नवादा : बिहार सरकार भूमि विवाद को कम करने के लिए तरह तरह का प्रयोग कर रही है। लेकिन हालात वहीं का वहीं पहुंच जा रहा है। भूमि विवाद कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है।
स्थिति यह है कि
मर्ज बढता ही गया, ज्यों ज्यों दवा की। सरकार की मंशा पर अधिकारी व कर्मचारी अपने लाभ- शुभ के लिए पानी फेर दे रहे हैं। जी हां! यहां हम बात कर रहे हैं जिले के गोविंदपुर प्रखंड बकसोती बाजार का। बकसोती के मो. वसीम पिता मरहूम अलहाज अब्दुल लतीफ की मां मरहूम जुलेखा खातुन ने अपनी जमीन कुल एक एकड़ 38.5 डी. 27 नवंबर 2012 को वसीयत कर दी। उक्त भूमि का दाखिल खारिज से लेकर रसीद भी कटनी शुरू हो गयी।
जमीन पर कब्जा भी बरकरार है। शेष तीन भाइयों को उक्त भूमि से मां ने ही बेदखल कर दिया था। कारण स्पष्ट था मां का बुढ़ापे में साथ न देना। जिसने सेवा किया मां ने उसे उसका हक दिया। लेकिन यह क्या तेरह वर्षों बाद भाईयों को संपत्ति की याद आयी हो मो. मोकीमउद्दीन ने परती भूमि पर 17 नवंबर को भवन निर्माण के लिए ईंट बालू के भवन निर्माण सामग्री गिरा दिया।
मामला रजौली एसडीएम के न्यायालय पहुंचा तथा उन्होंने निषेधाज्ञा लागू कर दिया। मामले की सुनवाई होनी शेष है। लेकिन निषेधाज्ञा का अनुपालन कराने के बजाय अधिकारियों ने भवन निर्माण की छूट दे रखी है। हालात यह है कि पीड़ित न्याय के लिए कार्यालय का चक्कर लगा रहा है और अधिकारी लाभ- शुभ के चक्कर में सुनने को तैयार नहीं। ऐसे में कहीं खून खराबा हो जाय तो कोई आश्चर्य नहीं। यह हाल तब है जब सरकार ने अवैध कब्जा को हटाने का अधिकार एसडीएम व थानाध्यक्ष को दे रखा है। यही अधिकार अधिकारियों के लिए कामधेनु साबित हो रहा है। तभी तो कहा गया है:- मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों ज्यों दवा की।
भईया जी की रिपोर्ट