श्रीराम तिवारी
श्रीराम जन्मभूमि को लेकर पांच सौ वर्षों तक संघर्ष चला। अब श्रीराम जन्मभूमि पूरे विश्व को आकर्षित कर रही है। लेकिन, जिस पुत्रेष्टि यज्ञ से श्रीराम का जन्म हुआ था उस पुत्रेष्टि यज्ञ की आदि भूमि चिरांद उपेक्षा का दंश झेल रहा है। बिहार के सारण जिले में गंगा, सरयू और सोन नदी के संगम पर स्थित यह परमतीर्थ ऋषि विभांड की तपोभूमि और पुत्रेष्टि यज्ञ के ‘होता’ ऋषि श्रृंगी की जन्मभूमि है। परमसंत मौनी बाबा ने इस वर्ष यानी 2025 में कार्तिक मास में यहां कल्पवास व यज्ञ कर इस परमतीर्थ के गौरव को पुनर्स्थापित करने का अभियान शुरू कर दिया है।
चिरांद में पुत्रेष्टि यज्ञ की आदि भूमि
गंगा, सरयू और सोन नदी के पवित्र संगम पर स्थित चिरांद विश्व का एक दुर्लभ पुरातात्विक स्थल भी है। बिहार सरकार के पुरातत्व निदेशालय द्वारा 1960 से लेकर 71 के बीच कराए गए उत्खनन में यहां नवपाषाण कालीन समृद्ध सभ्यता के पर्याप्त प्रमाण मिले थे। वहां से मिले पुरातात्विक साक्ष्य रामायण में वर्णित कथाओं की प्रामाणिकता की पुष्टि करते हैं। इस दृष्टि से रामायण परिपथ को यह प्राचीन स्थान पुरातात्विक आधार प्रदान करता है। इतना महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल होने के बावजूद कई दशकों तक इसकी उपेक्षा की गयी है।
जीयछ पोखर से भर जाती सूनी गोद
विभिन्न शोधों से इस घोर उपेक्षित श्रीराम तीर्थ और पुरातात्विक स्थल के महत्व स्थापित हो गए हैं। इसके बावजूद इस स्थाल के संरक्षण व विकास के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं किए गए। स्थानीय श्रद्धालु इस तीर्थ का गुणगान विभिन्न प्रकार से करते रहे हैं। इस तीर्थ से जुड़ी अनेक लोककथाएं प्रचलित हैं। लेकिन, उन लोककथाओं को साहित्यिक स्रोत मानकर अब तक व्यापक शोध नही हुए हैं। एक मान्यता है कि चिरांद में स्थित एक कुंड में स्नान करने से बांझ औरतों के गोद भर जाते हैं। स्थानीय लोग उस कुंड को ‘जीयछ’ पोखर कहते रहे हैं।
लक्ष्मण किला वाले संत की तपोभूमि
संत-महात्माओं की ओर से इस प्राचीन तीर्थ के महत्व से लोक को अवगत कराने के प्रयास होते रहे हैं। इसी प्रयास के तहत संतों ने लोक के सहयोग से इस संगम स्थल पर मंदिरों का निर्माण कराया था। अयोध्या स्थित लक्ष्मण किला की स्थापना करने वाले आदि महंतजी इसी स्थान पर तपस्या करते थे। स्वप्न में आदेष मिलने के बाद वे चिरांद से सरयू तट पर चलते-चलते अयोध्या पहुंच गए थे। वहां पहुंच कर सरयू के तट पर ही तप करने लगे। बाद में एक राजा के सहयोग से उन्होंने विषाल भूखंड पर लक्ष्मण किला मंदिर की स्थापना की थी। अयोध्या स्थित लक्ष्मण किला की गुरुगद्दी आज भी चिरांद स्थित वह प्राचीन अयोध्या मंदिर ही है। लक्ष्मण किला के नये महंत का अभिषेक गंगा, सरयू और सोन के संगम पर स्थित चिरांद तीर्थ में ही होता है।
मौनी बाबा का आध्यात्मिक कल्पवास
लक्ष्मण किलाधाीष महंत श्री मैथिली रमण शरण जी महाराज के आग्रह पर परम संत मौनी बाबा जी महाराज इस वर्ष कार्तिक मास में चिरांद आए। हिमालय की गुफा में बर्फानी बाबा के सानिध्य में कई वर्षों तक तप करने वाले मौनी बाबा को इस परमतीर्थ में मौजूद आध्यात्मिक तरंगों ने आकर्षित किया। इसके बाद उन्होंने पूरे कार्तिक मास में इस तीर्थ पर कल्पवास का अनुष्ठान शुरू कर दिया। कल्पवास अनुष्ठान के साथ अखंड श्रीराम नाम कीर्तन भी होता रहा। पांच दिवसीय लक्ष्मीनारायण महायज्ञ एवं दिव्य भंडारे के साथ यह अनुष्ठान पूर्ण हुआ। एक माह तक चलने वाले इस आध्यात्मिक समारोह के कारण स्थानीय लोगों में अपनी विरासत, संस्कृति व ज्ञान परंपरा से जुड़े इस पुरातात्विक व धार्मिक स्थान के बारे में जागृति आयी है। करीब 17 वर्ष पूर्व चिरांद विकास परिषद की स्थापना कर इस स्थान के इतिहास को बचाने और गौरव की पुनर्स्थापना के लिए सतत कार्य हो रहे हैं।
