बिहार के राजगीर आयुध निर्माण कारखाने को बम से उड़ाने की धमकी मिली है। नालंदा जिले में भारत के रक्षा मंत्रालय के अधीन संचालित इस अत्यंत संवेदनशील रक्षा प्रतिष्ठान को ईमेल के माध्यम से यह धमकी दी गई है। धमकी वाले ईमेल में फैक्टरी और कार्यालय परिसर में सात शक्तिशाली बम रखे जाने और उन्हें कभी भी विस्फोट कर धमाका करने की चेतावनी दी गई है। यह धमकी भरा ईमेल तमिलनाडु से भेजा गया है, जिसे लेकर केंद्रीय और राज्य स्तर की सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय हो गई हैं। सूचना मिलते ही तुरंत हरकत में आई लोकल पुलिस और केंद्रीय बलों ने फिलहाल फैक्ट्री परिसर में व्यापक तलाशी अभियान शुरू किया है।
ईमेल में आईएसआई और डीएमके का जिक्र
जानकारी के अनुसार यह संदिग्ध ईमेल आयुध निर्माण फैक्टरी के महाप्रबंधक के आधिकारिक मेल पर तीन दिन पूर्व प्राप्त हुआ था। ईमेल की विषय-वस्तु अत्यंत चिंताजनक बताई जा रही है, जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टी डीएमके का उल्लेख किया गया है। इतना ही नहीं, ईमेल में चेन्नई के एक धार्मिक स्थल से जुड़े विवाद का भी हवाला देते हुए भावनाओं को भड़काने का प्रयास किया गया है। राजगीर डीएसपी सुनील कुमार सिंह ने बताया कि—’ईमेल में अत्यंत भड़काऊ और गंभीर भाषा का इस्तेमाल किया गया है। फैक्ट्री परिसर में सीआईएसएफ और बम निरोधक दस्ते ने व्यापक तलाशी अभियान शुरू कर दिया है। अब तक कोई संदिग्ध वस्तु नहीं मिली है’।
हरकत में आईं केंद्र और राज्य की एजेंसियां
बताया जाता है कि धमकी वाले ईमेल में कई प्रतिबंधित और गैरकानूनी संगठनों के नाम लेकर संवेदनशील टिप्पणियां की गई हैं। राजगीर डीएसपी ने बताया कि प्रारंभिक जांच में यह मामला एक खतरनाक धमकी प्रतीत हो रहा है। हमने इस मामले को साइबर सेल, इंटेलिजेंस विंग और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के साथ साझा कर दिया है। संयुक्त जांच जारी है। साइबर सेल को ईमेल की तकनीकी जांच और इसके स्रोत की पहचान करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पुलिस प्रशासन ने प्रारंभिक तौर पर इसे दहशत फैलाने की साजिश और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास माना है। हालांकि, किसी भी संभावना को नजरअंदाज न करते हुए सभी कोणों से जांच की जा रही है। राजगीर आयुध फैक्टरी भारतीय सेना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रक्षा उत्पादन केंद्र है। इस कारखाने की नींव वर्ष 1999 में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज द्वारा रखी गई थी और सरकार ने इस परियोजना को 2001 में औपचारिक मान्यता प्रदान की थी।