नवादा : जिले के नदियों व जंगली क्षेत्रों के किनारे बसे गांवों के किसान इन दिनों नीलगाय, घोड़परास और जंगली सुअरों के बढ़ते आतंक से परेशान हैं। नदी किनारे बसे गांवों में रबी की फसलों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। दिन में नदियों के कांस और घनी झाड़ीदार इलाके में बसेरा करने वाले ये जंगली पशु रात होते ही झुंड के रूप में खेतों में धावा बोल देते हैं और किसानों की महीनों की मेहनत को पलभर में बर्बाद कर देते हैं।
किसान बताते हैं कि नदियों व जंगलों-पहाड़ों के किनारे खेतों में आलू, मटर, मक्का समेत कई सब्जियों की खेती करना अब जोखिम भरा काम हो गया है, क्योंकि जंगली पशुओं के झुंड मिनटों में खेत उजाड़ देते हैं। कई किसानों ने बताया कि वन्यजीव संरक्षण कानून के कारण नीलगाय व घोड़परास को मारने की हिम्मत कोई नहीं करता। वहीं, वन विभाग को बार-बार सूचना देने के बावजूद प्रभावी कार्रवाई नहीं की जाती, जिससे जंगली जानवरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है।
किसानों का कहना है कि वे खून-पसीना बहाकर अपनी जमीन पर हरियाली लाते हैं, लेकिन जंगली नीलगाय-घोड़परास व जंगली सूअर रातों-रात किसानों के सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। किसान राजू कुमार, मिश्री मोची, अभिमन्यु सिंह, रिझो राम और बिजेंद्र रविदास, सुरेंद्र प्रसाद और नरेश पासवान बताते हैं कि हर साल रबी सीजन में भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। कई परिवारों की खेती-बारी इस वजह से संकट में पड़ गई है, लेकिन सरकार या वन विभाग की ओर से कोई ठोस पहल नहीं हो रही।
इस बावत कृषि पदाधिकारियों का कहना है कि इस समस्या से निपटने के लिए किसान अपने पंचायत की मुखिया को आवेदन दें। आवेदन के जिला कार्यालय से अनुमोदित होने के बाद जंगली पशुओं को नियंत्रित करने या जरूरत पड़ने पर शूट करने की व्यवस्था की जाती है। उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया कि आवेदन देने पर निश्चित रूप से राहत दिलाई जाएगी। किसानों की बढ़ती समस्याओं को देखते हुए ग्रामीण लगातार मांग कर रहे हैं कि सरकार और वन विभाग तुरंत प्रभावी कदम उठाए, ताकि रबी सीजन की बची फसलें सुरक्षित रह सकें।
भईया जी की रिपोर्ट