धर्मिक-आध्यात्मि सामर्थ्य देने वाली भूमि
एक मास तक चलने वाले अनुष्ठान के समापन के अवसर पर लक्ष्मण किलाधीष महंत श्री मैथली रमण शरण जी महाराज ने उपस्थित जनसमुदाय के समक्ष इस तीर्थ के महत्व पर प्रकाष डाला। उन्होंने कहाकि इस पुण्यभूमि पर पहुंचने के बाद श्रीराम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां की ऋषि परंपरा के बारे में जिज्ञास किया। श्रीराम के प्रश्नों का उत्तर देते हुए महर्षि विश्वामित्र ने कहा था कि गंगा का यह पावन तट मानव को उसके कर्तव्य का बोध कराकर उसे धर्म धारण करने योग्य बनाता है। यह पावन गंगा जगजीवों को परमात्मा की भक्ति प्रदान कर उसमें धर्म को धारण करने का सामर्थ्य प्रदान करता है। अपने गुरु से इस तपोभूमि की महिमा सुनने के बाद रघुनाथजी ने इस संगम के पवित्र जल से आचमनी की और रात्रि काल में भूमि सयन की इससे समर प्रताप ग्रहण किया था। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने मानस में इस पवित्र तीर्थ का वर्णन करते हुए इसे पावन रामतीर्थ बताया है।
खुदाई में मिले यज्ञ भूमि के प्रमाण
कुछ लोग इस क्षेत्र को गौतमबुद्ध के षिष्य आनन्द से जोड़कर कुछ काल्पिनिक बातें प्रचारित करते हैं लेकिन उसका कोई प्रमाण नहीं है। यहां से खुदाई में जो वस्तएंु प्राप्त हुई हैं उससे प्रमाणित हुआ है कि यह स्थल एक यज्ञ भूमि थी। यह स्थान रामायण में वर्णित राम की यात्रा का प्रमाण देता है। द्वापर में श्रीकृष्ण अपने शिष्य अर्जुन के साथ यहां आए थे और अर्जुन का भ्रम दूर किया था। यह भारत के दनवीरों की दिव्य परम्परा की भूमि रही है जहां दानवीर कर्ण से भी महान राजा मोरध्वज का निवास स्थान था। मोर ध्वज की कथा धर्म के दस लक्षणों के धारण करने का प्रमाण है। मोर ध्वज ने धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रीय निग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के इन दस लक्षणों के प्रमाण पुरूष थे। इस प्रकार राजा मोरध्वज के कारण चिरांद एक धर्म धाम भी है।
आधुनिक काल में तीर्थों की कथा पर संदेह करते हुए उससे सम्बंधित प्रमाण मांगने का फैशन चल पड़ा है। भगवान श्रीराम के आविर्भाव और अभ्युदय की कथा की साक्षी धर्मनगरी चिरांद के गर्भ से बहुत से ऐसे पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं जो इस परम तीर्थ की कथा को सत्य सिद्ध करते हैं। यहां के संतों एवं बुद्धिजीवियों ने उन प्रमाणों के आधार पर इस परमतीर्थ की गरिमा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास शुरू कर दिया है लेकिन, यह कार्य और संकल्प संतों की साधना और विद्वतजनों के सतत प्रयास से ही पूर्ण हो सकता है। श्रीराम के दिव्यजीवन के अनुकूल समाज निर्माण एवं उनके रामराज्य के अनुसार व्यवस्था निर्माण में इस परमतीर्थ की महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन, इस दिषा में अब तक अपेक्षित प्रयास नहीं हो सके हैं। इस स्थान के गौरव की पुनर्स्थापना भारत में सनातन की मर्यादा की पुर्स्थापना के लिए आवष्यक है। इसके लिए चिरांद स्थित गंगा, सरयू और सोन त्रिवेण पर प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में कल्पवास का आयोजन होगा।