नवादा : बिहार की राजनीति में बहुत रिश्ते बने और बिगड़े, लेकिन एक रिश्ता अब भी ऐसा है जिसने मज़हब और सियासत दोनों की सीमाएँ तोड़ दीं — ये रिश्ता है कौशल यादव और सलमान राग़िब उर्फ़ मुन्ना मियां की दोस्ती का। नवादा की मिट्टी में पली ये दोस्ती उस दौर में फली जब राजनीति जात-पात और मज़हब की दीवारों में बंटी हुई थी, लेकिन कौशल यादव और सलमान राग़िब ने उस दीवार को तोड़कर एक नई मिसाल कायम की।
जब दोनों राजनीति के मैदान में उतरे, तो लोगों ने सोचा कि शायद आगे चलकर ये दोस्ती भी सियासत की भेंट चढ़ जाएगी — मगर हुआ उल्टा।
कौशल यादव ने जब एमएलसी बनने का मौका छोड़ा और कहा, “मेरे भाई सलमान को बनाइए, मैं उसके साथ खड़ा रहूंगा,” तो नवादा की जनता दंग रह गई। सलमान राग़िब एमएलसी बने, और कौशल यादव ने ख़ुद जनता का विधायक बनकर अपनी दोस्ती का हक़ अदा किया।
15 साल तक कौशल यादव विधायक रहे और 18 साल तक सलमान राग़िब एमएलसी।
इस दौरान दोनों ने मिलकर नवादा में एकता, अमन और भाईचारे की राजनीति की।
कौशल यादव ने अपने कार्यकाल में कई मुसलमानों को मुखिया, जिला परिषद सदस्य, चेयर मैन , समिति सदस्य और वार्ड पार्षद बनवाया — ताकि राजनीति में सिर्फ़ नाम नहीं, बल्कि नुमाइंदगी भी हो।
लोग कहते हैं :—
“कौशल यादव ने साबित किया कि सच्चा सेक्युलर वही है, जो मज़हब देखकर नहीं, इंसान देखकर साथ देता है।”
मगर वक्त बदलता है :—
वही नवादा जहां एक दौर में यादव और मुसलमान कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे, आज वहाँ हालात उलट गए। जब कौशल यादव चुनाव हार गए, तो गोविंदपुर विधानसभा से सेवक मो॰ कामरान विधायक बना और उसके बाद गोविंदपुर की तेज तर्रार मुखिया अफरोजा खातुन को चुनाव हरवा दिया, और इस तरह से गोविंदपुर विधानसभा में एक भी मुस्लिम मुखिया नहीं बचा और मुस्लिम विधायक होते हुए भी मुसलमानों की नुमाइंदगी को ख़त्म कर दिया! दोस्ती की वो मिसाल जैसे सियासत की आँधी में कहीं गुम हो गई।
पर कहानियाँ कभी मरती नहीं :—
लोग आज भी कहते हैं,
“सियासत के इस दौर में अगर कोई दोस्ती अमन की मिसाल है, तो वो है — कौशल यादव और सलमान राग़िब की।”
दोनों ने साबित किया कि राजनीति में भी इंसानियत ज़िंदा रह सकती है, अगर दिल सच्चा और नीयत साफ़ हो।
भईया जी की रिपोर्ट