मोतिहारी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मोतिहारी महाविद्यालयीन छात्र कार्य इकाई एवं साहित्यिक सांस्कृतिक परिषद, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में “राष्ट्रनिर्माण में युवाओं की भूमिका” विषय पर विशिष्ट विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता मान्यवर रामदत्त चक्रधर जी, माननीय सह सर कार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ थे। अध्यक्षता कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने की। मुख्य वक्ता मान्यवर रामदत्त चक्रधर जी, माननीय सह सर कार्यवाह ने अपने उद्बोधन में भारतीय राष्ट्र की ऐतिहासिक यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत एक प्राचीन सांस्कृतिक राष्ट्र है, जिसकी एकात्मता अनेक संतों, मनीषियों और परंपराओं द्वारा समय-समय पर प्रमाणित की गई है। उन्होंने गुरु नानक, शंकराचार्य, कबीर आदि संत परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि भले ही भाषाएँ भिन्न हों, पर भारतीय समाज में निहित भाव एक ही है, जो राष्ट्रीय एकता का आधार है।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि राष्ट्रनिर्माण का आधार अंततः मनुष्य-निर्माण ही है। नैतिकता, चरित्र, अनुशासन और कर्तव्य-बोध से युक्त युवा ही मजबूत राष्ट्र की नींव रख सकते हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि आज का दौर तीव्र वैश्विक परिवर्तनों का है, जिससे संस्कृतियों का पारस्परिक प्रभाव बढ़ा है। ऐसे समय में आवश्यक है कि भारतीय समाज उन सांस्कृतिक मूल्यों को न भूले, जिन्होंने भारत को महान बनाया और विश्व को दिशा दी। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, भारतीय मूल्य-प्रधान शिक्षा,संस्कृत और संस्कृति की विशेषताओं के संरक्षण, अनुशासन, आध्यात्मिकता और मानसिक उपनिवेशवाद से मुक्ति की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि युवा यथार्थवादी हों, पर अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहें, यही राष्ट्र की दीर्घकालिक शक्ति है।
गांधी परिसर के निदेशक और सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिषद के अध्यक्ष प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने कहा कि राष्ट्रनिर्माण का प्रश्न न केवल राजनीति तक सीमित है और न ही केवल भावनात्मक आवेग पर आधारित है। यह इतिहास, संस्कृति, सत्ता-संरचना, लोकतांत्रिक चेतना, असहमति के नैतिक साहस और वैचारिक स्वतंत्रता, इन सभी के समन्वित अनुभव से निर्मित विषय है। उन्होंने कहा कि भारत वर्तमान में संक्रमणकालीन दौर से गुजर रहा है, जहाँ युवा अब निष्क्रिय दर्शक नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के सक्रिय कारक बन रहे हैं। अतः यह अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि युवाओं को किस वैचारिक दिशा की ओर प्रेरित किया जा रहा है तथा इससे भारत के दीर्घकालिक राष्ट्रीय चरित्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा।