साइबर ठगी :- रक्तबीज की तरह उग रहे अड्डे
नवादा : समाजशास्त्रियों का मानना है कि जिले के भटके लोगों में अपराध विरासती कुसंस्कार की तरह घुसा हुआ है। काल और परिस्थिति के अनुरूप अपराध का तरीका बदलता रहता है। जिले की आपराधिक गतिविधियों की गहन जानकारी रखनेवालों के मुताबिक 2003 के दशक में वारिसलीगंज व आसपास का इलाका नशाखुरानी, ट्रेन में छीना-झपटी और लूट आदि के साथ सामूहिक नरसंहार के लिए बदनाम था।
2004 में स्मार्ट फोन आया तब अपराध की शैली बदल गयी। नयी पीढ़ी का दिमाग साइबर क्राइम में खपने लग गया। शुरुआत 2008 में मोबाइल फोन से बैलेंस की चोरी से हुई। धंधेबाजों द्वारा लोगों से सौ रुपया लेकर 200 से 300 रुपये तक के बैलेंस दिये जाते थे।
साइबर क्राइम के अदृश्य अड्डे
हालात ऐसे थे कि अच्छे-अच्छे लोग भी आधे में दोगुना बैलेंस या रिचार्ज कराने लग गये थे। धंधेबाजों को खूब कमाई होने लगी थी। देखते-देखते जामताड़ा बन गया वारिसलीगंज का इलाका वारिसलीगंज इलाका साइबर क्राइम के अदृश्य अड्डे के रूप में चर्चित हो गया। हालात यह कि हर दूसरे-तीसरे दिन देश के विभिन्न राज्यों के अलग-अलग हिस्से से पुलिस ऑनलाइन ठगी का सुराग तलाशने पहुंचने लगी।
देश में कहीं भी इस तरह का कोई मामला सामने आता, तो पुलिस और जांच एजेंसियों का रुख खुद-ब-खुद वारिसलीगंज की ओर हो जाता । इसलिए कि ऐसे अधिकतर मामले वहीं के धंधेबाजों से जुड़े होतेेे हैं। धीरे-धीरे ठगी के बदले तौर-तरीके सेे युक्त ऐसे अनेक अड्डे उग गये हैं।
वारिसलीगंज इलाका का कई गांव बन गयाभूमिगत प्रशिक्षण केन्द्र
वारिसलीगंज इलाके में साइबर क्राइम के कई भूमिगत ट्रेनिंग सेंटर संचालित हैं। कुछ लोग इसे ‘साइबर क्राइम का विश्वविद्यालय’ मानते हैं। ट्रेनिंग सेंटर पर शातिर प्रशिक्षकों द्वारा सात दिनों से लेकर एक माह तक ऑनलाइन ठगी के गुर सिखाये जाते हैं। बिहार के ही नहीं, देश के अन्य शहरों से बगैर किसी मेहनत के कम समय में अधिकाधिक धन पाने की लालसा लिये गुमराह बेरोजगार युवक प्रशिक्षण पाने आते हैं।
परिणामतः जामताड़ा ,करमाटांड़ व वारिसलीगंज के बाद देश के अन्य हिस्सों में भी साइबर क्राइम के कई छोटे-बड़े अड्डे अस्तित्व में आ गये हैं। दीर्घकाल तक सफेद दाग मिटाने के गोरखधंधे को लेकर सुर्खियों में रहे जिले का कतरीसराय भी इस अपराध का बहुत बड़ा अड्डा बन गया है। आसपास के जिलों में भी इसका तेजी से फैलाव हो रहा है।
ठग विद्या आधारित समृद्धि
स्थानीय लोगों की मानें तो वारिसलीगंज थाना क्षेत्र के दर्जनों गांवों के घर-घर में इस क्राइम के प्रशिक्षक हैं। पड़ोस के काशीचक, पकरीबरांवा व रोह थाना क्षेत्र के भी दर्जनाधिक गांवों की चर्चा इस रूप में होती है। हालांकि, ऐसे तमाम गांवों में ईमानदारी और मेहनत की कमाई से जीवन यापन करने वाले लोग भी खूब हैं। ऐसी हरकतों से उनका दूर-दूर तक कोई वास्ता-रिश्ता नहीं है।
ठग विद्या आधारित समृद्धि की मुस्कुराहट चतुर्दिक फैली हुई है। ऐसे अपराधियों से निपटना पुलिस के लिये असंभव नहीं तो कठिन अवश्य साबित हो रहा है। सोमवार को दो लाख रुपये नकदी के साथ चार की गिरफ्तारी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।