि इस समस्या के समाधान के लिए गांव वालों ने स्थानीय जनप्रतिनिधि और पीएचडी विभाग नवादा से शिकायत की लेकिन विभाग इसके समाधान के लिए बहुत अधिक गंभीर प्रयास करते नज़र नहीं आया, जिसकी वजह से गांव वाले पिछले 6 माह से पानी के लिए तरस रहे हैं । गांव की महिलाएं गांव में लगे 2 चापाकलों से पानी भरते हैं और अपने घर की आवश्यकता को पूरा करते हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि पानी की इस समस्या पर कई बार गांव के लोगों ने स्थानीय जनप्रतिनिधि और पीएचडी विभाग से शिकायत की लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं निकला। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या असमा गांव के लोगों को इसी प्रकार पानी की समस्या से जूझते रहना पड़ेगा? आखिर कौन है जो इसके लिए ज़िम्मेदार है? क्या स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का यह फ़र्ज़ नहीं बनता है कि वह इस समस्या को गंभीरता से लें और इसे हल करने का प्रयास करें ताकि इस गांव का इंसान और जानवर पानी जैसी समस्या के लिए न तरसे।
भईया जी की रिपोर्ट