बिहार में लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है। नेताओं के दल—बदल और घात—प्रतिघात ने पहले ही सारे दलों को अनिश्चय के भंवर में जकड़ा हुआ है, उसपर कुछ पार्टियां और निर्दलीय अपनी उपस्थिति मात्र से प्रमुख दलों को भारी टेंशन दे रहे। मीसी भारती और कुछ दूसरे आरजेडी कैंडिडेटों के लिए जहां ये टेंशन असदुद्दीन ओवैसी दे रहे, वहीं एनडीए को उनके ही मूल से निकले कुछ निर्दलीय कैंडिडेट।
पाटलिपुत्रा में एमवाई दरकने का खतरा
लोकसभा चुनाव के दौरान AIMIM चीफ असदुद्दीन ने राजद अध्यक्ष लालू यादव को तगड़ा झटका देते हुए राजद के प्रदेश महासचिव फारूक रजा उर्फ डब्बू को ही तोड़ लिया। इतना ही नहीं, ओवैसी ने फारुक रजा को पाटलिपुत्र सीट से टिकट भी दे दिया और साथ ही लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती के लिए यहां भारी मुसीबत खड़ी कर दी। रजा के चुनावी मैदान में कूदने से अब इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है जिसमें ओवैसी का कैंडीडेट राजद के एमवाई को दरका सकता है। पाटलिपुत्र से लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती आरजेडी तो रामकृपाल यादव भाजपा से मैदान में हैं।
महाराजगंज में कांग्रेस के लिए मुश्किल
बात करें ओवैसी फैक्टर के बिहार में हावी होने की तो महाराजगंज वह दूसरी सीट है जहां से एआईएमआईएम ने अपना कैंडिडेट दिया है। AIMIM ने महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से अखिलेश्वर शर्मा को उम्मीदवार बनाया है। AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इस्लाम शाहीन ने बताया कि पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार में फिलहाल 9 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है। महाराजगंज में भाजपा के सिग्रीवाल तो कांग्रेस के आकाश सिंह मैदान में हैं। अब ओवैसी की पार्टी के चुनाव में उतरने से यहां भी मामला त्रिकोणीय हो गया है। साफ है कि यहां भी कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोट बंटने का खतरा है जो राजद के महागठबंधन को नुकसान का बायस बन सकता है।
काराकाट में एनडीए, महागठबंधन दोनों डरे
अब अगर काराकाट सीट पर नजर डालें तो यहां एनडीए और महागठबंधन दोनों टेंशन में हैं। काराकाट से एनडीए ने उपेंद्र कुशवाहा तो महागठबंधन ने माले के पूर्व विधायक राजाराम सिंह को यह सीट दिया है। यहां एनडीए को टेंशन निर्दलीय पवन सिंह दे रहे तो महागठबंधन को फिर ओवैसी की पार्टी ने उलझा लिया है। ओवैसी ने यहां से तेज—तर्रार और युवा प्रियंका प्रसाद चौधरी को मैदान में उतारा है। प्रियंका चौधरी की काराकाट के करीब 1.5 लाख निषाद वोटरों पर अच्छी पकड़ है। अगर ओवैसी यहां करीब 2.5 लाख अल्पसंख्यक वोटरों वाले वोट बैंक पर अपना असर छोड़ जाते हैं तो महागठबंधन मुश्किल में फंस जाएगा।