अयोध्या। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण के एक दिन पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ० मोहन भागवत ने श्री गुरु तेगबहादुरजी के 350वें शहीदी दिवस पर गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड साहिब में माथा टेक कर उनके अमर त्याग और बलिदान का स्मरण किया। इस दौरान उन्होंने गुरु महाराज को नमन करते हुए कहा कि धर्म और न्याय, मानवीय मूल्यों एवं अधिकारों की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुरजी का बलिदान हम सबके लिए जीवन का संदेश है।
सरसंघचालक ने कहा कि सनातन धर्म त्याग और बलिदान की नींव पर खड़ा है। इतिहास गवाह है कि कई बार ऐसा समय आया जब लगा कि धर्म रहेगा या नहीं, लेकिन गुरु परंपरा ने अपने आचरण और त्याग से धर्म को जीवित रखा। “धर्म के लिए जीवन कैसा होना चाहिए, यह गुरु महाराज ने केवल बताया ही नहीं, बल्कि स्वयं जीकर दिखाया,”—डॉ० भागवत ने कहा।
उन्होंने कहा कि यदि कोई हमें अन्न–जल देता है तो हम उसके उपकृत हो जाते हैं, लेकिन यदि कोई हमें जीवन जीने का सही मार्ग बताता है, तो संपूर्ण समाज उस ज्ञान के लिए शाश्वत काल तक ऋणी रहता है। उन्होंने विश्वास जताया कि एक ही समय में परिवर्तन संभव नहीं, परंतु समाज धीरे-धीरे गुरु महाराज के मार्ग का अनुसरण कर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा। इस पावन स्थान पर आने का सौभाग्य उन्हें मिला, यह उनके लिए जीवन का धन्य क्षण है।
गुरुद्वारा के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी गुरजीत सिंह खालसा ने सरसंघचालक को सरोपा भेंटकर उनका स्वागत किया। ज्ञानी गुरजीत सिंह ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण विश्वभर के सनातनी समुदाय के एक युगों पुराने सपने का साकार होना है।
अयोध्या के गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड साहिब का ऐतिहासिक महत्व
प्रमुख ग्रंथी ने जानकारी दी कि इस गुरुद्वारे में प्रथम गुरु नानकदेवजी, नौवें गुरु तेगबहादुरजी और दशम गुरु गोविंद सिंहजी का आगमन हुआ था। यहां शबद कीर्तन का आयोजन किया गया तथा कड़ाह प्रसाद का वितरण हुआ। सर्वविदित है कि अयोध्या न केवल हिन्दू, बल्कि जैन, बौद्ध एवं सिख धर्मों की भी पवित्र भूमि है। इन सभी धर्मों से जुड़े पवित्र स्थल यहां मौजूद हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थल के समीप भगवान ब्रह्मा ने 5,000 वर्ष तक तपस्या की थी। कहा जाता है कि बाल्यावस्था में गुरु गोविंद सिंहजी लगभग छह वर्ष की आयु में रामनगरी आए थे तथा श्रीराम जन्मभूमि के दर्शन के दौरान बंदरों को चने खिलाए थे। गुरुद्वारे में मौजूद ग्रंथों के अनुसार, माता गुजरी देवी और मामा कृपाल सिंह के साथ पटना से आनंदपुर जाते समय उन्होंने अयोध्या में धूनी रमाई थी और रामलला के दर्शन भी किए थे।
गुरुद्वारे में गुरु गोविंद सिंहजी से जुड़े कई प्राचीन हथियार और निहंग सेना की विरासत आज भी सुरक्षित हैं। इन्हीं हथियारों के बल पर निहंग सिखों ने मुगलों से युद्ध कर राम जन्मभूमि की रक्षा की थी। माना जाता है कि निहंग सेना ने अयोध्या की रक्षा कर राम जन्मभूमि को मुक्त कराया और इसे पुनः हिन्दुओं को सौंपकर पंजाब लौट गए।
सरयू नदी के तट पर स्थित ब्रह्मकुंड साहिब के पास ही ब्रह्मा मंदिर और दुखभंजनी कुआं है। मान्यता है कि गुरु नानकदेवजी ने यहां विक्रमी संवत् 1557 में प्रवास के दौरान इसी कुएं के जल से स्नान किया था। गुरु तेगबहादुरजी ने विक्रमी संवत् 1725 में यहां माथा टेका और दो दिनों तक तप किया। सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंहजी भी संवत् 1726 में यहां पधारे थे। गुरुद्वारे में उनका खंजर, तीर और तस्तार चक्र आज भी दर्शनीय और श्रद्धा का केंद्र हैं।
सत्यनारायण चतुर्वेदी की रिपोर्ट